बेगूसराय। बिहार में उद्योग, साहित्य और संस्कृति की राजधानी माना जाने वाला बेगूसराय लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। राष्ट्रीय स्तर के दो चर्चित चेहरा प्रखर राष्ट्रवादी गिरिराज सिंह और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी के कारण हर किसी कि निगाहें बेगूसराय पर है। लेकिन बेगूसराय का चर्चा में रहना कोई नई बात नहीं है। 1957 में भी चुनाव के समय बेगूसराय देश स्तर पर चर्चित हुआ था। देश में चुनाव के दौरान बूथ लूट की सबसे पहली घटना बेगूसराय में ही हुई थी। 1957 में देश में दूसरा आम चुनाव हो रहा था। जिसमें बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के उम्मीदवार सरयुग प्रसाद सिंह और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार चंद्रशेखर सिंह के बीच आमने-सामने का मुकाबला था। चुनाव के दिन सभी जगह शांतिपूर्ण तरीके से मतदान चल रहा था। रचियाही कचहरी बूथ पर चार गांव रचियाही, आकाशपुर, राजापुर और मचहा के लोग मतदान करने आ रहे थे। इसी बीच अचानक लाठी और हथियार से लैस 20-25 लोगों ने राजापुर और मचहा के मतदाताओं को रास्ते में मतदान केंद्र पर जाने से रोक दिया। मतदान केंद्र पर मौजूद मतदाताओं को भी भगा दिया गया था। इसके बाद एक पक्ष के समर्थक ने मतदान केंद्र पर कब्जा कर जमकर फर्जी वोटिंग की। इस दौरान दो पक्षों में तनाव भी हुआ, लाठी-डंडे भी चले। बावजूद इसके बूथ लूटने वाले असामाजिक तत्व इसमें कामयाब हो गए थे। ग्रामीणों के जबरदस्त विरोध पर बूथ लूटने वाले असामाजिक तत्वों ने एक मत पेटी कुआं में भी फेंक दिया था। उस समय बूथों पर पुलिस की व्यवस्था नहीं थी और शिकायत भी नहीं दर्ज हो सकी। उस समय फोन और मोबाइल तो था नहीं कि तुरंत लोगों को जानकारी मिल जाती। बाद में इसकी गूंज पूरे देश में हुई और बेगूसराय काफी चर्चा आ गया था। चुनाव में सरयू प्रसाद सिंह विजय घोषित किए गए। अंग्रेजों के बनाये जिस तहसील कचहरी भवन में बूथ लूट की घटना हुई थी, वह जीर्णशीर्ण हालत में ही सही लेकिन अभी भी मौजूद है तथा उसी कचहरी के नाम पर मुहल्ला का नाम रचियाही कचहरी टोला है। 1957 के बाद के चुनावों में क्रमशः मतदान के दौरान सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था होती गई। बावजूद इसके कोई चुनाव ऐसा नहीं रहा, जिसमें की बेगूसराय में बूथ पर कब्जा कर एक पक्षीय वोटिंग की प्रक्रिया नहीं की गई हो। 1995 के बाद धीरे-धीरे लोग जागरूक हुए और बूथ लूट की घटना रुक-सी iगई। अब तो स्थिति काफी बदल चुकी है। ईवीएम से वोटिंग में बूथ लूट का कोई सवाल नहीं है। इसके बाद भी जब कभी चुनावी प्रक्रिया शुरू होती है तो 1957 में घटी घटना चर्चा में जरुर रहती है।