जब धरती और आसमान उगल रहे हैं आग, ऐसे में चालक दौड़ा रहे हैं ट्रेन
तापमान से 10 डिग्री अधिक में ड्यूटी करना पड़ रही है चालकों को
ग्वालियर,न.सं.। भीषण गर्मी से बचने के लिए जहां लोग कई जतन कर रहे हैं, वहीं ट्रेनों के ड्रायवरों (लोको पायलट) को बाहरी तापमान से 10 डिग्री अधिक में ड्यूटी करना पड़ रही है। इंजन का तापमान 45 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। ऐसे में ड्रायवरों के हाल बेहाल हैं। भीषण गर्मी में गार्ड केबिन इतना तप जाता है, कि कहीं हाथ तक नहीं रख सकते। कई ड्रायवर ग्लूकोज का डिब्बा तो कोई नीबू शर्बत की बोतल लेकर ड्यूटी पर जा रहा है। सिर्फ तापमान ही नहीं, इंजन में लगी 6 मोटरों के चलने की भारी कर्कश आवाज और गडग़ड़ाहट भी ड्राइवरों को सहन करनी पड़ती है। भीषण गर्मी में रेलवे के चालक-परिचालकों की हालत खराब है। गर्मी में इंजन का तापमान बाहरी तापमान से 10 डिग्री तक अधिक हो जाता है। मौजूदा स्थिति में यह रेल इंजन का तापमान 45 से 50 डिग्री है। इतनी गर्मी में 8 से 12 घंटे ड्रायवरों को इंजन में रहना पड़ता है। ड्रायवर बताते हैं कि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक गर्म हवाओं के थपेड़ों और अधिक तापमान की वजह से इंजन बेहद गर्म हो जाते हैं। मशीनें चालू होने से इंजन के अंदर का तापमान अधिक हो जाता है।
तपते कोच पर हाथ नहीं रख सकते
नाम न छापने की शर्त पर गार्ड कहते हैं कि हमें शरीर और मस्तिष्क दोनों को सक्रिय रखना पड़ता है। कई गार्ड यान में तो पंखे तक खराब हैं तो कई में उनकी दिशा ऐसी है कि गार्ड सीट पर हवा ही नहीं आती। तेज धूप में पूरा कोच ऐसे तप जाता है कि कहीं पर हाथ तक नहीं रख सकते।
जंगलों में खड़ी रहती हैं मालगाड़ी
्रएक्सप्रेस और मेल ट्रेनों के स्टॉपेज तो निर्धारित होते हैं लेकिन मालगाडिय़ों को तो कई बार जंगलों में रोक दिया जाता है। सिग्नल नहीं होने पर मालगाड़ी को कभी आऊटर पर, कभी जंगल में तो कभी स्टेशन से दूर कहीं भी खड़ा कर दिया जाता है। मई-जून में मालगाडिय़ों को गार्ड कोच में रहना मुश्किल हो जाता है।
ये होते हैं हालात...
- -ग्वालियर में लगभग 60 लोको पायलट है। ग्वालियर से चलाने वाली ट्रेनों के इंजन में एसी नहीं लगे है।
- -नए इंजनों में जो एसी लगे आ रहे है, वह एक बार खराब होने के बाद दुबारा ठीक नहीं होते।
- - यह हालात इसलिए है क्योंकि रेलवे की अधिकांश ट्रेनों के ड्राइवर केबिन में एयर कंडीशनर नहीं लगे हैं।
- - स्वदेश ने ग्वालियर रेलवे स्टेशन का जायजा लिया तो पता चला कि ट्रेनों के ड्राइवर असहनीय गर्म हवा से बचने के लिए मुंह, कान और सिर पर साफी बांधकर रखते हैं। उन्हें बार-बार पानी पीना पड़ता है।
- - नाम न छापने की शर्त पर ड्राइवर बताते हैं कि गर्मी के दिनों में उनके लिए ट्रेन चलाना बेहद कष्टप्रद होता है लेकिन मजबूरन उन्हें ऐसी यातनाभरी ड्यूटी करनी पड़ रही है।
- - उधर रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि अन्य मंडलों में ड्राइवरों के एसी केबिन लगने लगे हैं लेकिन ग्वालियर की ट्रेनों में नॉन एसी केबिन ही हैं।
ये सुविधाएं भी नहीं
- ट्रेन को गंतव्य तक ले जाने के बाद वापस आने की व्यवस्था नहीं रहती। कोई जनरल कोच में तो कोई स्लीपर में खड़े होकर आता है।
- जंगल में, स्टेशन से दूर और तपती धूप में कई बार खड़ी रहती है मालगाडिय़ां। परेशान होता है रनिंग स्टाफ।
- कई स्टेशन ऐसे है जहां शीतल पेय की व्यवस्था नहीं रहती। स्टाफ को पर्याप्त छुट्टी और विश्राम नहीं मिल पाता।
- ड्रायवरों के लिए शौचालय की सुविधा नहीं है।