आउटसाइडर और इनसाइडर की बहस में फंसा बॉलीवुड

विवेक पाठक

Update: 2020-06-28 13:54 GMT

युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के बाद से बॉलीवुड में नई बहस छिड़ गई है। इस समय कई मुद्दे उसी तरह बाहर आ रहे हैं जैसे गर्म होते पतीले से उबलता दूध बाहर आता है। निश्चित ही हिन्दी सिनेमा जब कोरोना संकट के कारण बाहर से थमा हुआ है अंदर ही अंदर उसमें बहुत कुछ खदबदा रहा है।

एक चर्चा चल रही है कि बाहर से आने वाले मतलब आउटसाइडर के लिए मुंबई में संघर्ष के अलावा भी कई बड़े संघर्ष हैं। अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर वह सामने आ भी जाता है तो पहले से जमा एलीट क्लास नयी प्रतिभाओं को हजम नहीं कर पाता। ऐसे कलाकारों के सूरज को उदय से पहले ही अस्त करने के तमाम प्रयास किए जाते हैं। इन चालबाजियों के पीछे कथित मठाधीश कलाकार और निर्देशकों के अपने स्वार्थ हैं। जमा जमाया अभिनेता उन कलाकारों की राह में रोड़े अटकाता है जो भविष्य में उसकी जगह ले सकते हैं। काफी दिनों से चर्चा है कि गिराने और उठाने के इस खेल में सलमान खान अग्रणी खिलाड़ी हैं। सलमान अपनी फिल्मों की चमक बनाए रखने के लिए दूसरे चमक पाते कलाकारों पर पैनी नजर रखते हैं। जो उन्हें दुआ सलाम में देरी करता है सलमान अपने संबंधों के जरिए ऐसे कलाकारों को बड़े मौके मिलने में बाधा खड़ी करते हैं। बॉलीवुड में अक्सर कहा जाता है कि सलमान और उनका गुट या तो दोस्ती निभाता है या दुश्मनी। वह निरपेक्ष नहीं रह सकते। आदित्य पंचोली सलमान के दोस्त हैं तो वे न केवल उनके बेटे सूरज को लांच करते हैं बल्कि सूरज से आगे चलने वाले युवा चेहरों की टांग खींचने में वे पीछे नहीं रहते। सलमान ने विवेक ओबरॉय से फोन पर अनबन होने पर उनके लिए फिल्मों के सारे रास्ते बंद करा दिए। हालत आगे कुछ ये हो गई कि विवेक ओबरॉय को नामी बैनर तो क्या मध्यम श्रेणी के निर्देशकों ने फिल्में देना बंद कर दीं थीं। वे कंपनी जैसी जोरदार भूमिकाओं की तलाश में रहे मगर उन्हे जैसे तैसे मस्ती, केएलपीडी जैसी फिल्में करके खुद को फिल्मों में जिन्दा रखना पड़ा।

सलमान और पाश्र्व गायक अरिजीत सिंह का विवाद जगजाहिर है। फिल्मफेयर अवार्ड से मानी बुराई के बाद सलमान ने अरजीत सिंह को अपनी फिल्म सुल्तान से बाहर निकाल दिया तो उन्हें कई दूसरी फिल्मों में गाने के मौके से भी हाथ धोना पड़ा हालांकि अरजीत सिंह अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी लोकप्रियता अभी तक बनाए हुए हैं। बीते दिनों गायक सोनू निगम ने भी कई गायकों के कॅरियर प्रभावित करने में सलमान खान की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। बॉलीवुड में बाहर से आने वाली नई प्रतिभाओं को दरकिनार करने में धर्मा प्रोडक्शन के करण जौहर और यशराज बैनर के आदित्य चोपड़ा का नाम भी सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि पहले से जमे सितारों के बेटा-बेटियों को लांच करने में करण जौहर सबसे आगे हैें। अगर वे बाहरी प्रतिभाओं को काम भी देते हैं तो उन पर पहली फिल्म से कड़ी अनुबंध शर्तों का बोझ लाद लेते हैं। इससे नए अभिनेता को पहली सफलता के बाद भी दूसरे निर्देशकों की नई कहानियों पर काम का मौका नहीं मिल पाता जिससे वे इन स्थापित निर्देशकों के साथ ही उनकी शर्तों पर काम करने को मजबूर रहते हैं आगे ये फिल्में न चलें तो फिर नवोदित कलाकारों को दूसरे निर्देशकों से कैसे भी काम नहीं मिल पाता। हालांकि इन सब चर्चाओं के बीच यह भी सही है कि आज जो इनसाइडर हैं उनमें से कइयों ने आउडसाइडर के रुप में शुरुआत की और धीरे धीरे करके मुंबई में खुद को जमाया। अमिताभ बच्चन भी इलाहाबाद से आकर तो शाहरुख खान ने दिल्ली से आकर खुद को हिन्दी सिनेमा में स्थापित किया। ये कई और भी स्थापित नाम हैं मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि तमाम क्षेत्रों की तरह बॉलीवुड में पूर्व के दशकों की तुलना में प्रतिस्पर्धा कड़ी हुई है। आज एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। नवोदित कलाकारों को स्टारकिड की तरह मिलने वाले पहले शानदार मौके के लिए अपेक्षाकृत वर्षों संघर्ष करना पड़ता है। कई टीवी से शुरुआत करके टीवी में खप जाते हैं। कई जीवनभर के लिए बैकडंासर रह जाते हैं। कई युवा कलाकार जब तक पहला मौका पाते हैं तो वे यंग और लवजोनर की फिल्मों के लिए अनफिट हो जाते हैं। इरफान भी काफी समय बाद फिल्मों में चमक पाए। ऐसा जब बहुतों के साथ होता है तब कोई सुशांत सिंह राजपूत, पंकज त्रिपाठी, आर राजकुमार, आयुष्मान खुराना सरीखा कलाकार सिनेमा को मिल पाता है इसलिए युवा प्रतिभाओं को आउडसाइडर और इनसाइडर के खेल से अलग भरपूर मौके मिलना चाहिए। सिनेमा का भविष्य इसी समावेशी भाव में है। 

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