नई दिल्ली। भारत-चीन की सेनाएं 1,597 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बर्फ और सर्दियों में तैनाती के लिए तैयार हैं। इस बीच खबर आ रही है कि दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर की बातचीत का आठवां दौर अगले हफ्ते तक होने की संभावना है।
वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, दोनों पक्ष गतिरोध वाले स्थल पर फिलहाल शांति बहाल करने के लिए व्याकुल नहीं दिख रहा है, लेकिन उन्होंने सैन्य कमांडर और राजनयिक दोनों स्तरों पर संवाद चैनलों को खुला रखने का फैसला किया है। गतिरोध वाले बिंदुओं पर किसी भी विपरीत परिस्थिति को नहीं दोहराने देने के लिए भी बातचीत जरूरी है।
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने प्रस्ताव दिया है कि दोनों पक्ष बख्तरबंद और तोपखाने को पहले वहां से हटाएं इसके बाद पैदल सेना की बारी आएगी। भारतीय पक्ष बहुत स्पष्ट है कि बख्तरबंद इकाइयों को वापस नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि इलाके और क्षमता के कारण विरोधी को लाभ मिल सकता है।
आपको बता दें कि कोर कमांडर स्तर की सातवीं बैठक 11 घंटे से अधिक समय तक चली। सातवें दौर की सैन्य वार्ता में बीजिंग से अप्रैल पूर्व की यथास्थिति बहाल करने और विवाद के सभी बिन्दुओं से चीनी सैनिकों की पूर्ण वापसी करने को कहा। सरकारी सूत्रों ने यह बात कही। उन्होंने बताया कि पूर्वी लद्दाख में कोर कमांडर स्तर की वार्ता दोपहर लगभग 12 बजे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चुशूल क्षेत्र में भारतीय इलाके में हुई और रात साढ़े आठ बजे के बाद भी जारी रही।
सीमा विवाद छठे महीने में प्रवेश कर चुका है और विवाद का जल्द समाधान होने के आसार कम ही दिखते हैं क्योंकि भारत और चीन ने बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगभग एक लाख सैनिक तैनात कर रखे हैं जो लंबे गतिरोध में डटे रहने की तैयारी है। वार्ता के बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्रों ने कहा कि एजेंडा विवाद के सभी बिन्दुओं से सैनिकों की वापसी के लिए एक प्रारूप को अंतिम रूप देने का था। भारतीय प्रतिनिधमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और विदेश मंत्रालय में पूर्वी एशिया मामलों के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव कर रहे रहे हैं।
ऐसा माना जाता है कि वार्ता में चीनी विदेश मंत्रालय का एक अधिकारी भी चीनी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा है। सूत्रों ने बताया कि वार्ता में भारत ने जोर देकर कहा कि चीन को विवाद के सभी बिन्दुओं से अपने सैनिकों को जल्द और पूरी तरह वापस बुलाना चाहिए तथा पूर्वी लद्दाख में सभी क्षेत्रों में अप्रैल से पूर्व की यथास्थिति बहाल होनी चाहिए। गतिरोध पांच मई को शुरू हुआ था।