फर्जीवाड़ा मामले में जेल में बंद महिला हुई रिहा
ग्वालियर| रेलवे और एनओजीसी में नौकरी दिलवाने के नाम पर लाखों रूपए ठगी करने वाली आरोपी महिला निकिता निगम को जमानत पर जेल से रिहा कर दिया गया। उक्त महिला की जमानत एक मार्च को ही हो गई थी लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश की नकल के लिए निकिता के परिवार के लोगों से उनके ही अधिवक्ता ने अतिरिक्त फीस की मांग की थी और इस कारण जमानत की नकल लिपिकों ने उसके परिजनों को देने से इंकार कर दिया था। इसको लेकर गत दिवस उच्च न्यायालय में हंगामा भी हुआ था।
नकल लेने आए लोगों ने प्रिंसीपल रजिस्ट्रार से मुलाकात कर अपनी सुरक्षा का खतरा बताया और नकल दिलवाने की गुहार की थी। प्रिंसीपल रजिस्ट्रार गौरीशंकर दुबे ने रजिस्ट्रार को नकल दिलवाने के साथ ही उन्हें सुरक्षा दिलवाई थी।
जमानत मिलने के बाद भी 26 दिन अवैध निरोध में रही
जिला न्यायालय में आरोपी महिला के परिजनों को मंगलवार को शपथपत्र पेश करने के बाद न्यायालय ने रिहा करने के आदेश दिए। बता दें कि फर्जीवाड़ा के मामले में जेल में बंद निकिता निगम के परिजनों ने उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ में जमानत के लिए एक अधिवक्ता के माध्यम से आवेदन प्रस्तुत किेया था। युगल पीठ ने निकिता निगम को एक मार्च को जमानत देने का निर्णय दिया था,लेकिन पक्षकार के अधिवक्ता ने न्यायालय के बाबुओं से मिलकर नकल देने से मना कर दिया था। लगभग 26 दिन तक जमानत होने के बाद भी महिला को अवैध निरोध में जेल में रहना पड़ा जो कि पूरी तरह से गलत था।
जांच में लिपिकों पर गिरेगी गाज
पूरे 26 दिन तक जमानत की नकल पक्षकारों को न देने के मामले में प्रिंसीपल रजिस्ट्रार ने दो लिपिकों की जांच के आदेश दिए हैं। न्यायालय के सूत्र की माने तो उक्त बाबुओं ने नियमों के विपरित कार्य किसके कहने पर किया है। यह जांच के दायरे में आएगा। एक अधिवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जमानत मिलने के बाद भी कोई जेल में रहता है तो इस पर मानहानि का मामला दर्ज होता है।