अवैध रेत खनन से घड़ियाल और डॉल्फिन सेंचुरी को खतरा: कई स्थानों पर टूटने लगी है चंबल नदी की धारा…

रेत माफिया के बुलंद हौसलों से दुखी हैं पर्यावरण प्रेमी;

Update: 2025-04-03 05:58 GMT
कई स्थानों पर टूटने लगी है चंबल नदी की धारा…
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विशेष संवाददाता, भोपाल/ग्वालियर। ग्वालियर चम्बल की सबसे बड़ी और साफ पानी की नदी चंबल के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। वजह है नदी के मुहानों से रेत का अवैध खनन। अदालत और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की रोक के बावजूद चंबल से रेत का अवैध खनन जारी है। ऐसे में चंबल के अस्तित्व को तो खतरा है ही, इससे आसपास का पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ने के कगार पर है। अवैध रेत खनन से यहां बनाई गई घड़ियाल और डॉल्फिन सेंचुरी के अस्तित्व को खतरा है।

रेत माफिया ने बेतहाशा खनन कर चंबल का सीना जगह-जगह छलनी कर दिया है। श्योपुर, सबलगढ़ से लेकर अंबाह, पोरसा और उधर भिंड में अटेर उसेद घाट तक माफिया इस कदर चंबल को खोदने में लगे हैं कि कई स्थानों पर तो नदी की धारा ही टूटने लगी है। इन हालातों को लेकर पर्यावरण प्रेमी न केवल चिंतित हैं बल्कि दुखी भी हैं। दूसरी तरफ शासन प्रशासन, न्यायालय और एनजीटी के निर्देशों के अनुरूप अब तक रेत माफिया के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सका है। नतीजतन माफिया के हौसले बुलंद हैं।

उल्लेखनीय है कि एक दशक से भी अधिक समय से चंबल में रेत खनन पर न्यायालय की रोक है। और तो और एनजीटी ने भी मध्यप्रदेश, राजस्थान, और उत्तरप्रदेश की सरकारों को चंबल में रेत के खनन को पूरी तरह रोकने के निर्देश दिए हुए हैं।

एनजीटी ने तो तीनों राज्यों के डीजीपी, मुख्य सचिव, सहित ग्वालियर, भिंड, मुरैना, धौलपुर, भरतपुर, आगरा, इटावा, झांसी के कलेक्टरों, और पुलिस अधीक्षकों को अवैध खनन रोकने, निगरानी करने और खनन माफिया पर प्रभावी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। लेकिन आज तक ऐसा हो नहीं सका है। खनन लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

अदालत व एनजीटी ने क्या कहा:

अदालत व एनजीटी ने साफ कहा है कि राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को बचाना जरूरी है। इसके लिए रेत खनन रोकना ही होगा। अदालत ने यह भी पाया कि राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के भीतर रेत का खनन तेजी से बढ़ा है। कई स्थान जो पहले इससे अछूते थे वहां से भी अब रेत निकली का रही है। इस वजह से अभयारण्य में रहने वाले दुर्लभ जीवों के आवास नष्ट हो गए हैं और उनका अस्तित्व संकट है।

पर्यावरणविदों की मानें तो चंबल अभयारण्य में रेत के खनन से पर्यावरण को लगातार खतरा बढ़ रहा है। इससे नदी के तल का न केवल तेजी से क्षरण हो रहा है बल्कि उसकी गहराई भी कम हो रही है। यही वजह है कि अनेक स्थानों पर नदी का प्रवाह टूट रहा है। अवैध खनन से जलीय जीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। इतना ही नहीं पानी की गुणवत्ता में भी कमी आ रही है।

विशेषज्ञों की मानें तो अवैध खनन से चंबल और उसके आसपास की मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब हुई है। पारिस्थितिकी तंत्र पर भी नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। यदि समय रहते खनन नहीं रुका तो नदी का अस्तित्व समाप्त होते देर नहीं लगेगी।

घड़ियाल,डॉल्फिन और गैंगटिक कछुओं को खतरा

चंबल अभयारण्य में बेतहाशा ढंग से चल रहे रेत खनन से यहां बनाई गए घड़ियाल डॉल्फिन व गैंगटिक कछुओं के अभयारण्य को जबरदस्त खतरा है। घड़ियाल और कछुए तो रेत पर ही अंडे देते हैं। लेकिन खनन से उनके अंडे नष्ट हो रहे हैं।

उधर खनन से नदी का पानी भी प्रदूषित हो रहा है जिससे डॉल्फिन भी मुश्किल में है, क्योंकि वह साफ पानी में ही रहती है। कुल मिलाकर चंबल में अवैध खनन, हमें बड़े पर्यावरणीय संकट की ओर ले जा रहा है।

किसी भी सेंचुरी अथवा अभयारण्य में खनन, अतिक्रमण, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं करते हैं। चंबल सेंचुरी जलीय जीवों के लिए बना है। इसे सेंचुरी बनाकर यही प्रयास किए गए हैं कि उनके रहवास और जीवन पर कोई प्रभाव न पड़े। घड़ियाल अतिसंकट ग्रस्त प्रजाति है, वह चंबल में ही पाई जाती है। नव प्रजाति के कछुए भी मिलते हैं, अंडे रेत पर देते हैं। रेत और पानी उनका घर है।

रेत नहीं होगी तो वह अंडे कहां देंगे ? रेतीय क्षेत्र ऐसा हो जहां उसके आसपास को डिस्टर्बेंस न हो। शांत क्षेत्र होना चाहिए। रेत का खनन होगा तो घड़ियाल सहित अन्य प्रजातियों के आवास क्षेत्र को खतरा होगा। वह अंडे नहीं दे पाएंगे और धीरे-धीरे नष्ट होने लगेंगे। कुछ प्रजाति के पक्षी जैसे स्कीमर रेत में अंडे देता है, ब्लैक बैली टर्न, रिवर टर्न पक्षी भी चंबल के लिए महत्वपूर्ण हैं, ये भी रेत पर अंडे देते हैं। रेत जाएगी तो इनके जीवन चक्र पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसलिए इन जलीय जीवों को बचाने के लिए रेत उत्खनन रोकना अति आवश्यक है।

डॉ. सीताराम टैगोर

पर्यावरण विशेषज्ञ, ग्वालियर

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