दिनेश शर्मा/ग्वालियर। कर्नाटक में कुमार स्वामी की ताजपोशी के दौरान नजर आई विपक्षी एकता मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव आते ही बिखर गई। इसके साथ ही प्रस्तावित महागठबंधन का भी गर्भपात हो गया। अब हर बार की तरह इस चुनाव में भी विपक्षी दल 'अपनी-अपनी ढपली-अपना-अपना रागÓ बजाते नजर आ रहे हैं। यानी कि इस बार भी विपक्षी दल आगे निकलने की होड़ में एक-दूसरे की जड़ों को खोदने का काम करेंगे। ऐसे में सत्ता की चाबी किस दल के हाथ लगेगी? इसका फैसला तो जनता ही करेगी, लेकिन एक बात तय है कि अब मध्यप्रदेश की अधिकांश सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होने की बजाय कहीं त्रिकोणीय तो कहीं चतुष्कोणीय मुकाबला होगा।
चुनाव आने से पहले तक पूरा विपक्ष एक दिख रहा था। विपक्ष ने मिलकर जनता में भाजपा की फिजा बिगाडऩे के लिए कई षड्यंत्र रचे। अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के बहाने हुई जातीय हिंसा इसी षड्यंत्र का एक हिस्सा थी। चुनाव की तस्वीर पर इन षड्यंत्रों का कितना असर पड़ेगा? इसका जवाब चुनाव परिणाम देंगे, लेकिन चुनाव का बिगुल बजते ही जब निजी हित टकराए तो विपक्ष तांश के पत्तों की तरह बिखर गया। अब इन विपक्षी दलों के लिए एकता के कोई मायने नहीं रहे। धनुर्धर अर्जुन को जिस तरह चिडिय़ा की आंख दिख रही थी, उसी तरह सभी विपक्षी दलों को सत्ता की कुर्सी दिख रही है।
महागठबंधन नहीं होने से अब मध्यप्रदेश में जो परिस्थितियां निर्मित हुई हैं, उससे साफ नजर आ रहा है कि यहां विपक्षी दल एक-दूसरे को ही नुकसान पहुंचाने का काम करेंगे। यहां बता दें कि पिछले चुनाव में बसपा को भले ही 6.265 प्रतिशत मत मिले थे, लेकिन उसने जहां चार सीटें जीती थीं वहीं बसपा 10 सीटों पर दूसरे, 56 सीटों पर तीसरे और आठ सीटों पर चौथे स्थान पर रही थी। कुल मिलाकर 230 में से 78 सीटों पर बसपा का अपना अच्छा-खासा जनाधार है। इन सीटों पर बसपा के प्रत्याशी कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएंगे। इसके अलावा समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस की जड़ों में मठा डालने के लिए तैयार है। कांग्रेस द्वारा गठबंधन नहीं करने से नाराज सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एलान कर दिया है कि कांग्रेस अपने जिन नेताओं को टिकट नहीं देगी, उन्हें सपा अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारेगी। इससे कांग्रेस को दोहरा नुकसान होना तय है। यहां उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि उत्तर प्रदेश से लगे कई विधानसभा क्षेत्रों में सपा का असर है। पिछले चुनाव में सपा ने 1.1960 प्रतिशत मत हासिल किए थे। सपा जहां शमशाबाद में तीसरे तो मेहगांव, टीकमगढ़ और आमला (बैतूल) में चौथे नम्बर पर रही थी।
बसपा की जड़ों में मठा डालेगा बसंद
सपा-बसपा जहां कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम करेगी तो वहीं बहुजन संघर्ष दल भी यदि चुनाव मैदान में उतरा तो वह ग्वालियर-चम्बल की 34 सीटों पर बसपा की जड़ों में मठा डालने का काम करेगा क्योंकि इस अंचल में बसंद का अपना मजबूत संगठन है। बसंद को पिछले चुनाव में 0.5003 प्रतिशत मत मिले थे। बसंद ने पिछले चुनाव में गोहद, भाण्डेर, शिवपुरी में तीसरा, सबलगढ़, अटेर, भिण्ड, मेहगांव, भितरवार, सेंवड़ा में चौथे स्थान पर रहा था।
महाकौशल और विंध्य में गोंगपा बढ़ाएगी कांग्रेस की मुश्किलें
महाकौशल और विंध्य इलाकों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एवं अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी का लगभग 80 सीटों पर प्रभाव है। पिछले चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 1.0005 प्रतिशत और अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी ने 0.3348 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे। ये दोनों दल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों की ही मुश्किलें बढ़ाने का काम करेंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय समानता दल एवं वामपंथी दलों सहित अन्य छोटे दल भी चुनाव मैदान में होंगे, जिनसे भी ज्यादातर कांग्रेस का ही नुकसान होने की संभावना है।
बसपा के धुर विरोधी बरैया ने चुनाव से पहले ही मानी हार
मध्यप्रदेश में कभी बसपा के सिरमौर रहे और अब बसपा के धुर विरोधी बहुजन संघर्ष दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष फूलसिंह बरैया चुनाव से पहले ही हार मानते नजर आ रहे हैं। स्वदेश से दूरभाष पर हुई बातचीत में श्री बरैया ने कहा कि महागठबंधन के बिना चुनाव में कोई रंगत नहीं आएगी। सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में जनता का कोई भरोसा नहीं है कि वह किस ओर मुड़ जाए। स्थिति अनिश्चतता भरी है, इसलिए हमारी पार्टी की ओर से फिलहाल तो चुनाव लडऩे की तैयारी बंद है। उन्होंने कहा कि हमने बहुत चुनाव लड़े हैं। जरूरत पड़ी तो हम इस बार का चुनाव छोड़ देंगे। यदि गठबंधन नहीं हुआ तो हम किसी भी दल का साथ नहीं देंगे और चुनाव होने तक कश्मीर चले जाएंगे। हालांकि मध्यप्रदेश में शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रितक जनता दल (एलजेडी) का नेतृत्व कर रहे गोविंद यादव छोटे दलों को मिलाकर महागठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि वे इसमें सफल रहे तो हम भी उनके पीछे लग जाएंगे। बातचीत में श्री बरैया ने माना कि यदि महागठबंधन नहीं बना और सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े तो निश्चित रूप से मध्यप्रदेश में भाजपा चौथी बार अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाएगी।