एण्टीबॉयोटिक की जगह आयुर्वेद के प्रयोग ने बचायी साढ़े तीन लाख लोगों की जान

Update: 2020-09-20 12:56 GMT

भोपाल।  एण्टीबॉयोटिक के लगातार उपयोग से दुनियाभर में जहां हर साल सात लाख से ज्यादा मौतें हो रहीं थीं।  वहीं  कोरोना संक्रमण के इस दौर में मार्च 2020 से 15 सितंबर 2020 तक कुल एण्टीबॉयोटिक की जगह आयुर्वेद - आयुष औषधियों के प्रयोग के कारण दुनियाभर में साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोगों की जान बच सकी है। विश्व के अन्य देशों की तुलना से  भारत में  कुल एण्टीबॉयोटिक उपयोग का दस से पंद्रह फीसदी अधिक प्रयोग होता है। यहाँ  50 हजार से ज्यादा लोगों की जान एण्टीबॉयोटिक के कम प्रयोग के कारण बची है। मानसरोवर आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एण्ड रिसर्च सेंटर भोपाल के प्रोफेसर व आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ राकेश पाण्डेय ने चर्चा में बताया कि इन एण्टीबॉयोटिक्स के स्थान पर आयुर्वेद औषधियां जिनमें गिलोय, तुलसी, एलोविरा,नीम, दालचीनी, हल्दी , कृष्णमारिच, लवंग, ने ले ली है। इन आयुर्वेद औषधियों ने जहां इम्यूनिटी पावर बढाया है वहीं एलोपैथिक एण्टीबॉयोटिक्स को कॉफी हद तक कम कर एण्टीबॉयोटिक के जैसे ही 85 फीसदी तक बिना साइड इफेक्ट्स के काम किया है।

उन्होंने कहा की कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी भी कहती आ रही हैं कि एण्टीबॉयोटिक्स के ज्यादा प्रयोग से हर साल दुनिया में लाखों मौतें  होती हैं।  यह आंकड़ा 2050 तक एक करोड़ होगा।   हालाँकि डॉ  पाण्डेय कहते हैं कि बहुत सारे माइनर व मेजर ऑपरेशन्स में एण्टीबॉयोटिक की ही जरूरत होती है। अगर अति एण्टीबॉयोटिक्स के कारण देश में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख तक मौतें होती रही थीं तो निश्चित तौर पर आयुर्वेद औषधियों के प्रयोग से  मौत का आंकड़ा पचास फीसदी कम हो गया है। डॉ पाण्डेय ने कहा कि आयुर्वेद - आयुष औषधियों के कारण सर्दी, जुकाम , बुखार के मरीजों में  कमी आई है। दुनियाभर में भी आयुर्वेद - आयुष औषधियों की मांग बढ़ी है।

अब यह बात अलग है कि कोविड- 19 कोरोना संक्रमण के साथ -साथ लोगों में डॉयबिटीज, किडनी, लिवर और अस्थमा से संबंधित श्वास रोगों के पहले से होने के कारण कोरोना से मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। जनमानस को चाहिये कि मास्क प्रयोग, सेनेटाइजेशन, सोशल डिस्टेंसिंग पालन और केंद्रीय आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी आयुर्वेद - आयुष एडवायजरी जरूर अपनाते रहें। 

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