हिसार। सतलोक आश्रम प्रकरण में सरकारी ड्यूटी में बाधा पहुंचाने और अनुयायियों को बंधक बनाने के दो अलग-अलग मामलों में न्यायिक दंडाधिकारी मुकेश कुमार की अदालत ने मंगलवार को रामपाल व उनके अनुयायियों को बरी कर दिया। हत्या के दो मामलों, देशद्रोह व अन्य मामलों की सुनवाई अभी अदालत में चल रही है और उन पर फैसला आना अभी बाकी है। इससे पहले, दो अन्य दोनों मामलों में 24 अगस्त को फैसला आना था, जिसको पुलिस के आग्रह पर अदालत ने 29 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया था।
पुलिस में चले अभियोग के मुताबिक बरवाला स्थित पुलिस थाने ने 18 नवंबर, 2014 को आश्रम प्रमुख रामपाल और अन्य के खिलाफ सरकारी ड्यूटी में बाधा पहुंचाने तथा रास्ता रोककर बंधक बनाने का केस दर्ज किया गया था। यह केस अभियोग संख्या 426/14 व 427/ के तहत दर्ज है। इनमें से एक मुकदमे में रामपाल सहित 5 और दूसरे मुकदमे में रामपाल सहित 6 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
जिले को किया सील, नहीं पहुंचे श्रद्धालु
पुलिस अधीक्षक मनीषा चौधरी ने बताया कि जिले में इंटर स्टेट नाके व जिला स्तरीय नाके पैरामिलिट्री फोर्स सहित अनुयायियों को रोकने के लिए नियुक्त किये गए थे जिसके कारण कोई भी अनुयायी शहर में नहीं घुस पाए और शांति व्यवस्था बनी रही। शहर के चारों तरफ आने वाले रास्ते भी सील करके उन पर पैरामिलिट्री फोर्स तैनात की गई थी। इसके इलावा, जेल के चारों तरफ, लघु सचिवालय व कोर्ट परिसर के चारों तरफ तथा रेलवे स्टेशन, टाउन पार्क व नवदीप कॉलोनी में भी भारी मात्रा में पुलिस बल व इन स्थानों पर एक-एक प्लाटून पैरामिलिट्री फोर्स नियुक्त की गई थी।
स्वघोषित संत रामपाल दास का जन्म हरियाणा के सोनीपत के गोहाना तहसील के धनाना गांव में हुआ था। रामपाल पहले सरकारी नौकरी में थे। रामपाल हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। नौकरी के दौरान ही उनकी मुलाकात स्वामी रामदेवानंद महाराज से हुई। रामदेवानंद महाराज से प्रभावित होकर रामपाल उनके शिष्य बन गए।
18 साल नौकरी करने के बाद 21 मई 1995 को रामपाल ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सत्संग करने लगे। धीरे धीरे रामपाल के अनुयायियों की संख्या बढती गई और एक महिला ने करोंथा गांव में रामपाल दास महाराज को आश्रम के लिए जमीन दे दी। इस पर रामपाल ने 1999 में ट्रस्ट की मदद से सतलोक आश्रम की नींव रखी।