कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं में अब पैठ बना रही निराशा?

Update: 2020-10-30 01:00 GMT

वेबडेस्क।  मध्य प्रदेश में हो रहे विधानसभा के उप-चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायकों के जारी पलायन ने कांग्रेस कार्यकतार्ओं को असमंजस में डाल दिया है और उनमें परिणाम से पहले निराशा का भाव तेजी के साथ बढ़ रहा है।

राज्य में विधानसभा के उप-चुनाव सिर्फ इसलिए हो रहे हैं क्योंकि कमलनाथ सरकार में पार्टी के ही मंत्री और विधायक अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे थे। जनता के बीच जिन वचनों और घोषणाओं के दम विधानसभा की दहलीज को लांघकर पहुंचे थे, वह अधूरी थी, मुख्यमंत्री के पास इन विधायकों के लिए समय नहीं था। परिणाम सबके सामने आया कांग्रेस विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ा और कमलनाथ की सरकार का पतन हो गया। पहले 22 विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दिया, उसके बाद एक-एक कर चार विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद भाजपा का दामन थाम चुके हैं। चुनाव के दौरान भी यह सिलसिला जारी है और इसका सबसे ज्यादा असर कांग्रेस के जमीनी कार्यकतार्ओं के मनोबल पर पड़ रहा है।

राज्य में विधायकों की संख्या के आधार पर कांग्रेस को बड़ी जीत जरूरी है, आशय साफ है कि सभी 28 सीटों पर कांग्रेस को चुनाव जीतना होगा, जो संभव नहीं है। हालांकि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता, लेकिन बाहरी समर्थन के आधार पर कांग्रेस तभी सरकार बना सकती है, जब कम से कम वह 21 स्थानों पर जीत दर्ज करे। वर्तमान में निर्दलीय चार, बसपा दो और सपा का एक विधायक है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता शुरूआत में उप-चुनाव को लेकर उत्साहित था क्योंकि उसे यह लग रहा था कि जनता उनके साथ है, मगर वक्त गुजरने के साथ कांग्रेस कार्यकर्ता जमीन पर वह लड़ाई नहीं लड़ पा रहा है, जो उसे जीत दिला सकती है। इसकी बड़ी वजह कार्यकर्ता को वह साधन नहीं मिलना है, जिससे वह चुनावी युद्ध में सामने वाले को परास्त कर सके। इसका सीधा असर उसके मनोबल पर भी पड़ रहा है, यह स्थितियां पार्टी के लिए कहीं से भी बेहतर नहीं मानी जा सकती। यह बात भी सही है कि उम्मीद के मुताबिक कमलनाथ की सरकार गिराए जाने को लेकर कांग्रेस जनता के बीच अपने पक्ष में माहौल बनाने में नाकाम रही है, यही वजह है कि पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव पनप रहा है।

राजनीतिक विशलेषज्ञों का मानना है कि राज्य के उप-चुनाव कश्मकश वाले हैं। दोनों ही दल जोर लगाए हुए हैं, भाजपा सत्ता में है और सत्ताधारी दल को लाभ उप-चुनाव में मिलता है, इसे नकारा नहीं जा सकता, भाजपा के पक्ष में युवाओं का साथ दिखाई दे रहा है। एक बात और कांग्रेस द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा करना भी ग्वालियर-चंबल में बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह मुद्दा जोर पकड़ रहा। जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतान पड़ सकता है। चुनाव में कार्यकर्ता किसी भी दल की बड़ी ताकत होता है, जिस भी दल के कार्यकर्ता का मनोबल अंत तक बना रहेगा, वह चुनावी नतीजों पर बड़ा असर डाल सकता है। कांग्रेस के लिए कार्यकर्ता का मनोबल बनाए रखना बड़ी चुनौती है क्योंकि दल बदल का असर कार्यकर्ता पर पड़ा है। इस मामले में भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखकर एकता का संदेश दिया है।

Tags:    

Similar News