One Nation One Election: करना होगा इंतजार, वक्फ बिल की तरह एक देश एक चुनाव का विधेयक भी जेपीसी पहुंचा
One Nation One Election : नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने वन नेशन वन इलेक्शन से जुड़ा विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया। बिल के पेश होते ही तमाम विपक्षी पार्टियों ने जमकर हंगामा किया। सांसदों ने इस बिल का विरोध किया। विरोध के बाद इस बिल को जेपीसी के सुपुर्द कर दिया गया। इसके पहले वक्फ बोर्ड संशोधन बिल भी जेपीसी के पास भेज दिया गया था।
इस बिल के लिए जब वोटिंग करवाई गई तो पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े। जाहिर है वन नेशन - वन इलेक्शन के पक्ष में मतदान हुआ। इसके बावजूद वन नेशन - वन इलेक्शन के बिल को मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संयुक्त संसदीय समिति को भेजे जाने के लिए प्रस्ताव रखा।
दरअसल, सरकार ने संविधान संशोधन (129 वां) के लिए बिल पेश किया था। इसमें दिल्ली समेत केंद्र शासित प्रदेशों का चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव भी शामिल था।
बड़ा सवाल - बहुमत के बावजूद पास क्यों नहीं हुआ बिल
एक देश एक चुनाव के लिए सरकार ने संविधान संशोधन प्रस्ताव पेश किया था। संविधान में संशोधन के लिए सरकार को दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है और इस बार संसद में एनडीए के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है।
ये है संविधान संशोधन का गणित :
संविधान संशोधन के लिए अगर लोकसभा में 543 सांसद मौजूद रहते हैं तो बिल पास होने के लिए 362 वोट चाहिए। अगर बिल राज्यसभा से पास होना है तो 164 मतों की आवश्यकता है। एनडीए के पास लोकसभा में 292 सीट है जबकि राज्यसभा में 112 सीट है। कुल मिलाकर अगर संविधान में संशोधन करना है तो विपक्ष को भी मनाना होगा।
ये थे संशोधन के अहम बिंदु :
संविधान संशोधन के माध्यम से सरकार धारा 82 A जोड़ना चाहती थी। अगर यह संशोधन पास होता है तो लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने का रास्ता साफ़ हो जाएगा। इससे 2029 में लोकसभा के साथ - साथ देश की तमाम विधानसभा का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा।
विधि और न्याय मंत्रालय की ओर से बिल के संबंध में बताया गया कि, भारत का लोकतांत्रिक ढांचा अपनी चुनावी प्रक्रिया की जीवंतता पर पनपता है, जो नागरिकों को हर स्तर पर शासन को सक्रिय रूप से आकार देने में सक्षम बनाता है। स्वतंत्रता के बाद से, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 से अधिक चुनावों ने भारत के चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। हालाँकि, चुनावों की खंडित और लगातार प्रकृति ने अधिक कुशल प्रणाली की आवश्यकता पर चर्चा को जन्म दिया है। इससे "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की अवधारणा में रुचि का पुनरुत्थान हुआ है।
2024 में जारी भारत में एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट ने इस दृष्टिकोण को लागू करने के लिए एक व्यापक रोडमैप प्रदान किया। इसकी सिफारिशों को 18 सितंबर 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकार कर लिया गया, जो चुनावी सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। समर्थकों का तर्क है कि ऐसी प्रणाली प्रशासनिक दक्षता को बढ़ा सकती है, चुनाव संबंधी खर्चों को कम कर सकती है और नीति निरंतरता को बढ़ावा दे सकती है।
चूंकि भारत शासन को सुव्यवस्थित करने और अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अनुकूलतम बनाने की आकांक्षा रखता है, इसलिए "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की अवधारणा एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में उभरी है, जिसके लिए विचारशील विचार-विमर्श और आम सहमति की आवश्यकता है।