सनातन संस्कृति में शंकराचार्य का है विशेष महत्व, जानिए इस..पद पर कैसे होता है चयन
वेबडेस्क।शारदा और ज्योतिर्मठ के शंकाराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का कल रविवार को निधन हो गया है। उनके निधन से दोनों मठों के शंकाराचार्य का पद रिक्त हो गया है। अब जल्द ही शारदा व द्वारका पीठ के लिए नए उत्तराधिकारी का चयन किया जाएगा।मठ के सूत्रों के अनुसार, है। दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज और दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज को नया शंकराचार्य चुना जा सकता है।
बता दें मठों के शंकराचार्य चुनने की एक प्रक्रिया है। जिसका उल्लेख आदि शंकराचार्य ने द्वारा रचित 'मठ मनाय' ग्रंथ' में है। इस ग्रन्थ में 4 मठों की व्यवस्था में शंकराचार्य की उपाधि लेने के नियम, सिद्धांत और नियम के बारे में विस्तार से उल्लेख किया है। आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित इस ग्रंथ को 'महानुशासन' भी कहा जाता है। इसी के नियमअनुसार नए शंकराचार्य का चयन किया जाता है।शंकराचार्य की चयन प्रक्रिया से पहले आइए हम आपको बता दें मठ क्या है और इनका सनातन संस्कृति में क्या महत्व है।
मठों की स्थापना -
भारत में एक समय ऐसा भी आया जब बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ गया। लाखों सनातनी अपना मत बदलकर बुद्ध के मार्ग पर चलने लगे थे। ऐसे में सनातन संस्कृति का अंत नजर आने लगा था। जिसे देखते हुए आदि शंकराचार्य ने ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में सनातन धर्म को पुनर्जाग्रत करने के लिए चार मठों और रह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी।
शंकराचार्य का महत्व -
शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है। असान भाषा में समझें तो, जिस प्रकार बौद्ध धर्म में दलाईलामा और ईसाई धर्म में पोप होते हैं, उसी प्रकार से हिंदू धर्म में शंकराचार्य होते हैं। माना जाता है कि देश में चार मठों के चार शंकराचार्य होते हैं। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की थी। ये चार मठ उत्तर में बद्री धाम का ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में स्थित गोवर्धन मठ और पश्चिम दिशा में द्वारका में स्थित शारदा मठ थे।इन मठों के मुखिया को मठाधीश या शंकराचार्य कहा जाता है।समस्त हिंदू धर्म इन चारों मठों के दायरे में आता है. विधान यह है कि हिंदुओं को इन्हीं मठों की परंपरा से आए किसी संत को अपना गुरु बनाना चाहिए।
ज्योतिर्मठ -
उत्तराखंड के बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा लेने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' संप्रदाय के नाम विशेषण हैं। ज्योतिर्मठ का महावाक्य 'अयात्मा ब्रह्म' है। त्रोतकाचार्य इस मठ के पहले मठाधीश थे। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद का अध्ययन किया जाता है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती इसके 44वें शंकराचार्य और मठाधीश थे।
गोवर्धन मठ
गोवर्धन मठ ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में स्थित है।इस मठ के तहत दीक्षा लेने वाले सन्यासियों के नाम के 'वन' और 'अरण्य' विशेषण लगाया जाता है।इस मठ में ऋग्वेद का अध्ययन किया जाता है। वर्तमान में इस मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती है।
श्रृंगेरी मठ
श्रृंगेरी मठ दक्षिण भारत के चिकमंगलूर में श्रृंगेरी मठ है। इस मठ के अंतर्गत यजुर्वेद को रखा गया है। इस मठ के सन्यासियों के नाम के आगे 'भारती' और 'पुरी' लगाया जाता है। वर्तमान में भारती कृष्ण तीर्थ इसके शंकराचार्य हैं।
शारदा मठ
गुजरात के द्वारका शारदा मठ है और इस मठ के तहत दीक्षा लेने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' विशेषण रखे जाते हैं। इस मठ का महावाक्य 'तत्वमसि' है और इसके अंतर्गत 'सामवेद' का अध्ययन किया जाता है। शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक थे। वे आदि शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे।
शंकराचार्य बनने के लिए योग्यता -
- शंकराचार्य की उपाधि धारण करने के लिए सन्यासी एवं ब्राह्मण होना चाहिए।
- शंकराचार्य बनने वाले संन्यासी को ही दंडी सन्यासी होना चाहिए अर्थात सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
- शंकराचार्य बनने वाला सन्यासी संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो लेकिन राजनीतिक न हो।
- शंकराचार्य का शरीर और मन से शुद्ध होना चाहिए।
- शंकराचार्य बनने वाले को वाक्पटु होना आवश्यक है साथ ही तर्क क्षमता अच्छी होनी चाहिए।