वर्तमान में चीन जिस प्रकार से नेपाल में अपने पांव पसार रहा है, उसी प्रकार से भारत ने भी नेपाल के साथ हाथों में हाथ लेकर दोस्ती को प्रगाढ़ बनाने का काम किया है। अभी हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली की भारत यात्रा के समय ऐसा ही कुछ दृश्य दिखाई दिया है। भारत और नेपाल के प्रधानमंत्री के मध्य हुई वार्ता के बाद जो वक्तव्य जारी हुआ है उसके अनुसार दोनों देशों के लोगों के बीच सम्पर्क, आर्थिक विकास और कारोबार में बढ़ोतरी के उद्देश्य से रक्सौल और काठमांडू के बीच विद्युतीकृत रेलवे लाइन बिछाने पर सहमति बनी है। इसमें भारत वित्तीय मदद देगा। भारत सरकार एक साल में सर्वे पूरा कर लेगी और उसके बाद दोनों देश मिलकर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करेंगे। इसके बाद दूसरे चरण में तीन नए रेल सम्पर्क-न्यू जलपाईगुड़ी से काकरमिट्टा, नौतनवां से भैरहवा और नेपालगंज रोड से नेपालगंज तक सर्वे का काम शुरू होगा। घोषणा पत्र में नदी जलपथ के बारे में अहम समझौते का ऐलान किया गया। विदेश सचिव विजय केशव गोखले ने कहा कि नदी जलपथ के जरिए क्षेत्रीय आर्थिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इस परियोजना से जहां एक ओर भारत अपने इरादों में सफल होगा, वहीं नेपाल प्रगति के मार्ग पर बढ़ने को तैयार होगा। भारत ने इन दोनों कामों के माध्यम से एक तीर से कई निशाने साधने का काम किया है। भारत अपने नदी जलपथ और समुद्री मार्गों के जरिए नेपाल के कार्गो की ढुलाई की इजाजत देगा।
इसके अलावा बीरगंज में नए इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट के उद्घाटन से लोगों एवं सामानों के आवागमन का रास्ता ज्यादा सुगम एवं तीव्र होगा। यही नहीं दोनों प्रधानमंत्रियों ने मोतिहारी और अमलेखगंज के बीच तेल पाइप लाइन की जो आधार शिला रखी, वह एक पक्षीय रूप से नेपाल के हित में है। नेपाल को तेल भारत के सड़क मार्गों से जाता है, जिसमें कई बार बाधा भी आती है, इस परियोजना के बाद नेपाल तक तेल आसानी से पहुंचाया जा सकता है। जहां तक रक्सौल से काठमांडू तक की रेल लाइन परियोजना का मामला है, यह काफी महत्वपूर्ण है। अगर ऐसा होता है तो दिल्ली से काठमांडू तक रेल मार्ग खुल जाएगा। इसे काठमांडू तक रेल विकसित करने के जवाब के रूप में देख रहे हैं। लेकिन तय यह भी है कि चीनी रेल हमारी रेल से पहले बनकर तैयार होकर चलने लगेगी। इसके अलावा गैस पाइप लाइन, सड़कों और बांध आदि बनाने पर अब भारत काफी खर्च करने को तैयार हो गया है, यह अच्छी बात है, लेकिन ओली ने अपनी यात्रा के दौरान यह नहीं कहा कि भारत के साथ नेपाल के अति विशिष्ट संबंध है। यह सोचने की बात है, जो भारत को सोचनी होगी। जब ओली पिछली बार प्रधानमंत्री बने थे, उनका रूख खुलेआम भारत विरोधी ही था। चीन के प्रति अत्यधिक झुकाव भारत की प्रतिक्रिया में पैदा हुआ था। ओली अपनी पुरानी नीति में बदलाव लाएंगे, इसके कोई संकेत यात्रा के दौरान तो कम से कम नहीं मिले हैं। फिर भी भारत ने बड़ा दिल दिखाया है। नेपाल यह अच्छी तरह जानता है कि भारत के सहयोग के बिना नेपाल का काम नहीं चल सकता। चीन कभी भी भारत का विकल्प नहीं बन सकता। नेपाल अभी भी चीन से प्रभावित है।