ढेड़ साल से कैंसर से पीडि़त गाय के जीवन को सुरक्षित बचाया
गौ सेवा की अनूठी मिशाल बनीं स्वाती शर्मा
भिण्ड/अनिल शर्मा। भिण्ड जिले में नई युवा पीढ़ी में सामाजिक व रचनात्मक क्षेत्र में कुछ नया अच्छा करने की जो ललक पैदा हुई है उसको और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। शहर के अंदर गौ सेवा के मामले मे मंशापूर्ण गोकुल धाम, झुग्गी के बच्चों के लिए चल रही मानवता पाठशाला, भूखों को भोजन कराने के लिए रोटी बैंक, बिकलांगों की सेवा के लिए सक्षम व अन्य कई सेवा प्रकल्प बिना किसी शासकीय सहायता के शहर में सफलता पूर्वक चल रहे हैं, जो समाजसेवा के लिए भिण्ड में मिसाल बन रहे हैं, वहीं कई लोग व्यक्तिगत तौर पर भी उल्लेखनीय सेवाएं देने में पीछे नहीं हैं, ऐसा ही एक नाम चतुर्वेदी नगर जंतु की बगिया के पास निवास कर रही विवाहिता युवती स्वाती शर्मा का है, जिनके गौ सेवा भाव की प्रशंसा करने के लिए शब्दों का चयन करना मुश्किल है, जिस तरह कृष्ण भक्ति में मीरा की दीवानगी थी, कुछ वैसी ही स्वाती की गौ सेवा के प्रति दीवानगी है। उनकी गौ सेवा का बड़ा दिलचस्प बृतांत है। जिसकी जानकारी मुझे गोकुलधाम के संचालक विपिन चतुर्वेदी से प्राप्त हुई। चतुर्वेदी का कहना है कि कई सालों से गौ सेवा के क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं, मैंने पहली बार किसी महिला को गौसेवा के लिए इतने मजबूत आत्म विश्वास से भरा देखा, वे बताते हैं कि डेढ़ वर्ष पहले स्वाती एक गाय के उपचार के परामर्श व चिकित्सा सहयोग की इच्छा से गोकुल धाम आई थीं। मैंने गाय का अन्य पशु चिकत्सक विशेषज्ञों के साथ परीक्षण किया तो उसकी हालत ज्यादा खराब थी। उसके मस्तिष्क पर कैंसर का फोड़ा था, जिसका ठीक होना नामुकिन था। अनुभव के आधार पर कह दिया कि यह गाय मुश्किल से एक-दो सप्ताह जीवित रहेगी। फिर भी गोकुल धाम से जुड़े मनोज श्रीवास को घाव की सफाई कर पट्टी की जिम्मेदारी दे दी। कुछ समय बाद मनोज की सेवाएं भी बंद हो गईं, लेकिन स्वाती का मजबूत संकल्प गाय को ठीक करना था। जब मनोज का जाना बंद हो गया तो स्वाती ने स्वयं गाय के घाव की सफाई, मरहम पट्टी करना सीखा और लगातार सोलह माह से यह चिकित्सकीय कार्य पूरी सफलता से कर रही हैं। वर्तमान में गाय जीवित होने के साथ दो बछड़ों की मां है। गौरतलब बात यह है कि गाय का स्वामी कोई और बेनाम व्यक्ति है, जिसने गाय को इस गंभीर रोग से पीढि़त होने के बाद भगवान भरोसे सड़क पर छोड़ दिया था, जो घूमते-घूमते सिर से खून टपकाती हुई स्वाती के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई, स्वाती के मासूम बेटे ने गाय की हालत को अपनी मां को दिखाया तो उसके मन में कान्हा का गौ प्रेम उमड़ आया और तबसे आज तक उसकी सेवा के लिए समर्पित हंै।
गौ सेवा के लिए ससुरालजनों के सुनने पड़े ताने
स्वाती गौ सेवा में ऐसी लीन हुई कि कभी-कभी सास व पति की सेवा व बच्चे की देखभाल में अड़चन आने लगी, अधिकांश समय गौ सेवा को देने के कारण सास से आए दिन नोकझोंक से परिवार में कलह की स्थिति उत्पन्न हो गई। लेकिन वे ससुरालजनों के ताने सुनने के बावजूद भी अपने गौ सेवा कार्य से विचलित नहीं हुईं। सही कहा है किसी ने अच्छे काम में व्यवधान तो आते हैं, लेकिन रुकते कभी नहीं। अब सास भी बहू के गौ प्रेम के आगे नतमस्तक है और अब पति भी स्वाती के इस सेवा कार्य का विरोध करने के बजाय सहयोग करने लगे हैं।
साइकिल से गाय का चारा लाने स्वयं जाती है घास मण्डी
पति दुकान चलाते हैं और बच्चा बहुत छोटा है, इसलिए स्वाती गाय के लिए चारा लेने के लिए स्वयं साइकिल से कुटी मण्डी जाती है। भिण्ड में बहू का घर से सलबार सूट पहनकर कुटी मण्डी जाना शायद कोई भी ससुराल परिवार पसंद न करे, यदि ससुराल वाले एक बार कुछ कहें भी न, पर पड़ोसी व जान पहचान वाले उस बहू के परिवार पर छींटकसी करे बगैर मान नहीं सकते, ऐसा स्वाती के साथ भी हुआ, मोहल्ले वालों ने तरह-तरह की बातें करना शुरू कर दीं, पता नहीं किस देश की है, यहां के संस्कार तो नहीं। हम आपको बता दें कि स्वाती कहीं दूर कि नहीं बल्कि ग्वालियर उसका मायका है। उसके पिता गोहद में नेत्र सहायक हैं।
डेढ़ वर्ष से नहीं गई मायके, धर्म भाई को बांधी राखी
बीमार गाय की सेवा के कारण वह सोलह माह से न किसी रिश्तेदारी में गई और न अपने पीहर गई, बिहारी जी की परम भक्त है तो चार पांच दिन के लिए वृन्दावन गई थी, तो उस समय उसकी किरायेदार नीलम व उसके पति ने गाय की खूब सेवा की और उपचार में भी कोई कमी नहीं आने दी। स्वाती बताती है कि नीलम का उसे बहुत सहयोग मिला है, वह हमेशा गौ सेवा में बराबरी की सहयोगिनी रही है।
ट्यूशन पढ़ाकर निकाला गाय के इलाज का खर्चा
गाय के उपचार पर प्रति माह दो-ढाई हजार का खर्चा होता है, जिसके लिए उसने पैसा पति या सास से न लेकर स्वयं ट्यूशन क्लास व निजी विद्यालय में पढ़ाकर अर्जित कर खर्च किया है। गाय को ठीक करने के लिए हर पशु चिकित्सक विशेषज्ञ से परामर्श लिया है। उसने देश जानी मानी कथा व्यास चित्रलेखा जी से संपर्क कर गाय की चिकत्सा के लिए परामर्श मांगा, उनके यहां बहुत बड़ा गौ चिकत्सा सेवा केन्द्र पलवल में चलता है। इस गौ सेवा केन्द्र द्वारा भी गाय के उपचार की सलाह और परामर्श दूरभाष के जरिए स्वाती को मिला, जिससे उन्हें गाय के उपचार में बहुत लाभ मिला।
गाय के ममत्व का सानी नहीं
डेढ़ साल से कैंसर से जूझ रही गौ माता ने बीमारी हालत में ही बछड़े को जन्म दिया, जो पूरी तरह स्वस्थ्य और सुरक्षित है। इसका पोषण और पालन भी स्वाती शर्मा द्वारा किया गया। गाय का जर्जर शरीर और कैंसर के फोड़े की असहनीय पीड़ा के बावजूद गाय का ममत्व का सानी नहीं है। वर्षात के मौसम में खुले में रहने के कारण गाय के सिर पर कैंसर के फोड़ा को और संक्रमित होने की शंका की वजह से स्वाती शर्मा द्वारा इस गाय को आज गोकुल धाम को सौंप दिया गया। जब गाय को गोकुल धाम लाया गया तो गाय ने सबसे पहले बछड़े को दूध पिलाया। काफी देर बाद जब उसे गाड़ी से गोकुल धाम लाया गया तो उसके दोनों गौवंश उसके पीछे काफी दूर तक आए। जो दृश्य काफी मार्मिक था।
स्वाती के गौ सेवा प्रेम ठीक मीरा के भगवान कृष्ण के पे्रम की तहर है। उनके जीवन पर भी मीरा के इस भजन की लाइनें सटीक उतरती हैं। ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन, वो तो गली गली हरि गुण गाने लगीं, महलों में पली वन के जोगन चली, मीरा रानी दीवानी कहाने लगी, ऐसी कृष्ण दीवानी हुई मीराबाई की सेवा भक्ति में बेसक उस दौर के समाज के कुछ लोगों ने नुक्ताचीनी कर ढोंग बताकर उपहास उढ़ाया हो, लेकिन आज उनकी कृष्णमयी भक्ति को बड़े-बड़े संत नतमस्तक होते हैं। जब-जब अच्छे लोगों की उपेक्षा हुई और वे अपनी राह से डिगे नहीं तो उच्च शिखर तक जरूर पहुंचे हैं, कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, कुछ रीति जगत की ऐसी है, तू कोन है तेरा नाम क्या, सीता भी यहां बदनाम हुई फिर संसार की बातों से भीग गए तेरे क्यों नयना, ये लाइनें उन सभी समाज सेवियों को समर्पित हैं जो गरीबों, निसहायों व बेजुबान जीवों के साथ-साथ लोकसेवा के कार्यों में जुटे हैं, वहीं दूसरी तरफ समाज का दूसरा धड़ा सहयोग के बजाय उनका उपहास उड़ाता है, जिनकी परवाह किए बगेर आगे बढ़ते रहना है।