पवित्र श्रावण मास में शिव के स्वरूपों में कूंची से रंग भर रहीं ऋचा…
बेल्हा की ऋचा की जीवंत दिखने वाली रंगोली का हर कोई हो रहा कायल...
प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां के युवाओं ने खेल, नृत्य, कला में अलग ही पहचान बनाई है। बेल्हा की उर्वर मिट्टी के उद्यमी गोपाल केसरवानी की पत्नी ऋचा केसरवानी रंगोली के जरिए अपने हुनर का लोहा मनवा रही हैं। वह पवित्र श्रावण मास में शिव के विविध स्वरूपों में अपनी कूंची से कला के रंग भर रही हैं। त्योहारों पर जीवंत दिखने वाली उनकी रंगोली का हर कोई कायल है।
ऋचा बताती हैं कि कूंची के सहारे जीवन में रंग भरने का शौक उन्हें बचपन से ही है। त्योहारों पर देवी-देवताओं वाली रंगोली सदैव आकर्षण का केंद्र बनती है। यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है जरूरत है तो उन्हें तरास कर सही दिशा देने की। ऋचा छिपी प्रतिभाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। ऋचा कहती हैं रंगोली से जहां सकारात्मक ऊर्जा मिलती है वहीं पर्वों में नकारात्मकता दूर होती है। विभिन्न उत्सवों पर बनाई गई रंगोली ही है, जो सबसे अलग दिखती है। वह उत्सव का उत्तम माहौल देती है। ऋचा ने पारंपरिक रंगोली के साथ सामाजिक क्षेत्र में की भी रंगोली बनाने का बीड़ा उठाया है। ऋचा की मंशा है कि वह रंगोली के जरिए हुनर का जलवा देश-प्रदेश में बिखेर कर बेल्हा का नाम रोशन करें। ऋचा इस सावन में भोले बाबा की विभिन्न आकृतियों को पेंटिंग के माध्यम से बना रही हैं। इसे सोशल प्लेटफार्म पर भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक है रंगोली: भारतीय परंपरा में रंगों का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक तौर पर साबित है कि रंग मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन औषधि हैं। हिन्दू धर्म में आंगन या द्वार पर रंगोली बनाना बेहद शुभ माना जाता है। इसे घर की सुख-समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। रंगोली का महत्व साज-सज्जा या धार्मिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक स्तर पर भी है। रंगोली बनाना एक कला है और जो लोग कलाप्रिय हैं वे इसे शौक से बनाते हैं। जो हमारे प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक है।
...BY - शिवेश शुक्ल