रीवा। वर्ष 2018 के चुनावी रण में मऊगंज विधानसभा क्षेत्र का नतीजा चाहे जो भी रहे मगर भारतीय जनता पार्टी के लिये सदैव सूख रहा है। वर्ष 1952 से वर्ष 2013 तक के विधानसभा चुनावों के परिणाम पर दृष्टिपात किया जाय तो सिर्फ एक मर्तबा ऐसा मौका आया है जब मऊगंज में भाजपा का कमल खिला था। वर्ष 1985 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जगदीश प्रसाद मसुरिहा ने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस प्रत्याशी अच्युतानंद को पराजित किया था। निश्चित तौर पर भाजपा यहॉ का सूखा समाप्त करने के लिये हर तरह के चुनावी दांव-पेंच के सहारे मतदाताओं के मानस को भुनाने का काम करेगी? मऊगंज में भाजपा कितने पानी में रहेगी इसका पूर्वानुमान प्रत्याशी की घोषणा उपरांत लग जायेगा? मऊगंज क्षेत्र की जनता ने सोशलिस्ट,निर्दलीय से लेकर कांग्रेस तथा बसपा के उम्मीदवारों को एक से अधिक बार चुनाव जिताकर विधानसभा भेजा है। भाजपा पर उसने केवल एक बार भरोसा जताया।
पूर्व के चुनावां में खर्च की स्थिति जो भी रही हो किन्तु पिछले कुछ चुनावों से यह देखने को मिल रहा है कि प्राय:राजनैतिक दल प्रजातंत्र पर अर्थतंग का हथौड़ा चलाने में कोई कमी नहीं करते हैं। धनबल और बाहुबल का ही चुनाव होता है। यदि कहीं निर्वाचन आयोग सख्त न हुआ होता तो लोकतंत्र के मायने शायद ही रह जाते?
57 में दो लोगों के साथ चुने जाने का था प्रावधान
मऊगंज क्षेत्र के साथ कई बातें जुड़ी हुई हैं जिनके बारे में बहुत से लोगों को मालूम तक न होगा। मऊगंज क्षेत्र न होकर पहले हनुमना विधानसभा क्षेत्र था वहीं मऊगंज विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 52 तथा 57 के चुनाव में दो व्यक्तियों के एक साथ चुने जाने का प्रावधान था जिसमें क प्रत्याशी अनुसूचित जाति का होना आवश्यक था। सन् 1952 में सोशलिस्ट से सागिदा एवं निर्दलीय सोमेश्वर सिंह तथा 1957 में निर्दलीय अच्युतानंद मिश्र एवं कांग्रेस प्रत्याशी सहदेव(अजा) चुनाव जीतकर विधायक बने थे।
एक साथ दो-दो विधायक देने वाला मऊगंज क्षेत्र सन् 1962 के आमचुनाव में अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित था। वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव में यह सीट अनारक्षित हो गयी। मऊगंज की जनता ने अच्युतानंद मिश्र, जगदीश प्रसाद मसुरिहा, छोटेलाल,रामधनी मिश्रा,उदय प्रकाश मिश्रा, डॉ. आईएमपी वर्मा, लक्ष्मण तिवारी एवं सुखेन्द्र सिंह बन्ना को विधायक बनाया वहीं केशव प्रसाद पाण्डेय,राकेश रतन सिंह,अखण्ड प्रताप सिंह जैसे नेताओं को खारिज कर दिया। यद्यपि अखण्ड प्रताप सिंह ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है,उनका क्षेत्रीय जनता से सतत् सम्पर्क बना हुआ है। भाजपा टिकट के प्रबल दावेदारों में श्री सिंह शुमार हैं किन्तु समीकरण बन रहे हैं उससे राजेश पाण्डेय या प्रदीप पटेल की संभावना बढ़ गयी है। ब्राम्हण एवं पटेल वर्ग से ही भाजपा किसी को मैदान में उतार सकती है?
पहले हनुमना के नाम से था विस क्षेत्र
गौरतलब है कि वर्ष 1952 के आम चुनाव के समय मऊगंज विधानसभा क्षेत्र हनुमना के नाम पर था। मऊगंज बाद में विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था। यहॉ के मतदाता सहित समूची जनता प्रत्येक दलीय प्रत्याशियों के नाम घोषित होने का इंतजार कर रही है। कांग्रेस से तो सुखेन्द्र सिंह बन्ना ही उम्मीदवार हो सकते हैं,देखना है कि भाजपा किस समीकरण के आधार पर प्रत्याशी घोषित करती है। बसपा अपना उम्मीदवार मृगेन्द्र सिंह को घोषित कर चुकी है। मऊगंज क्षेत्र का चुनावी संग्राम रोमांचक होगा,इसमें लेशमात्र संशय नहीं है?