कृषि मंत्री का किसानों को पत्र, कहा- 1962 के देश विरोधी आपको भ्रमित कर रहे हैं

Update: 2020-12-17 14:10 GMT

नईदिल्ली। कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा आंदोलन आज 22 वें दिन भी जारी है। अपनी मांगों को लेकर बड़ी संख्या में किसान सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए है।  किसानों को मनाने के लिए सरकार और किसानों के बीच कई दौर की चर्चा हो चुकी है लेकिन सभी बेनतीजा रही है।  इसी बीच आंदोलन कर रहे किसानों के नाम केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आज पत्र लिखा। उन्होंने आठ पेजों के इस पत्र में कृषि कानून के लाभ समझाये है।उन्होंने कहा है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर लिखित गारंटी देने को तैयार है लेकिन कुछ लोग इस कानून को लेकर भ्रम फैला रहे हैं।  

केंद्रीय मंत्री तोमर ने पत्र में लिखा है कि "मैं लगातार आप के संपर्क में हूं। बीते दिन मेरी अनेक राज्यों के किसान संगठनों से बातचीत हुई है। कई किसान संगठनों ने इन कृषि सुधारों का स्वागत किया है। वे इससे बहुत खुश हैं, किसानों को एक नई उम्मीद जगी है। लेकिन इन कृषि सुधारों का कुछ किसान संगठनों में इन्हें लेकर एक भ्रम पैदा कर दिया गया है।" उन्होंने आगे लिखा की "देश का कृषि मंत्री होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि हर किसान का भ्रम दूर करूं, हर किसान की चिंता दूर करूं। मेरा दायित्व है कि सरकार और किसानों के बीच दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में जो झूठ की दीवार बनाने की साजिश रची जा रही है, उसकी सच्चाई और सही वास्तुस्थिति आपके सामने रूखूं।"

मैं भी किसान परिवार से -

उन्होंने कहा कि वो भी किसान परिवार से आते हैं। खेती की बारीकियां और खेती की चुनौतियां दोनों समझते हैं। उन्होंने कहा कि फसल कटने के बाद उसे बेचने के लिए हफ्तों का इंतजार भी देखा है। किसान परिवार की इसी पीड़ा को समझते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है।

1962 के विरोधी किसानों को भ्रमित कर रहे -

किसानों को कानून का लाभ समझाने के साथ विपक्ष का मोहरा ना बनने की सलाह दी। उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा की जिन लोगों ने 1962 के युद्ध में देश की विचारधारा का विरोध किया था, वही लोग किसानों को पर्दे के पीछे से गुमराह कर रहे हैं, आज वे फिर से 1962 की भाषा बोल रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। किसानों की मांग है कि इन कानूनों को रद्द कर दिए जाए।किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई भी नतीजा नहीं निकल सका है। किसानों का यह आंदोलन चौथे हफ्ते में प्रवेश कर गया है और हजारों किसान सीमाओं पर जमे हुए हैं।

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