नवजात तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: अस्पतालों की जवाबदेही से लेकर त्वरित न्याय तक

Update: 2025-04-15 16:18 GMT
अस्पतालों की जवाबदेही से लेकर त्वरित न्याय तक
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अनीता चौधरी, नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में नवजात बच्चों की तस्करी के एक संगठित गिरोह के पर्दाफाश के बाद कड़ा रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को गंभीरता से लिया और स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि किसी अस्पताल से नवजात शिशु की चोरी होती है, तो उस अस्पताल का लाइसेंस तत्काल निलंबित किया जाना चाहिए यह टिप्पणी न केवल अस्पतालों की जवाबदेही पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में व्याप्त इस जघन्य अपराध के प्रति शीर्ष अदालत की गहरी चिंता को भी दर्शाती है। जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक बच्चा चोरी गिरोह से जुड़े मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

कोर्ट ने न केवल इस मामले में त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए, बल्कि बाल तस्करी के खिलाफ व्यापक और सख्त कदम उठाने की रूपरेखा भी तैयार की। अगली सुनवाई 21 अप्रैल, 2025 को निर्धारित की गई है, जिससे इस मामले में और गहन विचार-विमर्श की उम्मीद है।

कोर्ट के प्रमुख निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई ठोस निर्देश जारी किए, जो न केवल तत्काल कार्रवाई को सुनिश्चित करते हैं, बल्कि भविष्य में इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए भी एक मजबूत ढांचा प्रदान करते हैं:

आरोपियों के खिलाफ सख्ती: कोर्ट ने सभी आरोपियों को निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। साथ ही, वाराणसी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) और अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) को निर्देश दिया गया कि वे दो सप्ताह के भीतर सत्र न्यायालय में मामले दर्ज करें और एक सप्ताह के भीतर आरोप तय करें। फरार आरोपियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने का भी आदेश दिया गया।

पीड़ित बच्चों का पुनर्वास: कोर्ट ने तस्करी के शिकार बच्चों के लिए संवेदनशील रुख अपनाते हुए निर्देश दिया कि उन्हें शिक्षा का अधिकार (RTE) के तहत स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और उनकी शिक्षा निर्बाध रूप से जारी रखी जाए। यह कदम बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

मुआवजे का प्रावधान: कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वे भादंस (BNSS) और उत्तर प्रदेश राज्य कानूनों के तहत पीड़ितों के लिए मुआवजे से संबंधित आदेश पारित करें। यह सुनिश्चित करता है कि प्रभावित परिवारों को आर्थिक और सामाजिक सहायता मिले।

देशव्यापी कार्रवाई: सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट्स को बाल तस्करी से जुड़े लंबित मामलों की स्थिति का जायजा लेने और छह महीने के भीतर इनका निपटारा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन मामलों की सुनवाई प्रतिदिन के आधार पर होनी चाहिए। यह निर्देश बाल तस्करी के खिलाफ एक समन्वित और समयबद्ध कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अवमानना की चेतावनी: कोर्ट ने अपने निर्देशों को लागू करने में किसी भी प्रकार की लापरवाही को गंभीरता से लेने की चेतावनी दी। इसे अवमानना के रूप में माना जाएगा, जो प्रशासनिक और न्यायिक तंत्र पर सख्ती बरतने की अदालत की मंशा को दर्शाता है।

अस्पतालों की जवाबदेही और सामाजिक जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी कि नवजात चोरी के मामले में अस्पताल का लाइसेंस निलंबित किया जाना चाहिए, एक सशक्त संदेश है। यह अस्पतालों को अपनी सुरक्षा व्यवस्था और प्रबंधन को और मजबूत करने के लिए प्रेरित करता है। नवजात शिशुओं की सुरक्षा एक संवेदनशील मुद्दा है, और इस तरह की घटनाएं न केवल परिवारों के लिए त्रासदी हैं, बल्कि समाज के विश्वास को भी ठेस पहुंचाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह कड़ा रुख और व्यापक निर्देश बाल तस्करी जैसे संगीन अपराध के खिलाफ एक मजबूत संदेश है। यह न केवल त्वरित न्याय और पीड़ितों के पुनर्वास पर जोर देता है, बल्कि समाज के सभी स्तरों पर जवाबदेही को भी सुनिश्चित करता है। कोर्ट के निर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन न केवल इस मामले में न्याय दिलाएगा, बल्कि भविष्य में इस तरह के अपराधों को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह समाज और प्रशासन के लिए एक जागरूकता का आह्वान है कि नवजात शिशुओं की सुरक्षा हमारी साझा जिम्मेदारी है। 

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