तलाक-ए-हसन को रद्द करने की सुप्रीम कोर्ट में उठी मांग, जानिए क्या है ये...

मुस्लिम महिला बेनजीर ने दायर याचिका में मांग की है कि मुसलमान औरतों भी बाकी महिलाओं जैसे अधिकार मिलने चाहिए।

Update: 2022-05-02 12:16 GMT

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले तलाक-एक-हसन और दूसरे प्रावधानों को चुनौती दी गई है।गाजियाबाद की रहने वाली मुस्लिम महिला बेनजीर ने दायर याचिका में मांग की है कि मुस्लिम लड़कियों को भी बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए।

वकील अश्विनी उपाध्याय के जरिये दाखिल याचिका में बेनजीर ने बताया है कि उनकी 2020 में दिल्ली के यूसुफ नकी से शादी हुई थी। उनका सात महीने का बच्चा भी है। दिसंबर 2021 में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया था। पिछले पांच महीने से उनसे कोई संपर्क नहीं रखा। अब अचानक अपने वकील के जरिये डाक से एक पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं।

शरीयत कानून की धारा 2 को रद्द करने की मांग - 

याचिका में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नजर में समानता और सम्मान से जीवन जीने जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। याचिका में मांग की गई है कि तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दिया जाए। याचिका में शरीयत कानून की धारा 2 को रद्द करने का आदेश देने की मांग की गई है। याचिका में डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट को पूरी तरह निरस्त करने की मांग की गई है।

तलाक ए हसन - 

तलाक ए हसन पूर्व में अवैध करार दिए गए तलाक तलाक-ए-बिद्दत की तरह है। तलाक-ए-बिद्दत में पति द्वारा तीन बार तलाक-तलाक -तलाक कहने से तलाक हो जाता था।  तलाक ए हसन में तीन बार तलाक एक साथ ना होकर तीन महीनों में होता है।पहले महीने तलाक कहने के बाद ही पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बन सकते, मगर पहला महीना खत्म होने से पहले अगर दोनों में समझौता हो जाता है और संबंध बन जाते हैं, तो तलाक रद्द मान लिया जाता है। वहीं, यदि संबंध नहीं बनते और पति दूसरे व तीसरे महीने में भी तलाक बोल देता है, तो तलाक हो जाता है।

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