Women Reservation Bill : महिला आरक्षण बिल पारित होते ही बदल जाएगी भारतीय राजनीति की तस्वीर, जानिए क्या है प्रावधान, कब से होगा लागू ?
सबसे पहले 12 सितंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में ससंद में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया था।
नईदिल्ली। नए संसद भवन में प्रवेश के साथ केंद्र सरकार ने आज लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि महिला आरक्षण बिल का नाम ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ होगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए हमारी सरकार एक प्रमुख संविधान संशोधन विधेयक पेश कर रही है। इसका उद्देश्य लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी को विस्तार देना है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम इस माध्यम से हमारा लोकतंत्र और मजबूत होगा।
बता दें की महिला आरक्षण विधेयक की मांग देश में पिछले 27 सालों से उठ रही है। आज हम आपको बताएंगे की आखिर महिला आरक्षण विधेयक की मांग आखिर कब-कब उठी है और इस विधेयक कमें क्या प्रावधान किए गए है।
साल 1996 में देवगौड़ा सरकार लेकर आई -
सबसे पहले 12 सितंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में ससंद में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया था। उस समय केंद्र में नाइटेड फ्रंट की सरकार थी,जिसमें 13 पार्टियां शामिल थी। इनमें से जनता दल और अन्य कुछेक पार्टियों के नेता महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं थे, इसलिए ये उस समय पास नहीं हो सका।
साल 1998 से 2004 के बीच अटल जी ने किए कई प्रयास -
- पहली बार 13 जुलाई 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने इसका पुरजोर विरोध किया। जिसके बाद पारित नहीं हो सका।
- दूसरी बार अटल सरकार ने 11 दिसंबर 1998 को लोकसभा में एक बार फिर इस विधेयक लोकसभा में पेश किया। उस समय सपा के विरोध पर ममता बनर्जी ने समाजवादी पार्टी के तत्कालीन सांसद दरोगा प्रसाद सरोज का कॉल पकड़कर उन्हें संसद से बाहर का रास्ता दिखाया था।
- 23 दिसंबर 1999 को तीसरी बार अटल सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश किया लेकिन इस बार फिर सपा, बसपा और आरजेडी ने इसका विरोध किया।
यूपीए सरकार ने राज्यसभा में पारित कराया -
25 फरवरी 2010 को यूपीए सरकार की कैबिनेट ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी। नौ मार्च 2010 को राज्यसभा में इस विधेयक को भारी मतों से पारित किया गया लेकिन सपा-राजद के विरोध के कारण यह विधेयक लोकसभा में पेश नहीं हो पाया।
मोदी सरकार ने पेश किया
अब 19 सितंबर 2023 को भाजपा नीत वाली मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पेश किया है।
महिला आरक्षण विधेयक के प्रावधान -
- महिला आरक्षण बिल की अवधि 15 साल होगी।इस अवधि को बढ़ाने का अधिकार संसद के पास होगा।
- इस अधिनियम के पास होने के बाद लोकसभा में महिला सीटों की संख्या 181 हो जाएगी।
- इस बिल के पास होने के बाद संसद सहित सभी विधानासभाओं में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी।
- एससी-एसटी वर्ग के लिए कोटा के अंदर कोटा लागू होगा।
कब होगा लागू -
- बिल के अनुसार डिलीमिटेशन के बाद ही आरक्षण लागू होगा।
- डिलिमिटेशन के लिए एक कमीशन बनाया जाएगा।
- डिलिमिटेशन के बाद करीब 30 फीसदी सीट बढ़ जाएंगी।
- डिलिमिटेशन संसद और विधानसभा दोनों के लिए होगा।
- आगामी लोकसभा चुनाव से पहले डिलिमिटेशन संभव नहीं ऐसे में ये 2029 से लागू हो सकता है।
भारतीय राजनीति पर असर -
वर्तमान में 543 सीटों वाली लोकसभा में फिलहाल सिर्फ़ 78 महिला सांसद है। वहीँ 238 सीटों वाली राज्यसभा में सिर्फ़ 31 महिला सांसद है छत्तीसगढ़ विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 14 फीसदी है। अन्य राज्यों में महिला विधायकों की संख्या 10 से 12 फीसदी है। ऐसे में महिला आरक्षण बिल पेश होने के बाद भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। लोकसभा में ही 181 सीटें बढ़ना तय है , वहीँ मप्र की बात करें तो वर्तमान में 230 विधानसभा सीटें, जिसके आधार पर 33 फीसदी यानी 76 सीटों पर महिला विधायक चुनी जाएंगी। इसके बाद आधी आबादी का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा।