Jharkhand Election Result 2024: ये 5 बड़े कारण जिनकी वजह से झारखंड में नहीं खिला कमल…

Update: 2024-11-23 12:26 GMT

Jharkhand Assembly Election Results 2024: महाराष्ट्र में ऐतिहासिक जीत का जश्न मना रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए झारखंड का चुनाव नतीजा चौंकाने वाला रहा।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A) ने दोबारा सत्ता पर कब्जा जमाया, और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी बाधाओं को पार करते हुए अपनी सरकार बरकरार रखी। दूसरी तरफ, बीजेपी और एनडीए गठबंधन बहुमत के आंकड़े से कोसों दूर रह गया।

यह हार भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हुई, क्योंकि पार्टी के पास मजबूत रणनीति और चुनाव प्रचार का अनुभव होते हुए भी वह अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं कर सकी।

इस चुनाव में बीजेपी की हार के पीछे कई वजहें रही। आइए, उन 5 प्रमुख कारणों पर नज़र डालते हैं जो झारखंड में बीजेपी की हार की वजह बनें। 

1. मुख्यमंत्री के चेहरे की कमी

झारखंड में बीजेपी ने किसी मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान नहीं किया, जो पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन ने हेमंत सोरेन को अपना स्पष्ट नेता बताया। यह रणनीति मतदाताओं में भ्रम पैदा कर गई कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो नेतृत्व कौन करेगा। हेमंत सोरेन के पास शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत भी थी, जिसने उन्हें और अधिक विश्वसनीय बना दिया।

2. हेमंत सोरेन के लिए सहानुभूति की लहर

चुनाव से कुछ महीने पहले हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गए थे। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी गिरफ्तारी ने बीजेपी को एक बड़ा चुनावी हथियार दिया था।

हालांकि, जेल जाने के बाद हेमंत सोरेन ने इसे सहानुभूति लहर में बदल दिया। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने ‘पीड़ित कार्ड’ के तहत जनता तक पहुंच बनाई। इस रणनीति ने सोरेन को और मजबूत कर दिया। जनता ने इसे राजनीतिक साजिश माना, और यह सहानुभूति वोटों में तब्दील हो गई।

3. ईडी और सीबीआई की कार्रवाई बनी बूमरैंग

चुनाव से पहले झारखंड में ईडी और सीबीआई ने कई नेताओं के खिलाफ छापे मारे और गिरफ्तारियां कीं। भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार मिटाने का कदम बताया, लेकिन इंडिया गठबंधन ने इसे राजनीति से प्रेरित कार्रवाई करार दिया।

इसका नतीजा यह हुआ कि मतदाता इसे केंद्र सरकार की सख्ती की बजाय सत्तावादी रवैये के रूप में देखने लगे।

4. दलबदल ने पहुंचाया नुकसान 

चुनाव से पहले बीजेपी ने हेमंत सोरेन के करीबी चंपई सोरेन और उनकी भाभी सीता सोरेन को अपने पाले में लाने की कोशिश की। लेकिन, यह रणनीति पार्टी को फायदा नहीं पहुंचा सकी।

झारखंड में हमेशा से स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं। बीजेपी ने पूरे राज्य को संथाल परगना के अप्रवासी मुद्दे के इर्द-गिर्द रखा, जिससे अन्य प्रमंडलों के महत्वपूर्ण मुद्दे पीछे छूट गए। यह रणनीति राज्य के क्षेत्रीय और आदिवासी मतदाताओं के साथ जुड़ने में असफल रही।

5. (JMM) की मजबूत पकड़

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का झारखंड की राजनीति में गहरा और ऐतिहासिक प्रभाव है। पार्टी का मुख्य आधार राज्य के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्र हैं, जिनके बीच पहले से ही हेमंत सोरेन एक प्रभावी चेहरा हैं। जेल से आने के बाद हेमंत सोरेन का प्रभाव झारखंड में  ग्रामीण क्षेत्रों और खासकर आदिवासीओं के बीच और भी अधिक देखने को मिला। जेएमएम की यह गहरी पकड़ और जमीनी संगठनात्मक ताकत 2024 के चुनाव में एक बार फिर साबित हो गई।



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