ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता रहे डॉ. सतीश सिंह सिकरवार के बारे में पिछले छह महीने से यह कयास लगाए जा रहे थे कि वे कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं और कभी भी कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। इन सबके बावजूद डॉ. सिकरवार पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के समक्ष कांग्रेस में शामिल हो गए। यद्यपि इस बीच डॉ. सिकरवार से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल और ग्वालियर में, वहीं राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दिल्ली और ग्वालियर में बात की। इन नेताओं से डॉ. सिकरवार ने क्या व्यथा अथवा शर्त रखी यह तो नहीं पता, किंतु इसे यह जरूर माना गया कि उनका मन भाजपा से भटक गया और वे कांग्रेस में चले गए। भाजपा को कार्यकर्ता गढऩे वाला दल माना जाता है, ऐसे में आखिर भारतीय जनता पार्टी डॉ सिकरवार को क्यों नहीं रोक पाई, यह सवाल उठ रहे हैं।
यहां बता दें कि छात्र राजनीति के बाद डॉ. सिकरवार जनता दल में हुआ करते थे। उनके पिता गजराज सिंह सिकरवार भी समाजवादी नेता रहे हैं। किंतु गजराज सिंह के भाजपा में आने के बाद डॉ. सतीश सिकरवार भी भाजपा में आ गए।वे वर्ष 1994 में पार्षद चुने गए। इसके बाद उनकी पत्नी और वे स्वयं लगातार पांच बार पार्षद रहे। पिछली परिषद में दोनों पति-पत्नी पार्षद थे, जिसमें पत्नी को एमआईसी सदस्य भी बनाया गया। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले डॉ. सिकरवार द्वारा ग्वालियर पूर्व से टिकट की मांग की गई। इसके पहले उनके द्वारा लगभग दो साल तक सामाजिक सरोकार के बड़े-बड़े आयोजन कराए गए। जिससे वह खासे चर्चित हुए। तब यह माना गया कि वे ऐसा ग्वालियर पूर्व से चुनाव लडऩे के लिए कर रहे है पर राज्यसभा सदस्य रहीं वरिष्ठ नेत्री माया सिंह इस क्षेत्र से विधायक थीं और दूसरी बार टिकट की दावेदार भी।
इन सबके बावजूद मामी का टिकट काटकर डॉ. सतीश सिकरवार को ग्वालियर पूर्व से टिकट मिला। किंतु वे कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल से पराजित हो गए। भाजपा यह मानकर चल रही थी कि सिकरवार परिवार को उन्होंने सबकुछ दिया, इसलिए डॉ. सिकरवार भाजपा नहीं छोड़ेंगे। किंतु मुन्नालाल गोयल के इस्तीफे से खाली हुई सीट के कारण परिस्थितियां एकदम बदल गईं। जिसमें डॉ. सिकरवार को लगा कि यदि मैं भाजपा में रहा तो मुझे श्री गोयल के रहते अब कभी ग्वालियर पूर्व से टिकट नहीं मिल पाएगा। इतना ही नहीं आने वाले उप-चुनाव में उन्हें गोयल के लिए काम करना होगा। इस बीच कांग्रेस के कुछ पुराने साथियों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वे अपने दल-बल के साथ कांग्रेस में आ जाएं तो उनका ग्वालियर पूर्व से टिकट पक्का है। बस इसी भरोसे और एक बार विधायक बनने की ललक के रहते वे आठ सितम्बर को कांग्रेस में शामिल हो गए। बताया गया है कि उनके इस निर्णय से परिवार एक राय नहीं है।
ऐन समय पर मंत्री सारंग ने रोका
डॉ. सिकरवार जब अपने काफिले के साथ भोपाल पहुंचे तो पल-पल की जानकारी मुख्यमंत्री निवास पहुंच रही थी। तब चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग जो उनके बेहद नजदीकी मित्र हैं, ने उन्हें बीच सड़क पर रोक लिया और कहा कि चलो सीएम हाउस में मुख्यमंत्री जी आपको बुला रहे हैं। बात यहां तक आई है कि गृह निर्माण मंडल का अध्यक्ष पद और राज्य मंत्री के दर्जे की भी बात कही गई पर डॉ. सिकरवार ने कहा कि अब देर हो गई है। यही नहीं इसके पूर्व दिल्ली में श्री सिंधिया से हुई मुलाकात में उनके व्यवहार से भी वह दुखी थे। डॉ. सिकरवार नहीं माने और मुख्यमंत्री निवास की बजाय कमलनाथ के निवास जा पहुंचे।
परिवार में असहजता की स्थिति
डॉ. सिकरवार के अरमान विधायक बनने के हैं। उनके भाई डॉ. सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू जो सुमावली से विधायक रहे थे, उन्हें वर्ष 2018 में पुन: इसी सीट से टिकट मिल रहा था, किंतु बड़े भाई की जिद के आगे उन्होंने अपना टिकट कुर्बान करते हुए भविष्य दांव पर लगा दिया। भाई के दबाव में नीटू ने मुख्यमंत्री से लेकर दिल्ली तक कई बड़े नेताओं के दरवाजे सिर्फ इसलिए खटखटाए कि टिकट मुझे नहीं बड़े भाई को दिया जाए। ऐसे में अब बड़ा भाई कांग्रेस में चला गया तो परिवार के लिए असहज स्थिति बन गई है। ऐसे में कांग्रेस में उन्हें कितना मान-सम्मान मिलेगा, यह अभी तत्काल नहीं कहा जा सकता पर डॉ. सिकरवार को टिकट देकर कांग्रेस इस चुनाव को रोचक बनाएगी, यह तय है और डॉ. सिकरवार भी गत चुनाव की हार से सबक ले चुके हैं।
भाजपा नेतृत्व भी विचार करे
डॉ. सिकरवार का निर्णय नि:संदेह निष्ठावान भाजपा कार्यकर्ताओं को पीड़ा देगा कि पार्टी ने पांच बार पार्षद बनाया, विधायक का टिकट दिया, पत्नी को टिकट दिया, परिवार को भी सम्मान दिया पर वह पार्टी से दूर हो गए। पर तत्कालीन नेतृत्व को भी विचार करना चाहिए कि निहित स्वार्थों के चलते कतिपय वरिष्ठ नेताओं ने उनका कम दोहन भी नहीं किया और उनकी महत्वाकांक्षा को पर लगाए परिणाम सामने हैं।
जिस सामंती सोच से लड़े उसी कारण छोड़ी भाजपा: डॉ. सिकरवार
ललितपुर कॉलोनी में डॉ. सतीश सिंह सिकरवार के निवास के पीछे एक बड़ा कार्यालय है, जिसमें चार दिन पूर्व तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात का बड़ा छायाचित्र लगा हुआ था, अब वह हट चुका है। कार्यालय के बाहर तमाम गाडिय़ां हैं, जिनपर अब भाजपा की जगह कांग्रेस का झंडा लहलहा रहा है। डॉ. सिकरवार से स्वदेश ने चर्चा की। जिसमें पहला सवाल यह था कि पच्चीस साल भाजपा ने आपके परिवार को पूरा मान-सम्मान दिया फिर अचानक आपका मन कैसे उचट गया। इसके जवाब में डॉ. सिकरवार ने कहा कि हम जिस सामंतवादी सोच से इतनी लंबी लड़ाई लड़ते रहे, उनके भाजपा में आ जाने के बाद इस तरह की लड़ाई संभव नहीं रही। इसलिए मुझे कांग्रेस में आना पड़ा। अब कांग्रेस में न कोई राजा है और न कोई महाराजा है। यहां किसी कि चमचागिरी और चाटुकारिता नहीं करना पड़ेगा। मैं जनता की दम पर राजनीति करता हूं, जनता मेरे साथ है। रोपवे के रोड़ा बनने के लिए उन्होंने इसी सामंतवादी सोच को कारण बताया। उन्होंने कहा कि मेरा मुकाबला कांग्रेस से जीते मुन्नालाल गोयल से दूसरी बार होगा। पिछली बार कांग्रेस जीती इस बार भी जनता कांग्रेस को ही जिताएगी। उनके कांग्रेस प्रवेश पर कांग्रेस कार्यालय में हुए विरोध को उन्होंने सीधा कारण खुद की लोकप्रियता बढऩा बताया। कांग्रेस में जाने से पूर्व भाजपा के बड़े नेताओं के साथ बातचीत के सवाल पर उन्होंने कहा कि चर्चा में न तो उन्होंने मुझसे कुछ कहा और न ही मैंने कुछ मांगा।