होली की अनोखी परंपराएं: भोपाल में होलिका दहन पर खाते है गेहूं के आटे की छोटी रोटी बनाकर

भोपाल में होलिका दहन की रात को होलिका का पूजन कर जलती अग्नि में से कुछ आग के अंगारे लाकर गेहूं के आटे की छोटी-छोटी पांच-सात रोटियां बनाकर सेंकते हैं।;

Update: 2025-03-11 15:31 GMT

भोपाल। होली का त्योहार हर समाज में उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। समाजों में एक समानता यह है कि सड़कों पर होलिका दहन होने के बाद वहीं से आग गोबर के उपलों जलाकर पूजन की जाती है। इसमें किसी के यहां गेहूं की बाली को इसी आग में भूनते हैं, तो कहीं बाटी बनाई जाती हैं।

राजधानी भोपाल में होलिका दहन की रात को होलिका का पूजन कर जलती अग्नि में से कुछ आग के अंगारे लाकर गेहूं के आटे की छोटी-छोटी पांच-सात रोटियां बनाकर सेंकते हैं, उन पर घी और गुड़ रखकर अग्नि को आहुति देकर पूरा परिवार ग्रहण करते हैं, ऐसा माना जाता है कि यह रोटियां खाने से सालभर परिवार के सदस्य स्वस्थ रहते हैं।  

गुजराती समाज में श्रीफल, अगरबत्ती, रोली और गेहूं-जौ से होली पूजन होता है। घरों में फाफड़ा, जलेबी, जलेबी, खमण, पूरी-श्रीखंड और छोले बनते हैं। मराठी समाज में होली की राख को माथे पर लगाना शुभ माना जाता है। सिख समाज में घरों में छोले-भटूरे, मक्के की रोटी, दाल मखनी और लस्सी बनाई जाती है। बंगाली समाज में होलिका दहन स्थल पर पूजा के बाद घरों में गुरु पूजन होता है।

तुलसी के पौधे को रंगीन पानी से स्नान कराया जाता है और बताशे अर्पित किए जाते हैं। महिलाएं लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनती हैं। पकवानों में शक्कर के खिलौने, भुनी पीली मटर और फ्रूट कैड़ाई शामिल रहती हैं। इसी तरह सिंधी समाज में गुलाल और लाल झंडी चढ़ाकर पूजा की जाती है। मीठी रोटी को गोबर के कंडों पर पकाया जाता है, पानी और गुलाल के छिड़काव कर प्रसाद के रूप में बांटते हैं। 

अग्रवाल समाज में होलिका दहन की आग से घर में कंडे जलाकर पूजन किया जाता है और बाटी बनाई जाती है। कायस्थ समाज में कंडों की मलरियों में अंगारे डालकर पूजन होता है और गेहूं की बाली भूनी जाती है। यादव समाज में सामूहिक होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। इसी तरह साहू समाज में पहले भगवान श्रीकृष्ण को चंदन और गुलाल अर्पित किया जाता है। उन घरों में जाते हैं, जहां किसी का निधन हुआ हो, क्योंकि वहां पहली होली होती है।

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