सीकर/स्वदेश वेब डेस्क। एक घर में 647 मतदाता, यह प्रशासनिक मजबूरी है या लापरवाही इसका आंकलन कानूनी तौर पर ही संभव है लेकिन निर्वाचन विभाग ने मतदाताओं के प्रति अपनी जवाबदेही के रूप में इसे घोषित कर दिया है।
विधानसभा क्षेत्र सीकर के शहर में एक ऐसी बस्ती है जिसके वाशिंदों के ठिकाने को कोई कानूनी अधिकार ही नहीं है। अपनी खानाबदौश जिंदगी जीने वाले इस बस्ती के वाशिंदों को मताधिकार के अधिकार देना अपने आप में देश में प्रजातंत्र की मजबूती माना जा सकता है। शहर के वार्ड नम्बर 27 में वन भूमि में वर्षों से सैंकड़ों परिवार झोपड़पट्टियों में रह कर अपना जीवन यापन कर रहे है। शहर के बीच रोडवेज डिपो के पास स्थित इस अवैध बस्ती के निवासियों पर मेहरबान जिला प्रशासन ने भी कोई कार्रवाई नहीं की है अलबत्ता इन्हें शहर के मूल वाशिन्दों में ही समाहित कर मताधिकार देकर मजबूती प्रदान की है। सभी मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहां के निवासियों को एक ही मकान के निवासी मानकर एक ही परिवार के रूप में मतदाता पहचान पत्र आवंटित किए गए है।
निर्वाचन विभाग की ओर से जारी सीकर विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची के भाग संख्यां 76 में मकान संख्यां 1312 में 647 मतदाता है। क्षेत्र के ब्लाक लेवल अधिकारी की ओर से एक एक झोपड़पट्टी में जाकर मतदाताओं के नाम दर्ज कर सभी को एक ही मकान का निवासी मानकर मतदाता सूची में सम्मिलित किया है। यह अलग बात है कि यहां के बहुभाषी व बहुधर्मी परिवारों से समर्थन जुटाने की जुगत राजनीतिक प्रतिनिधियों के लिए काफी कठिन है लेकिन कचरा बीनने से लेकर श्रमसाध्य कार्य से जीविका चलाने वाले इस बस्ती के मतदाताओं की समस्याओं पर गत कई चुनावों में कोई ध्यान नहीं दिया गया है। हालांकि एक राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल की ओर से मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजस्थान को इस संबघ में शिकायत दर्ज भी कराई गई लेकिन जिला निर्वाचन विभाग की ओर से मतदाता सूची में किसी प्रकार के संशोधन अथवा जांच करने में विवशता होने को ही अपनी जवाबदेही माना।(हिस)