ग्वालियर। ग्वालियर चंबल संभाग की 34 सीटों में से पांच-पांच सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस व भाजपा 25 सालों से लगातार हार का सामना कर रही है। इन सीटों पर दोनों ही पार्टियों ने अपने हारे हुए प्रत्याशियों को जहां दोहराया तो वहीं कई सीटों पर निर्दलीय या दूसरे क्षेत्रीय दलों के विजयी प्रत्याशियों को भी मौका देकर सीट हथियाने की कोशिशें की लेकिन दोनों को ही इस नीति से कोई सफलता नहीं मिली।
आइये पहले बात करते हैं कांग्रेस की उन पांच सीटों की जहां कांग्रेस राष्ट्रपति शासन के बाद 1993 से लेकर 2013 तक पांच बार हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज नहीं कर सकी है। इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार गिरा है। दिग्विजय सरकार जब 1993 में सत्ता में आई थी तब भी इन सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों को हार मिली थी और इन सीटों पर आज तक पार्टी अपनी पकड़ मजबूत नहीं बना सकी है। तब से पांच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन आज भी कांग्रेस को इन सीटों पर अपने प्रत्याशियों की जीत का इंतजार है। ग्वालियर चंबल संभाग की 34 में से जिन पांच सीटों पर कांग्रेस लगातार हार रही है उनमें मुरैना जिले की अंबाह, भिंड की मेहगांव, शिवपुरी की पोहरी व शिवपुरी, अशोक नगर की अशोक नगर शामिल हैं। इनमें से अंबाह सीट पर भाजपा लगातार 1993 से 2008 तक काबिज रही। जबकि 2013 में बसपा ने यहां से जीत दर्ज की। मेहगांव में तीन बार भाजपा तो 1993 में बसपा व 2003 में निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की। पोहरी में भी तीन बार भाजपा तो 1993 में निर्दलीय व 2003 में राष्ट्रीय समानता दल विजयी हुई। शिवपुरी में 1993 से 2013 तक पांच बार भाजपा का प्रत्याशी विजयी हुआ। हालांकि बीच में 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को विजय मिली लेकिन वे एक साल तक ही विधायक रहे और 2008 के चुनाव में वे हार गए। अशोकनगर में तो 1990 से ही कांग्रेस जीत के लिए तरस रही। यहां एक बार 1998 में बसपा प्रत्याशी को जीत मिली शेष सभी चुनावों में भाजपा का ही राज रहा।
प्रयोग भी किए लेकिन नहीं मिली सफलता
इन हारी हुई सीटों पर कांग्रेस ने कई प्रयोग किए लेकिन हर बार वह जनता की नजरों से दूर ही रही। अंबाह में तो पार्टी ने 1993 से लेकर 2013 तक हर बार नया चेहरा उतारा लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। मेहगांव में पार्टी ने 1993 से 2013 तक तीन बार हरिसिंह नरवरिया को टिकट दिया लेकिन एक बार भी वे करिश्मा नहीं दिखा पाए। हालांकि पार्टी ने 2003 व 2013 में नए लोगों को टिकट दिया लेकिन यह भी पार्टी को जीत नहीं दिला सके। पोहरी में दो बार वैजयंती वर्मा व तीन बार नये लोगों को टिकट देना भी कांग्रेस को कोई सफलता नहीं दिला सका। अशोकनगर में भी कांग्रेस ने 1993 से ही हर बार नया चेहरा उतारा लेकिन यहां भी उसे यह चेहरे कोई लाभ नहीं दिला सके।
भाजपा के लिए सपना रही लहार, पिछोर व राघौगढ़
कांग्रेस ही नहीं बल्कि पिछले 23 साल से भाजपा भी अंचल की पांच सीटों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पायी हैं। इनमें से लहार, पिछोर व राघौगढ़ तो ऐसी सीटें हैं जहां से भाजपा 1993 से 2003 तक हुए चुनाव में लगातार हारती रही है। लहार में गोविंद सिंह 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़कर जो काबिज हुए वे अब तक इस सीट पर अपना वर्चस्व जमाये हुए हैं। अंचल की यह तीन सीटें हमेशा से भाजपा के लिए चुनौती रही हैं। राघौगढ़ में तो भाजपा ने हर बार अपना प्रत्याशी भी बदला लेकिन इस प्रयोग से उसे कोई फायदा नहीं मिला। लहार में मथुरा प्रसाद महंत को भाजपा ने तीन बार टिकट दिया लेकिन वे इस सीट पर जीत दर्ज नहीं करा पाए। जबकि बाद के तीन चुनावों में नये चेहरे उतारने का भी भाजपा को कोई लाभ नहीं मिला। पिछोर में भी नया चेहरा कोई कमाल नहीं दिखा पाया। जौरा, विजयपुर व भितरवार ऐसी सीटें हैं जहां भाजपा का कोई खास प्रभाव नहीं रहा। जौरा में 2013 का चुनाव छोड़ दें तो 1990 से 2008 तक यहां तीन बार जहां बसपा काबिज रही तो वहीं एक बार जनता दल व कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी हुए। विजयपुर विधानसभा सीट पर भी भाजपा का कोई खास प्रभाव देखने को नहीं मिला। जीत के लिहाज से यहां भाजपा 1998 के चुनाव में ही जीत दर्ज करा सकी जबकि 1990 से लेकर 2008 तक वह इस सीट से बाहर ही रही।