मप्र के 'बेघर' और 'भूमिहीन' जिलाधीश: 10 से 15 साल की नौकरी में भी नहीं खरीदी एक इंच जमीन…

विशेष संवाददाता, भोपाल: मप्र कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने हाल ही में अपनी अचल संपत्ति का ब्यौरा दिया है। ज्यादातर अधिकारियों के पास अचल संपत्तियों में घर, प्लॉट, फ्लैट या कृषि भूमि हैंं। जिनकी कीमत 1 लाख से लेकर करोड़ों तक है। इनके बीच में ऐसे भी अधिकारी हैं, जो जिलाधीश हैं, लेकिन उन्होंने एक इंच जमीन नहीं खरीदी है।
सभी की सरकारी नौकरी को 10 से 15 साल हो चुके हैं। उन्होंने संपत्ति के ब्यौरे में कोई अचल संपत्ति नहीं बताई है। जिनमें प्रदेश के बड़े जिले इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह से लेकर, श्योपुर, डिंडौरी, अनूपपुर, निमाड़ी जैसे छोटे जिलों के जिलाधीश भी शामिल हैं। इनमें 5 महिला अधिकारी भी हैं, जिनके पास कोई संपत्ति नहीं है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे ज्यादा रुतबा किसी अधिकारी का है, वह जिलाधीश। ऐसे में रुतबेदार अधिकारियों के पास निजी घर नहीं होना और एक इंच जमीन नहीं होना भी चर्चा का विषय है।
यह बात अलग है कि जिन जिलाधीश के बाद कोई अचल संपत्ति नहीं है, उनमें से ज्यादातर के जिले अलग-अलग वजहों से चर्चा में हैं। कुछ जिलाधीश अपने सेवाकाल में भी चर्चा में रहे हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में एक-दो को छोड़कर किसी भी अधिकारी पर आरोप नहीं लगा है।
इनके पास कोई संपत्ति नहीं
- जिलाधीशों के नाम जिला
- आशीष सिंह (2010) इंदौर
- नेहा मारव्या (2011) डिंडौरी
- प्रतिभा पाल (2012) रीवा
- सतीश कुमार (2013) सतना
- लोकेश जांगिड़ (2014) निवाड़ी
- भव्या मित्तल (2014) खरगौन
- ऋषभ गुप्ता (2014) खंडवा
- अंकित अष्ठाना (2014) मुरैना
- रिजु बाफना (2014) शाजापुर
- शीतला पटले (2014) नरसिंहपुर
- ऋतुराज (2015) देवास
- बालागुरु के (2015) सीहोर
- अर्पित वर्मा (2015) श्योपुर
- हर्षल पंचोली (2015) अनूपपुर