सिनेमा जगत के पितामह कहे जाने वाले Prithviraj Kapoor, प्रधानमंत्री को भी न कहने का रखते थे दम

Prithviraj Kapoor : पृथ्वीराज कपूर का जन्म साल 1906 में पकिस्तान के फैसलाबाद में हुआ था।

Update: 2024-05-29 02:25 GMT

सिनेमा जगत के पितामह कहे जाने वाले Prithviraj Kapoor की कहानी

Prithviraj Kapoor : स्वदेश विशेष। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक शख्स को डिनर पर बुलाने के लिए गाड़ी भेजी। ड्राइवर को जिसे लेकर पीएम आवास पहुंचना था उसने साथ चलने से मना कर दिया और प्रधानमंत्री को अकेले ही डिनर करना पड़ गया। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि भारतीय फिल्म जगत के पितामह कहे जाने वाले पृथ्वीराज कपूर थे। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा भेजे गए ड्राइवर के साथ चलने से मना कर दिया था। बिना अंजाम की परवाह किए उन्होंने जवाब भिजवाया कि, 'मैं अपने साथी थिएटर आर्टिस्ट्स के साथ कहीं जा रहा हूँ। आपके द्वारा डिनर के निमंत्रण को स्वीकार नहीं कर सकता।' आइए जानते हैं पृथ्वीराज कपूर के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने किस्से।

पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) का जन्म साल 1906 में पाकिस्तान के लायलपुर (अब फैसलाबाद) में हुआ था। उनके पिता दीवान विशेश्वर नाथ कपूर पुलिस अधिकारी थे। छोटी आयु में ही उनकी मां का निधन हो गया था। उन्होंने पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की थी। पढ़ाई में वे काफी अच्छे थे लेकिन उन्हें शौक था अभिनय का। वे अभिनय करना चाहते थे। लाहौर में कई थियेटर्स उन दिनों एक्टिव थे लेकिन किसी ने पृथ्वीराज कपूर को नहीं लिया। वजह भी बेहद ख़ास थी, दरअसल उन दिनों कम पढ़े लिखे लोगों को थियेटर में लिया जाता था और पृथ्वीराज कपूर तो लॉ की पढाई कर रहे थे। ऐसे में वे गली - गली भटकते रहे लेकिन किसी थिएटर ने उन्हें मौका नहीं दिया।

ऐसे में उन्होंने तय किया यहां नहीं तो कहीं और सही। उन्होंने अपना सामान बांधा और अपनी रिश्तेदार से कुछ पैसे उधार लिए और निकल गए मुंबई के लिए। 21 साल के नौजवान पृथ्वीराज कपूर की जेब में 75 रुपए, एक हाथ में सूटकेस और दूसरे हाथ में हॉकी स्टिक थी । वे अपने सपनों को पूरा करने लिए पेशावर से मुंबई को जाने वाली फ्रंटियर मेल में बैठकर निकल पड़े। आगे क्या होगा, क्या नहीं, बिना इसकी परवाह किये।

पृथ्वीराज कपूर का व्यक्तिगत जीवन :

पृथ्वीराज कपूर 8 भाई बहनों में सबसे बड़े थे। छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई थी। 17 साल की उम्र में उनका विवाह 15 वर्षीय रामसरनी से हुआ था। उनकी भले ही अरेंज मेरिज हुई हो लेकिन कहते हैं कि, रामसरनी उन्हे पहली नजर में ही पसंद आ गई थीं। दोनों के 6 बच्चे थे। सबसे बड़े बेटे राज कपूर, फिर शशि कपूर और फिर शमी कपूर। दोनों की एक बेटी भी थी जिसका नाम उर्मिला था। बाकी दो बच्चों का बीमारी के चलते निधन हो गया था

पृथ्वीराज कपूर के जीवन के बारे में और अधिक जानने से पहले जानते हैं कि, आखिर कैसे उन्हें अभिनय करने की प्रेरणा मिली।

जहां पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) का जन्म हुआ वो जगह कला के दृश्टिकोण से इतनी समृद्ध नहीं है और न ही उनके परिवार में कोई अन्य व्यक्ति कलाकार था। वे मात्र 8 साल के थे जब उन्होंने स्कूल में हुए एक नाटक में हिस्सा लिया था। ऐसे में उन्हें अभिनय करने की प्रेरणा किससे मिली यह एक पहेली है। पृथ्वीराज कपूर को अभिनय की कला विरासत में नहीं मिली लेकिन उनकी पांच पीढ़ियों ने सिनेमा जगत में अपना योगदान दिया है।

पृथ्वीराज कपूर ने कैसे की अभिनय की शुरुआत :

अब आते हैं फ़िल्मी जगत में उनके अभिनय पर। साल 1929 में उन्होंने मुंबई में कदम रखा। काम की तलाश में इधर - उधर भटके लेकिन कुछ काम नहीं मिला। ऐसे में उन्होंने इम्पीरियल फिल्म कंपनी में एक्ट्रा कलाकार के रूप में बिना वेतन के काम करना शुरू कर दिया। एक्ट्रा कलाकार के रूप में काम करने वाला यही युवक भारतीय सिनेमा का पितामह कहलाया।

मूक फिल्म से की शुरुआत :

उन दिनों मूक फिल्म बना करती थीं। पृथ्वीराज कपूर ने भी इन्ही फिल्मों से शुरुआत की। उन्होंने 9 मूक फिल्म में अभिनय किया। इन फिल्मों में डायलॉग नहीं होते थे मात्र एक्शन से अभिनय करना होता था1 फिर बनी फिल्म 'आलम - आरा', भारतीय सिनेमा की पहली बोलती फिल्म। साल 1931 में बनी इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर ने आठ अलग - दाढ़ी लगाकर जवानी से बुढ़ापे तक की भूमिका निभाई। उनकी आवाज दर्शकों को बेहद पसंद आई। यहीं से फिल्म जगत में उन्हें पहचान मिली।

सिकंदर फिल्म में बेहतरीन एक्टिंग :

साल 1941 में सोहराब मोदी ने सिकंदर फिल्म बनाई। इसमें पृथ्वीराज कपूर ने सिकंदर की भूमिका निभाई। सिकंदर के कैरेक्टर में इतना घुस गए की खुद को ही भूल गए। सिकंदर जैसा लगने के लिए उन्होंने अपना वजन तक बढ़ाया। एक दिन सेट पर सोहराब मोदी आए तो पृथ्वीराज कपूर ने उनका अभिवादन नहीं किया। सोहराब मोदी को जब ये बात सही नहीं गई तो उन्होंने पृथ्वीराज कपूर से पूछा की क्या बात है? जवाब में पृथ्वीराज कपूर ने कहा, सिकंदर सोहराब मोदी को नहीं जानता। इतना सुनते ही सोहराब मोदी खुश हो गए और कहा कि, मोदी अपने सिकंदर को अच्छे से जानता है।

पृथ्वी थियेटर्स की शुरुआत :

पृथ्वीराज कपूर का योगदान भारतीय सिनेमा में अद्वितीय है। उन्होंने साल 1944 में पृथ्वी थियेटर्स की नींव रखी। 112 शहरों में उन्होंने अपने साथी कलाकारों के साथ करीब 2062 शो किए। व्यस्त होने के बावजूद वे अपना कोई शो मिस नहीं करते थे। उन दिनों देश में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी जारी थी, पृथ्वीराज कपूर अपने शो के माध्यम से लोगों के बीच क्रांतिकारी विचारधारा का प्रवाह करने का काम भी किया करते थे।

थियेटर के बाहर झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे पृथ्वीराज :

पृथ्वीराज कपूर के पास नाम, शोहरत, इज्जत सब कुछ था लेकिन उन्होंने कभी इसका अभिमान नहीं किया। वे अपने साथी कलाकारों के साथ अलग - अलग जगह शो किया करते थे। शो खत्म होने पर वे थियेटर के बाहर झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे। लोग जो भी पैसा देते उसका इस्तेमाल वे छोटे कलाकारों और मजदूरों के लिए किया करते थे।

थियेटर के चलते आवाज खराब :

पृथ्वीराज कपूर शो के दौरान कभी माइक का उपयोग नहीं करते थे। उन्हें पसंद नहीं था लेकिन माइक यूज न करने का खामियाजा उन्हें उनकी आवाज खोकर चुकाना पड़ा। 50 के दशक तक उनकी आवाज पूरी तरह खराब हो गई थी। कुछ फिल्म में उनकी आवाज को दूसरे कलाकार द्वारा डब कराया गया।

छोटे कलाकारों के साथ व्यवहार :

एक अच्छे व्यक्ति की पहचान इस बात से होती है कि, उसका उसके छोटों के प्रति कैसा व्यवहार है। पृथ्वीराज कपूर इस कसौटी पर बिल्कुल खरे उतरे थे। कई बार वे अपने साथी कलाकारों के लिए डायरेक्टर से लड़ जाया करते थे। एक किस्सा सिकंदर फिल्म का ही है। दरअसल, सोहराब मोदी को समय से काम करने का शौक था। उन्होंने सभी कलाकारों को समय से आने की सख्त हिदायत दे रखी थी। फिल्म में लीड रोल निभा रहे लोगों को तो काफी सुविधा थी, वो समय पर आ सकते थे लेकिन छोटे कलाकारों को इतनी सुविधा नहीं थी। आए दिन किसी न किसी कलाकार को सोहराब मोदी से डांट पड़ती। एक दिन पृथ्वीराज कपूर ने इसका विरोध किया। उन्होंने छोटे कलाकारों की स्थिति से मोदी को अवगत कराया जिसके बाद उनके लिए भी व्यवस्था की गई।

अब बात करते हैं पृथ्वीराज कपूर के करियर की सबसे चर्चित फिल्म मुगलेआजम की...।

के. आसिफ के निर्देशन में बनी इस फिल्म के बाद जब कोई बादशाह अकबर का नाम लेता है तो उसके जहन में पृथ्वीराज कपूर का चेहरा आता है। उन्होंने इस किरदार को इतने अच्छे से निभाया की आज तक इस फिल्म की चर्चा होती है। इस फिल्म से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं। उनमें से एक यह है कि, पृथ्वीराज कपूर अकबर के इस रोल को बखूबी निभाया चाहते थे। एक सीन में उन्हें अंगारों पर चलना था। दर्शकों को फील हो इसके लिए वे सच में इस सीन में अंगारों पर चल गए थे।

मुगलेआजम के लिए मात्र एक रुपए :

इस फिल्म में कई बड़े कलाकारों को लिया गया था। सभी को उस समय के हिसाब से मोटी फीस दी गई। के. आसिफ ने पृथ्वीराज कपूर को एक ब्लैक चेक दे दिया। इसे देखकर उन्होंने कहा कि, इस पर आप ही कुछ लिख लेते। इसके जवाब में के. आसिफ में कहा कि, मैं आपकी कीमत नहीं लगा सकता। आप ही इस चेक को भर दीजिए। कुछ देर चर्चा के बाद उन्होंने चेक पर एक रुपए लिख दिया। इसे देखकर आसिफ भावुक हो गए। जिस फिल्म ने करोड़ों रुपए कमाए उसके लिए सबसे महान कलाकार ने मात्र एक रुपए लिए।

दरियादिली की मिसाल :

पृथ्वीराज कपूर दरियादिली की मिसाल थे। उनके घर से कोई भी जरूरतमंद खाली हाथ नहीं जाता था। जब भी कोई उनसे मदद मांगने आता तो वे उससे पूछते थे की उसे क्या आता है? फिर जो भी काम उसे आता वही नौकरी उसे दे दी जाती। एक व्यक्ति उनके पास मदद मांगने आया तो पृथ्वीराज कपूर ने उससे पूछा कि, तुमको क्या आता है जवाब में उसने कहा मलयालम। बस फिर अगले दिन से वो व्यक्ति पृथ्वीराज कपूर को मलयालम सिखाने आने लगा। ऐसे ही कुछ अन्य लोग उन्हे अलग - अलग भाषा सिखाया करते थे। एक दिन में वे 6 से 7 क्लास अटेंड करते थे। सबसे रोचक बात तो यह है कि, एक व्यक्ति तो उन्हे टाइपिंग सिखाने तक आता था। वे अपने हर शिक्षक को हर महीने 200 रुपए दिया करते थे।

अब बात करते हैं उनके और जवाहरलाल नेहरू के रिश्तों की...।

यह बात सभी जानते हैं कि, जवाहरलाल नेहरू कला के प्रेमी थे। पृथ्वीराज कपूर के प्रति उनका स्नेह भी स्वाभाविक था। पृथ्वीराज कपूर नेहरू के काफी करीबी माने जाते थे। उनकी करीबी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि, वे संसद में कदम रखने वाले भारत के पहले कलाकार थे। राज्यसभा में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया गया था।

पंडित नेहरू, पृथ्वीराज कपूर का काफी सम्मान किया करते थे। एक दिन जब उन्होंने डिनर पर आने से मना कर दिया तो जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें उनकी पूरी टीम के साथ अगले दिन डिनर पर इनवाइट किया। तीन मूर्ति भवन में पृथ्वीराज कपूर के साथ 60 लोग डिनर पर पहुंचे थे। नेहरू ने सभी के साथ प्राइवेट डाइनिंग रूम में बैठकर डिनर किया और पूरा मुजियम घुमाया।

पृथ्वीराज कपूर की मृत्यु :

29 मई, साल 1972 को पृथ्वीराज कपूर का कैंसर की बीमारी के चलते निधन हो गया था। उनकी मौत के 16 दिन बाद उनकी पत्नी रामसरनी का भी निधन हो गया। भारतीय सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाने वाले पृथ्वीराज कपूर जिन्हे 'पापा जी' कहकर बुलाते थे दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन अपने पीछे वे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जिसे आज तक दुनिया याद करती है।

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