दैनिक जीवन में भारतीय भाषाओं के प्रयोग में हीनता की भावना नहीं होनी चाहिए : उपराष्ट्रपति
नईदिल्ली। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने लोगों से अपनी मातृभाषा बोलने में गर्व महसूस करने का आग्रह करते हुए कहा कि दैनिक जीवन में भारतीय भाषाओं के प्रयोग में हीनता की भावना नहीं होनी चाहिए।वेधी अरुगु और दक्षिण अफ्रीकी तेलुगु समुदाय (एसएटीसी) द्वारा रविवार को 'तेलुगु भाषा दिवस' के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए नायडू ने कहा कि तेलुगु एक प्राचीन भाषा है। इसका सैकड़ों वर्षों का समृद्ध साहित्यिक इतिहास है। उन्होंने कहा कि इसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नए सिरे से प्रयास करने चाहिए।
नायडू ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और उन्हें बदलते समय के अनुकूल बनाने के लिए नवीन तरीकों को अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भाषा की 'जीवित संस्कृति' को बनाए रखने के लिए जन आंदोलन की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों को अधिक से अधिक भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित करें, शुरुआत अपनी मातृभाषा में मजबूत नींव के साथ करें।
उपराष्ट्रपति ने प्रशासन में स्थानीय भाषाओं के उपयोग, बच्चों में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने और कस्बों और गांवों में पुस्तकालयों की संस्कृति को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया। उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक कार्यों का अनुवाद करने के लिए और पहल करने का भी आह्वान किया। यह देखते हुए कि भाषा और संस्कृति गहराई से जुड़े हुए हैं नायडू ने युवाओं को सलाह दी कि वे भाषा को अपनी जड़ों से जोड़ने के साधन के रूप में उपयोग करें। उन्होंने कहा, "भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं है, यह अदृश्य धागा है जो हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ता है।"
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भाषा न केवल हमारी पहचान का प्रतीक है, बल्कि हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है। इसके लिए, उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 द्वारा परिकल्पित प्राथमिक शिक्षा को अपनी मातृभाषा में होने और अंततः उच्च और तकनीकी शिक्षा तक विस्तारित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। नायडू ने व्यापक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में सुधार का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा, "यह आत्मविश्वास आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगा और धीरे-धीरे आत्मनिर्भर भारत का मार्ग प्रशस्त करेगा।"