न्यायालय ने स्वर्ण रेखा पर खर्च हुए 423 करोड़ रुपए का जबाब मांगा, नदी में साफ पानी नहीं बह सकेगा

कोर्ट ने कहा - अगर ऐसे ही हालात रहे तो कभी स्वर्ण रेखा नदी में साफ पानी नहीं बह सकेगा

Update: 2024-04-16 00:15 GMT

ग्वालियर।  मप्र उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ की युगल पीठ ने एक बार शहर की स्वर्ण रेखा नदी के मामले में सुनवाई की। इस दौरान उच्च न्यायालय की युगल पीठ के न्यायामूर्ति रोहित आर्य ने साफ शब्दों में कहा है कि जिस तरह का रवैया नगर निगम के अधिकारियों का है और आदतों में सुधार नहीं किया गया। ऐसे हालत रहे तो कभी स्वर्ण रेखा नदी में साफ पानी नही बह सकेगा। जिसके बाद अब न्यायालय ने स्वर्ण रेखा पर खर्च हुए 423 करोड़ रूपए का बिंदुवार जबाब मांगा है। साथ ही स्वर्ण रेखा नदी पर जो एलिवेटड रोड़ बनाई जा रही है उस दौरान ट्रंक लाइन डालने में कितना खर्च आएंगा, कहां कहां लाइन जाएंगी। इसका भी हिसाब मांगा है। साथ ही कहा है की अब किसी भी कीमत पर स्वर्ण रेखा नदी में नालों का पानी नही जाना चाहिए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 मई को होगी।

बता दें कि ग्वालियर की स्वर्ण रेखा नदी के लिए उच्च न्यायालय में युवा विश्वजीत रतोनिया ने एक जनहित याचिका साल 2019 में दायर की थी। इससे पहले भी सुनवाई के दौरान न्यायालय निगमायुक्त, स्मार्ट सिटी की सीईओ सहित कई अधिकारियों को फटकार लगा चुकी है। इससे पहले नगर निगम की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया था। इसमें लापरवाही और गलतियों पर कोर्ट ने नाराज होते हुए अफसरों को आड़े हाथ लिया था। हर सुनवाई पर अधिकारियों को फटकार मिल रही है। उच्च न्यायालय की मंशा ये है की जब साबरमती नदी भी पूरी तरह से सूख गई थी। लेकिन, वहां के लोगों और जन प्रतिनिधियों ने प्रशासन के साथ संयुक्त रूप से काम किया। आज वहां की तस्वीर बदल गई है लेकिन ग्वालियर में स्वर्ण रेखा को संवारने का काम क्यों नही हो सकता है।

ये जवाब मांगा है न्यायालय ने

(1)- स्वर्ण रेखा नदी को जीवित करने में कितना पैसा खर्च हुआ है।
(2)- सीवेज लाइन की मरमत्त के लिए कितना पैसा खर्च हुए है।
(3)- सीवेज प्लांट के लिए कितना पैसा खर्च।
(4)- गार्बेज के लिए, गार्बेज कलेक्शन के लिए कितना पैसा आया है, कितना खर्च किया है।
(5)- 2004 से 2024 तक स्वर्ण रेखा में कितना पैसा खर्च हुआ है उसकी क्षेत्रवार रिपोर्ट तलब किया है।

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