ग्वालियर, न.सं.। कोरोना संक्रमण काल में निम्न व मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। इस काल में इन लोगों का रोजगार छिन जाने के कारण इनके घर में रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। हालत दिन पर दिन खराब होने लगे। ऐसे में हरिशंकरपुरम में निवास करने वाली वरिष्ठ समाजसेवी श्रीमती अनुराधा घोडक़े इन परिवारों के लिए सहारा बनी। कोरोना संक्रमण काल में जब व्यापार व उद्योग ठप पड़े हुए थे उस समय अनुराधा ने इन लोगों के लिए मास्क बनाना सीखा और कई महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। आज यह सभी महिलाएं मास्क बनाकर प्रति माह 05 हजार से अधिक रुपए कमाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। मास्कों की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण यह चिकित्सकों की खास पसंद बने हुए हैं। अनुराधा के इस अभियान में उनके पति सुरेश घोडक़े का भी विशेष सहयोग रहा है।
अनुराधा के मन में शुरू से ही लोगों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाने की ललक थी। पहले कुछ काम नगर निगम के साथ मिलकर किया। फिर यह काम बंद हो गया। लॉकडाउन में महिलाएं परेशान होने लगी। महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए कोरोना संक्रमण काल में मास्क व सेनेटाइजर बनाना ही सबसे उपयुक्त साधन था। अनुराधा ने सबसे पहले मास्क की कटिंग करना व बनाना सीखा। इसके बाद रोजगार मांगने वाली महिलाओं को एक-एक करके प्रशिक्षण दिया। आज यह सभी महिलाएं अपने-अपने घरों पर मास्क बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं। इन मास्कों की मांग ग्वालियर के अलावा डबरा, दतिया, मुरैना, जौरा, कैलारस, सबलगढ़ आदि क्षेत्रों में हैं।
वायरस अंदर नहीं जा सकता:-
अनुराधा की टीम के द्वारा जो मास्क बनाए जा रहे हैं वह दो व तीन लेयर के हैं। सूती कपड़े से बने इन मास्कों को धोकर व डिटोल से साफ करके फिर से पहना जा सकता है। इन मास्कों की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण यह शहर के चिकित्सकों की खास पसंद बने हुए हैं। महिलाओं व युवाओं की पसंद का ध्यान रखते हुए उनके लिए डिजाइनदार मास्क भी बनाए जा रहे हैं। यह मास्क सर्जीकल व एन-95 से कहीं अधिक बेहतर हैं।
इनका कहना है:-
'लॉकडाउन में पति को काम नहीं मिलने के कारण घर चलाना तक मुश्किल हो गया था। इसके बाद अनुराधा जी से हमें मास्क बनाने का काम मिला। आज हम प्रतिदिन 100 से अधिक मास्क बना रहे हैं। आज हम पैसा कमाकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। '
रेणू गौर, मास्क निर्माता
'लॉकडाउन के समय घर चलाने की परेशानी बहुत बढ़ गई थी। कहीं काम नहीं मिल रहा था। ऐसे में मास्क बनाने का काम ही हमारा सहारा बना। आज हम प्रतिदिन 200 मास्क बना रहे हैं। पांच हजार से अधिक आय हो जाती है।'
संगीता रजक, मास्क निर्माता
'लॉकडाउन में मेरी पत्नी गर्भवती थी। उसने घर पर ही रहकर मास्क बनाए। मास्क लाने और ले जाने का काम मैंने किया। मुसीबत की घड़ी में यह काम ही हमारे लिए वरदान साबित हुआ।'
लक्ष्मी नारायण, संजय नगर