मध्यप्रदेश फ्लैशबैक : 250 रुपए के कारण चली गई मुख्यमंत्री की कुर्सी

मप्र में ऐसा ही एक किस्सा घटित हो चुका है;

Update: 2023-04-25 15:03 GMT
चुनावी चर्चा

क्या आज कल्पना की जा सकती है कि कोई मुख्यमंत्री ढाई सौ रुपए के कारण अपनी कुर्सी गंवा सकता है, वह भी चुनाव खर्च की एक पर्ची के चक्कर में। जी हां, मप्र में ऐसा ही एक किस्सा घटित हो चुका है और यह कुर्सी गंवाने वाले शस थे पंडित द्वारकाप्रसाद मिश्र। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले डीपी मिश्र को 250 रुपए का हिसाब नहीं देने पर मुयमंत्री की कुर्सी का दावा छोडऩा पड़ गया, तब जबकि इंदिरा गांधी के वह प्रधान सलाहकार भी हुआ करते थे। सलाहकार ऐसे कि इंदिरा उनके बिना कोई राजनीतिक कदम आगे नहीं बढ़ाती थी। सिर्फ 249 रुपए और 72 पैसे के कारण मुख्यमंत्री पद खो देने के इस किस्से का जिक्र लेखक रामप्यारा पारकर, अगासदिया और डॉ परदेशीराम वर्मा ने अपनी एक किताब में किया है।

इस कहानी की शुरुआत तब हुई थी, जब मुख्यमंत्री नरेशचंद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई कि द्वारकाप्रसाद मिश्र का प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना तय है। उस समय प्रदेश ही नहीं केंद्र में भी उनका दबदबा था। इसलिए उनका मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना तय था, लेकिन नियति में कुछ और लिखा था। किसी को अंदाजा भी नहीं था। कुछ ऐसा हुआ और सारे समीकरण बदल गए। हुआ ये कि कमलनारायण शर्मा ने एक याचिका लगाई थी, जिसका फैसला आया और उसमें पाया गया कि डीपी मिश्र ने कसडोल के उपचुनाव में दिखाए गए आंकड़े से ज्यादा पैसे खर्च किए हैं, जिसके चलते कसडोल उपचुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया। डीपी मिश्र के चुनाव एजेंट थे श्यामाचरण शुक्ल। डीपी मिश्र चुनाव तो जीत गए, चुनावी आपाधापी में और व्यस्तता के बीच चुनाव में हुए खर्चों के बिल कहीं खो गए। इसके बाद कमलनारायण शर्मा ने इस जीत के खिलाफ याचिका दायर की। बड़ी मशक्कत के बाद द्वारकाप्रसाद मिश्र को 6300 रुपए के बिल मिल गए, जिस पर उनके चुनाव एजेंट श्यामाचरण शुक्ल के हस्ताक्षर थे। अफवाह फैली कि श्यामाचरण शुक्ल ने डीपी मिश्र को धोखा दिया और कुछ दस्तावेज कमलनारायण शर्मा को दे दिए, जो द्वारकाप्रसाद के खिलाफ काम में आए और 1963 का कसडोल उपचुनाव निरस्त कर दिया गया। आरोप तय हुआ कि डीपी मिश्र ने चुनाव के लिए बताई गई रकम से 249 रुपए 72 पैसे ज्यादा खर्च किए थे। मामला कोर्ट में गया और जबलपुर हाई कोर्ट के फैसले ने मिश्र के राजनीतिक सफर का रुख ही बदल दिया। डीपी मिश्र को 6 साल के लिए चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य घोषित किया गया। इस तरह डीपी मिश्र को दोबारा मिलने वाली मुख्यमंत्री की तय कुर्सी चली गई। 

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