जानिए कौन हैं पचायंत के बिनोद, जिन्‍होनें अपनी दमदार एक्टिंग से जीता लाखों लोगों का दिल...

अगर आप भी पंचायत देखकर बिनोद के फैन हो चुके हैं तो आपको भी बिनोद यानी अशोक पाठक के बारे में ये बातें जरूर जाननी चाहिए।

Update: 2024-06-25 10:00 GMT

“सचिव जी, अगर कोई पूछे कि हथोड़ा कौन दिया था, जो हमारा नाम मत लीजिएगा, बिनोद नाम है हमारा” पंचायत सीजन 3 का यह डॉयलाग सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।

वैसे तो पंचायत सभी कलाकारों की हर तरफ जमकर तारीफ हो रही है और उनमें से एक हैं अशोक पाठक, जी हां पंचायत के बिनोद का असली नाम अशोक पाठक है, जो बिहार के रहने वाले हैं।

दरअसल, ‘देख रहा है ना बिनोद’ अब एक वायरल मीम मटेरियल बन चुका है। लेकिन बिनोद का किरदार निभाने वाले अभिनेता को कभी यकीन नहीं था कि उनके यह डायलॉग और उनके किरदार को इतना पसंद किया जाएगा।

अगर आप भी पंचायत देखकर बिनोद के फैन हो चुके हैं तो आपको भी बिनोद यानी अशोक पाठक के बारे में ये बातें जरूर जाननी चाहिए।

11 साल से एक्टिंग कर रहे हैं बिनोद...

अशोक 11 साल से एक्टिंग कर रहे हैं। पंचायत से पहले बिनोद आखिरी बार आर्या 2 में दिखाई दिए थे, मीडिया से बात करते हुए बिनोद बताते हैं कि वह पंचायत के सीज़न 2 के लिए ऑडिशन देने में झिझक रहे थे। उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्हें चुना जाएगा या उनका किरदार उन्हें लंबे समय से प्रतीक्षित प्रसिद्धि दिलाएगा।

पंचायत में काम नहीं करना चाहते थे अशोक


पंचायत सीजन में प्रधानजी के नए राजनीतिक दुश्मन भूषण को पेश किया गया। भूषण ने फुलेरा में राजनीतिक हवा को मोड़ने के लिए बिनोद को एक साइड किरदार के रूप में इस्तेमाल किया गया है।

बिनोद बताते हैं कि "जब मुझे कास्टिंग से कॉल आया, तो मैं बहुत निराश हुआ। दरअसल, पिछले कई सालों से मैं स्ट्रीट वेंडर, ड्राइवर या सिक्योरिटी गार्ड जैसे किरदार निभा रहा हूं। ऐसे में मुझे लगा कि यह किरदार बिनोद भी ऐसा ही है। मैं दो-तीन दिन के लिए ऑडिशन टालता रहा। कास्टिंग वाले मेरे दोस्त हैं, इसलिए मैं उन्हें मना भी नहीं कर सका।"

बचपन से ही एक्टिंग करना चाहते थे अशोक

हम सबसे सबके फेवरेट अशोक ने बचपन के दिनों से ही इन्होंने काफी स्ट्रगल देखा है। अशोक बताते हैं कि अब वह 9th क्‍लास में थे तब अशोक के चाचा रूई बेचने का काम करते थे, अशोक ने भी बचपन से ही उनकी मदद करना शुरू कर दिया।

अशोक का कहना है कि वह साइकिल पर रूई का गठ्ठर लेकर कई दूर तक बेचने जाते थे और इस काम से वह रोजाना करीब 100 रूपये तक कमा लेते थो। उन पैसों से उन्‍होनें एक दिन उन्होंने थिएटर में फिल्म भी देखी। तभी से अशोक ने यह फैसला कर लिया कि उन्‍हें एक्‍टर बनना है।

इसके बाद अशोक का परिवार कामकाज के सिलसिले में हिसार चला गया, और वहां से अशोक ने बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज में दाखिला लेने के बाद अशोक के जीवन में बड़ा परिवर्तन शुरू हुआ। अशोक का मानना है कि उनके जीवन में जो भी सफलता उन्होंने पाई है, उसमें कॉलेज की शिक्षा का सबसे बड़ा योगदान है। 

दरअसल, सिंगिंग और फिल्मों के शौकीन अशोक ने कॉलेज के समय से ही थिएटर में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। चाहे वह कल्चरल फेस्टिवल हो या थिएटर प्ले, हर जगह अशोक सबसे आगे रहते थे। इसी दौरान उन्होंने बॉलीवुड में जाकर एक्टिंग का सपना भी देखना शुरू कर दिया था।

अशोक बताते हैं कि कॉलेज फेस्टिवल में प्ले कराने के लिए अशोक को करीब 40 हजार रुपये मिले थे, जिनसे वे मुंबई पहुंच गए। मुंबई पहुंचते ही उन्होंने कई ऑडिशन पास किए और काम मिलना शुरू हो गया।

आज अशोक बॉलीवुड में एक जाना माना चेहरा हैं और सब उनके अभिनय को खूब पसंद कर रहे हैं। 

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