रामकृपाल को मोदी के विकास कार्य और मीसा भारती को लालू की बीमारी का सहारा
सामाजिक और जातीय समीकरण पहले जैसे, लेकिन मुद्दे बदल गये 2009 में लालू को जदयू के रंजन यादव से मिली थी शिकस्त 2014 में रामकृपाल से हारी थी मीसा
पटना। सियासत में खेमा बदलने के साथ ही सिद्धांत बदलते देर नहीं लगती।व्यावहारिक स्तर पर इस तरह के सियासी व्यवहार की स्वीकार्यता भी है। कभी-कभी अवाम खुद इस तरह के बदलाव के हक में मुहर लगा देती है। मीसा भारती की वजह से पाटलिपुत्र सीट से राजद के टिकट से वंचित होने के बाद जब रामकृपाल यादव भाजपा का दामन थाम कर 2014 में मैदान में उतरे थे तब तमाम लालू विरोधी शक्तियां उनके साथ लामबंद हो गई थीं, जबकि उन्हें पता था कि रामकृपाल यादव लालू यादव का हनुमान बनकर लंबे समय से गदर काटते रहे हैं। उस वक्त मीसा भारती को तकरीबन 40 हजार वोटों से शिकस्त मिली थी। डाले गये वोटों में कुल 9,78,649 वोट में से रामकृपाल यादव को 3,83,262 जबकि मीसा भारती को 3,42,940 वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र सीट से एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं । यदि कुछ बातों को छोड़ दिया जाये तो कमोबेश यहां के सामाजिक समीकरण और जातीय गणित में तो कुछ खास अंतर नहीं आया है, लेकिन जमीन पर चुनावी मुद्दे जरुर बदल गये हैं।
इस बार लालू यादव रांची की जेल में बंद हैं। वह भले ही खुले तौर पर मैदान में आने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन राजद की ओर से यह पूरी कोशिश की जा रही है कि लालू यादव और उनकी बीमारी को इस बार चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाया जाये। बिहार में घूम-घूमकर तेजस्वी यादव तमाम चुनावी सभाओं में लालू यादव की बीमारी और जेल के अंदर उनसे न मिलने देने पर एक बेटे की बेबसी के बारे में लोगों को बताकर उन्हें न सिर्फ भावुक कर हैं बल्कि लालू यादव के साथ इंसाफ और उनकी रिहाई कराने के नाम पर वोट देने की भी अपील आक्रमक तरीके से कर रहे हैं। राजद के इसी मुद्दे को मीसा भारती ने पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में भी उठाने का संकेत अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद खगौल के करीब शिवाला में आयोजित अपनी पहली चुनावी सभा में दिया है। इसके साथ ही वह संविधान खतरे में है का भी नारा बुलंद करती हुई नजर आ रही हैं। इसके विपरीत रामकृपाल यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास कार्यों पर और नरेंद्र मोदी को एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं।
रामकृपाल यादव के बारे में कहा जाता है कि वह जमीन से जुड़े हुये नेता हैं। राजद में रहने के दौरान ही उन्होंने अपना बहुत बड़ा नेटवर्क बनाया था। उनके नेटवर्क में हर वर्ग और जाति के लोग शामिल हैं। राजद से अलहदा होने के बाद जब उन्होंने भाजपा का दामन थामा था तब भी लालू यादव के कुछ कट्टर यादव समर्थकों को छोड़कर उनका नेटवर्क बना रहा। 2014 में पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से फतह के बाद जब उन्हें मोदी हुकूमत में मंत्री बनाया गया तब भी उनका यह नेटवर्क बना रहा। इस नेटवर्क में राजद के लोग भी शामिल थे। यहां तक कि राजद में होने वाले अहम फैसलों की जानकारी भी उन्हें पहले ही मिलती रही। हालांकि उन्होंने कभी भी निजी तौर पर लालू यादव या उनके परिवार के सदस्यों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की और न ही सियासत के मापदंडों से इतर हटकर उनके खिलाफ बयानबाजी की। एक सधे हुये राजनीतिज्ञ की तरह उन्होंने पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के लोगों से लगातार संपर्क बनाये रखा। दूसरी ओर
विपक्ष की राजनीति में होते हुये भी मीसा भारती पाटलिपुत्र के लोगों से लगातार दूर रहीं। उनसे मिल पाना भी यहां के लोगों के लिए आसान नहीं रहा है। ऐसे में वह राजद के परंपरागत मतदाताओं को भी कहां तक अपने पक्ष में कर पाती हैं, कहना मुश्किल है। और जिस तरह से शिवाला की जनसभा में तेजप्रताप यादव ने राजद के कद्दावार नेता भाई वीरेंद्र, मनेर में उनकी पकड़ और उनकी टोपी पर छिंटाकशी की है उससे राजद के कई परंपरागत समर्थक भी नाराज दिख रहे हैं। भाई वीरेंद्र ने तो अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुये यहां तक कह दिया है कि तेज प्रताप को लालू परिवार की तहजीब के मुताबिक व्यवहार करना चाहिए। यह एक तरह से मीसा भारती के लिए संकेत भी है और चेतावनी भी। राजद के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है कि पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से 2009 में खुद लालू प्रसाद यादव को भी शिकस्त मिली थी। उनके पुराने मित्र और राजद से जदयू में शामिल हुये रंजन यादव ने उन्हें हराया था। इस मुगालते में रहना कि यहां का यादव समुदाय पूरी तरह से लालू परिवार के साथ है, मीसा भारती को महंगा पड़ सकता है। उनके भाई तेजप्रताप यादव का इस क्षेत्र के यादव नेता को खुलेआम मंच पर अपमानित करने से यादवों के बिदकने की पूरी संभावना है। रामकृपाल यादव पहले से ही उन्हें अपने प्रभाव में लेने की जुगत में है।
पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र हैं- दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौढ़ी, पालीगंज और विक्रम। इन सभी विधानसभा सीटों में यादवों की अच्छी खासी संख्या है। यही वजह है कि लालू यादव ने 2009 में इस सीट से किस्मत आजमाने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी शिकस्त एक यादव नेता के हाथ ही हुई थी। 2009 में सीपीआई (एमएल) के उम्मीदावर रामेश्वर प्रसाद तीसरे और 2014 में चौथे नंबर पर थे। इन्हें तकरीबन 50 हजार वोट मिलता रहा है। इस बार मीसा भारती के लिए अच्छी खबर यह है कि सीपीआई (एमएल) ने राजद के पक्ष में अपना उम्मीदवार खड़ा करने से इंकार कर दिया है। इस बात का ऐलान खुद सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्या ने किया था। चूंकि सीपीआई का यह कैडर वोट है, इसलिए इस वोट को मीसा भारती की तरफ ट्रांसफर करने में ज्यादा मुश्किलें नहीं आएंगी। लेकिन जिस तरह से तेजप्रताप यादव खुद मंच से जाने अनजाने मीसा भारती का खेल खराब कर रहे हैं उसे लेकर मीसा को सतर्क रहने की जरुरत है। जमीनी नेता होने के साथ चाचा रामकृपाल मीसा से उम्र और अनुभव में अपनी भतीची मीसा से काफी सीनियर हैं और एक बार धूल चटा भी चुके हैं। तेज प्रताप के बिगड़ी जुबान से फायदा उठाने से वह नहीं चूकेंगे।