स्वदेश विशेष: बांग्लादेश की स्वाधीनता और राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ का योगदान…
आज 16 दिसंबर यानि विजय दिवस है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के 93,000 सशस्त्र सैनिकों ने इस दिन भारत के सामने आत्मसमर्पण किया और 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश एक स्वाधीन राष्ट्र बना। परन्तु इस विजय की कहानी केवल रणभूमि तक सीमित नहीं है।
इस ऐतिहासिक क्षण में संघ यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का अद्वितीय योगदान भी महत्वपूर्ण था। संघ जो व्यक्ति-निर्माण और हिन्दू समाज के संगठन के माध्यम से पुण्यभूमि भारत के परम वैभव की प्राप्ति की साधना के शताब्दी-वर्ष में प्रवेश कर चूका है, ने इस युद्धकाल में अपनी प्रतिबद्धता और सेवा भाव का परिचय दिया।
अपनी स्थापनाकाल से ही जब भी राष्ट्र संकट में रहा संघ के स्वयंसेवकों ने न केवल सहायता पहुंचाई, बल्कि समाज को नई ऊर्जा और प्रेरणा दी। विजय दिवस के अवसर पर जब हम बांग्लादेश की स्वाधीनता की गाथा का स्मरण करते हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम उन मौन तपस्वियों के त्याग और कर्तव्यनिष्ठा को नमन करें, जिन्होंने राष्ट्र की आवश्यकताओं को आत्मसात कर अपने राष्ट्रीय दायित्वों का अद्वितीय निर्वहन किया।
संघ के स्वयंसेवकों ने युद्धकाल में भारत की पूर्वी सीमाओं पर जिस अकथ श्रम, अहर्निश सेवा और अडिग समर्पण के साथ शरणार्थियों की सहायता की, सीमांत क्षेत्रों की जनता में जन-जागरण का अलख जगाया, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की और सेना के साथ यथासंभव अपेक्षित सहयोग किया, वह न केवल प्रेरणादायी है, बल्कि भारत के सेवा व समर्पण के सांस्कृतिक मूल्यों का जीवंत उदाहरण भी है।
कोरोना जैसी महामारी या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय संघ के स्वयंसेवक अपनी संगठित शक्ति और सेवा भावना के साथ अनगिनत बार समाज केआह्वान पर अपने कर्तव्यों का पालन किया है। उदाहरण के लिए, इस युद्ध से लगभग एक वर्ष पूर्व जब भारी बारिश के कारण उत्तर बंगाल में महानंदा नदी उफान पर थी और मालदा शहर को बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ा, तो संघ के लगभग 150 स्वयंसेवकों ने पूरी रात बांध की मरम्मत कर शहर को विनाश से बचाया।
इससे दो साल पहले जलपाईगुड़ी कस्बे में आई भारी बारिश से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई थी। संघ के स्वयंसेवकों ने पीड़ितों के लिए भोजन, कपड़े, और राहत सामग्री पहुंचाई। वे जलपाईगुड़ी में राहत पहुंचाने वाले पहले दल थे। संघ की तत्परता और समर्पण ने न केवल पीड़ितों की मदद की, बल्कि समाज के मनोबल को भी ऊंचा किया।
राष्ट्रीय आपदा के अलावा, युद्धकाल में भी संघ ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, पठानकोट रेलवे स्टेशन पर सेना के हथियारों को ट्रकों से उतारने में स्थानीय कुलियों की हड़ताल के कारण समस्या उत्पन्न हुई।
इस स्थिति में संघ के सैकड़ों स्वयंसेवकों ने दुश्मन की गोलीबारी और सर्द मौसम की परवाह किए बिना सारा सामान उतारने का काम पूरा किया। आजादी के तुरंत बाद कश्मीर पर पाकिस्तानी आक्रमण के दौरान, श्रीनगर हवाई अड्डे की मरम्मत के लिए संघ के स्वयंसेवक आगे आए। उनके अथक परिश्रम से भारतीय वायुसेना को हवाई क्षेत्र का उपयोग करने में सफलता मिली, जिससे पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ना संभव हुआ।
संघ के शीर्ष नेतृत्व ने देशवासियों और स्वयंसेवकों को हमेशा प्रेरित किया है। 1971 के युद्ध के समय तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरूजी ने सभी राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मातृभूमि के प्रति प्रेम और निस्वार्थ देशभक्ति ही हमें जीत दिला सकती है।
उन्होंने स्वयंसेवकों से नागरिक सुरक्षा, रक्तदान, और घायल सैनिकों की सेवा करने की अपील की। इस आह्वान का प्रभाव पूरे देश में देखा गया, जब संघ के स्वयंसेवकों ने युद्ध के समय नागरिक सुरक्षा से लेकर राहत कार्यों तक हर मोर्चे पर सक्रियता दिखाई।
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान संघ ने वास्तव में दूसरा मोर्चा सँभालने का कार्य किया। तत्कालीन क्षेत्र संघचालक श्री केशवचंद्र चक्रवर्ती ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और पश्चिम बंगाल मामलों के केंद्रीय मंत्री को पत्र लिख कर कहा कि संघ के स्वयंसेवक सुरक्षा व्यवस्था में हर संभव तरीके से सरकार के साथ सहयोग करने के लिए प्रस्तुत हैं।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम ने लाखों शरणार्थियों को भारत में शरण लेने पर विवश कर दिया था। इस अभूतपूर्व संकट के समय, संघ ने "वास्तुहारा सहायता समिति" के माध्यम से इन शरणार्थियों की निःस्वार्थ सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। पश्चिम बंगाल के गांदरापोटा और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में राहत शिविर स्थापित किए गए, जहां लगभग पचास हजार शरणार्थियों को न केवल भोजन और दवाइयों की व्यवस्था की गई, बल्कि उनके आत्मसम्मान और मनोबल को ऊंचा रखने के लिए विशेष प्रयास भी किए गए।
संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी, जैसे श्री एकनाथ रानाडे और श्री भाउराव देवरस, ने इन शिविरों का निरीक्षण कर सेवा कार्यों को प्रोत्साहन और दिशा प्रदान की। इन शिविरों में शरणार्थियों के लिए केवल भौतिक सहायता तक ही सीमित न रहकर, उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करने के प्रयास भी किए गए। पश्चिम बंगाल में पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलाबारी और अतिक्रमण के भयावह समय में, संघ के स्वयंसेवकों ने अदम्य साहस और समर्पण का परिचय दिया।
बालुरघाट में पाकिस्तानी हमलों के दौरान नागरिक पलायन के लिए मजबूर हो रहे थे, किंतु संघ के स्थानीय स्वयंसेवकों ने न केवल क्षेत्र में डटे रहकर घायलों की सहायता की, बल्कि नागरिकों को भी सुरक्षा और मनोबल प्रदान किया। पश्चिम दिनाजपुर में संघ के क्षेत्र संघचालक केशवचंद्र चक्रवर्ती ने गांव-गांव भ्रमण कर लोगों को प्रोत्साहित किया और अपने गांवों में रुककर रक्षा तंत्र को सुदृढ़ करने का आह्वान किया। उनकी प्रेरणा से नागरिकों ने धैर्य और साहस का परिचय देते हुए अपने गांवों की सुरक्षा सुनिश्चित की। संघ की इस सेवा और समर्पण ने समाज के हर वर्ग को एकजुट कर राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक एकता का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
संघ के स्वयंसेवक संकट की घड़ी में केवल सेवा कार्य तक सीमित नहीं रहते, बल्कि राष्ट्रहित में अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटते। 1971 के युद्ध के दौरान, बालुरघाट के समीप स्थित चक्रमप्रसाद गांव के किशोर स्वयंसेवक चुरका मुर्मू ने इस आदर्श को अपने बलिदान से चरितार्थ किया। घातक गोलाबारी के बीच, उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए सीमा प्रहरियों को पाकिस्तानी सैनिकों की मौजूदगी की सूचना दी और उनकी हर संभव सहायता की।
इस प्रयास में उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका यह अनुपम त्याग पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया और एकता व सेवा भावना को सुदृढ़ किया। मालदा में घायल सैनिकों और उनके परिवारों की सहायता के लिए गठित नागरिक समिति में संघ के प्रचारक श्री वंशीलाल सोनी ने केंद्रीय भूमिका निभाई।
इस समिति ने रक्तदान शिविर आयोजित कर घायल सैनिकों की जीवन रक्षा में योगदान दिया और युद्ध से लौटने वाले सैनिकों के स्वागत हेतु एक स्वागत केंद्र की स्थापना की। इस केंद्र में 33,667 सैनिकों और अधिकारियों को चाय, चंदन तिलक और पुष्प देकर सम्मानित किया गया।
यह स्वागत केंद्र इक्कीस दिनों तक संचालित हुआ और इसका समूचा प्रबंधन संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किया गया। इस अद्वितीय सेवा कार्य को सम्मानित करते हुए, मालदा के जिला कलेक्टर ने संघ को आधिकारिक पत्र लिखकर आभार प्रकट किया।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम या स्वाधीनता के संघर्ष में संघ की सेवा और समर्पण भावना यह दर्शाती कि संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र और मानव सेवा को अपना सर्वोच्च धर्म मानते हैं। आज जब वही बांग्लादेश मानवता विरोधी षड्यंत्रकारियों के द्वारा अस्थिर किया गया है तब सड़क से संसद तक संघ के स्वयंसेवक अपनी-अपनी भूमिका में मानवता की रक्षा के उद्देश्य से सक्रिय दिख रहे है।