यहां दल नहीं चेहरे का चमकता है सिक्का

Update: 2020-10-31 01:00 GMT

 भोपाल lमध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कई ऐसे तथ्य हैं जो राजनीतिक दलों को प्रभावित करते हैं। साथ ही यहां के राजनीतिक समीकरण और परिणाम लोगों को चौकाते भी हैं। दोनों ही सीटों पर भाजपा के टिकट पर सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत और इमरती देवी मैदान में हैं, वहीं कांग्रेस की ओर से सुरखी में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुईं पारुल साहू और डबरा से सुरेश राजे चुनाव मैदान में हैं। सुरखी और डबरा विधानसभा के इतिहास पर नजर डालें, तो यहां दलों को ही नहीं बल्कि मतदाता उम्मीदवार के चेहरे को महत्व देते हैं। इन सीटों का मिजाज हमेशा चौंकाने वाला रहा है। परिसीमन और आरक्षण के चलते भी इन सीटों के गणित में खासा बदलाव देखने को मिला है।

क्या है राजनीतिक जानकारों की राय

सुरखी और डबरा की राजनीति को नजदीक से जानने वाले राजनीतिक जानकार बताते हैं कि ये सीटें हवा के साथ बहने वाली सीटें नहीं हैं। यहां की जनता पर्टीवादी नहीं बल्की व्यक्तिवादी है, यहां लोग आपसी संबंध के हिसाब से वोट करते हैं। डबरा से इमरती देवी के सामने कोई टक्कर का उम्मीदवार न देकर कांग्रेस ने भाजपा को मौका दिया, वहीं सुरखी में मुकाबला टक्कर का है।

कांग्रेस को जीत का भरोसा

मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा की माने, तो इस बार उपचुनाव की स्थिति पूरी तरह अलग है। पिछली बार भी दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में आई थी। इस बार तो सिंधिया समर्थक मंत्रियों और सिंधिया की खुद की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, जिनसे जनता परेशान हो गई है। सलूजा का दावा है कि कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में जीतेगी और दोनों मंत्रियों की हार होगी।

भाजपा को कार्यकर्ताओं से उम्मीद

भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी भाजपा की संगठन क्षमता और कार्यकर्ताओं के श्रम पर आश्वस्त हैं। उनका मानना है कि जनता कांग्रेस और दिग्विजय सिंह के किए गए छल कपट का हिसाब इस चुनाव में करेगी और भाजपा केवल डबरा और सुरखी ही नहीं, बल्कि पूरी 28 सीटें जीतकर मध्य प्रदेश की सरकार को सशक्त करेगी।

डबरा का इतिहास और अंकगणित

आइटम वाले बयान कारण खबरों में आई डबरा सीट की बात करें, तो पिछले तीन चुनावों में यहां इमरती देवी ही विजय हासिल करती आई हैं। ये सीट 2008 तक अनारक्षित थी, लेकिन परिसीमन के बाद यहां का गणित बदला और डबरा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई, तभी से यहां कांग्रेस का दबदबा बढ़ गया, और इमरती देवी यहां से जीत हासिल की। 1962 से लेकर अभी तक के चुनाव परिणाम पर नजर डालें, तो डबरा की जनता दोनों दलों को बराबरी से मौका देती आई है। 1980 में भाजपा के अस्तित्व में आने के पहले भी यहां से जीत हासिल करती रही हैं। इस तरह से डबरा में 1962 से लेकर 2018 तक 6 बार कांग्रेस तो 6 बार संघ समर्थित पार्टियों ने परचम लहराया। वहीं एक बार अपवाद के तौर पर 1993 में बसपा के जवाहर सिंह रावत यहां से विधायक रहे।

1993 से लेकर सुरखी के अभी तक के चुनाव परिणाम

डबरा और सुरखी की जनता जनता दोनों ही मुख्य दलों को अब तक बराबरी का मौका देती आई है, लेकिन इस बार का चुनावी गणित थोड़ा अलग है। सुरखी में कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में आए गोविंद सिंह के सामने भाजपा से बागी हुई पारुल साहू है, तो डबरा में चुनाव लड़ रही इमरती देवी और सुरेश राजे आपस में समधी समधन हैं। दोनों ही परिस्थितियां यहां के मुकाबले को टक्कर का बना देती हैं। अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे की इस बार जनता ने क्या फैसला किया है।

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