भोपाल/स्वदेश वेब डेस्क। यूं तो मध्यप्रदेश में सपा का असर भाजपा और कांग्रेस जितना नहीं है, लेकिन पार्टी बसपा के बाद चौथी ताकत जरूर रही है। बुंदेलखंड, खासतौर पर उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे टीकमगढ़ और निवाड़ी जिलों में पार्टी का वोट बैंक है। सपा ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2003 के चुनाव में किया था, जब उसके सात विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे।
2003 विधानसभा चुनाव में सपा का प्रदर्शन देख हैरान थे चुनावी पंडित
सपा ने 230 में से 161 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिनमें से 7 को जीत मिली थीं। जिन सीटों पर साइकिल जमकर दौड़ी थीं, उनमें शामिल थीं, उनमें छतरपुर, चांदला, मैहर, गोपदबनास, सिंगरौली, पिपरिया और मुल्ताई। सपा को कुल 5.26 फीसदी वोट हासिल हुए थे। छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद मध्यप्रदेश में यह पहला विधानसभा चुनाव था और कांग्रेस के 10 साल के राज के बाद भाजपा 173 सीटों के साथ सत्ता में लौटी थी।
1998 विधानसभा चुनाव में 94 में से 4 उम्मीदवार पहुंचे थे विधानसभा
यह अविभाज्य मध्यप्रदेश का आखिरी चुनाव था। कुल 320 सीटें थीं। सपा ने 94 पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 4 को जीत मिली थी और 84 की जमानत जब्त हो गई थी। रौन, दतिया, चांदला और पवई के मतदाताओं ने सपा पर भरोसा किया था। पार्टी को कुल 4.83 फीसदी वोट मिले थे।
2008 विधानसभा चुनाव में मीरा यादव ने रखी थी लाज
इन चुनाव में सपा ने 187 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिनमें से एक को जीत मिली। निवाड़ी से मीरा यादव ने सपा का खाता खोला था। शेष 183 की जमानत जब्त हो गई थी। पार्टी को 2.46 फीसदी वोट मिले थे। तब के चुनाव में भी भाजपा का दबदबा कायम रहा और 230 में से 143 सीटें जीतकर उसने एक बार फिर सरकार बनाई थी।
2013 विधानसभा चुनाव में सपा नहीं खोल पाई थी खाता
2013 विधानसभा चुनाव में सपा खाता नहीं खोल पाई थी। तब मोदी लहर और शिवराज का जादू ऐसा चला कि 165 सीटें लाकर भाजपा लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाबी रही थी। तब के चुनाव परिणामों में कांग्रेस को 58, बसपा को 4 और निर्दलीय को 3 सीटें मिली थीं। सपा ने 164 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 161 जमानत जब्त हो गई थी।