कश्मीर से कन्याकुमारी तक रेल का सपना हुआ साकार: कश्मीर की घाटियों में चिनाब ब्रिज पर गूंजेगी छुक-छुक रेल की आवाज...

Update: 2025-04-14 07:21 GMT
कश्मीर की घाटियों में चिनाब ब्रिज पर गूंजेगी छुक-छुक रेल की आवाज...
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नई दिल्ली, अनिता चौधरी। कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक सूत्र में बांधने का सपना मोदी सरकार ने पूरा कर दिखया है। दक्षिण में श्रीलंका की सीमा पर पंबन ब्रिज जो मल्हार की खाड़ी को चीरता हुआ और दौड़ता, भागता रामेश्वरम के अंतिम छोर तक तिरंगे के साथ अपना परचम लहराता हुआ नजर आता है तो दक्षिण में ही हिन्द महासागर के पास भारत भूमंडल के अंतिम क्षेत्र नागरकोविल तक भी भारतीय रेल कि वन्दे भारत दरदाती हुई लोगों को सुगम यात्रा करावा रही है।

नागरकोविल वो स्थान है जहां भारत का जमीनी भूमनदल खत्म हो जाता है और हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब महासागर एक दूसरे में समाता हुआ नजर आता है और महासागर के इस समागम के बीच स्थित है विवेकानंद कि साधना स्थली विवेकानंद स्मारक जिसे 1963 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक दत्ताजी दीदोंलकर के प्रयासों से निर्मित किया गया था।

लेकिन समंदर को चीरती ये रेल यात्रा सिर्फ कन्याकुमारी तक ही सुगम नहीं है बल्कि रेल की ये पटरियाँ ऊंचे दरख्त और पहाड़ों के बीच से भी गुजरने को बेताब हैं। जल्द ही जम्मू कश्मीर की पहली वन्दे भारत ट्रेन चेनाब ब्रिज पर दौड़ेगी । चिनाब ब्रिज का काम पूरा हो ही गया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 अप्रैल को कश्मीर तक वंदे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन करेंगे और पहली वन्दे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 272 किलोमीटर लंबे उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक USBRLके पूरा होने के मौके पर श्री माता वैष्णो देवी कटरा से वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाएंगे।

चिनाब रेल पुल सिर्फ दो पहाड़ों को ही नहीं जोड़ता है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर के लिए सपनों के एक नए युग के विकास को भी पूरे भारत से जोड़ता है।

जटिल हिमालय के भूगर्भ के अस्थिर भूभाग में बना चिनाब पुल बुनियादी ढांचे की सिर्फ एक उपलब्धि मात्र नहीं है बल्कि इंजीनियरिंग का चमत्कार भी है। चिनाब ब्रिज भारतीय इंजीनियरिंग की बेमिसाल कारीगरी है।

यह ब्रिज नए युग के भारत के साहस, नवाचार और प्रगति के अटूट संकल्प और विश्वास का भ प्रतीक है। इस समय चिनाब ब्रिज और पंबन ब्रिज के चलते पूरे विश्व में भारतीय के इंजीनियरिंग का डंका बज रहा है।

सलाल बांध के पास बनी चिनाब नदी पर यह पुल 1,315 मीटर ऊंचा है। पुल की मुख्य मेहराब की लंबाई 467 मीटर है। ये मेहराब 266 किलोमीटर प्रति घंटे की हवा की स्पीड झेल सकता है। यह पुल ऊंचाई में एफिल टॉवर से भी ऊंचा है। चिनाब ब्रिज नदी के तल से रेल स्तर तक कुतुब मीनार से लगभग पांच गुना ऊंचा है। पुल के निर्माण में 28,000 मैट्रिक टन से अधिक स्टील लगा है। इस ब्रिज को बनाने में भारतीय रेलवे में अपनी तरह की पहली केबल क्रेन प्रणाली शुरू की गई है । 359 मीटर ऊपर “विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल” है।

सामरिक महत्व –

चिनाब ब्रिज कश्मीर के जिन जिन क्षेत्रों से हो कर गुजरता है वह क्षेत्र पाकिस्तान सीमा के बेहद करीब है । ऐसे में विकास और समृद्धि के लिहाज से यह पुल जहां एक तरफ हर समय सीमा पर तैनात पाकिस्तान की आर्मी और रेंजर्स को मुंह चिढ़ती हुई नजर आएगी वहीं अब तक सरहद तक असलाह-बारूद और रसद पहुँचने के लिए भारत सड़क मार्ग का उपयोग कर रहा था जिस पर पाकिस्तान के माध्यम से चीन भी हर वक्त रडार के माध्यम से नजर गड़ाए एक एक गतिविधि पर नजर बनाए रखता था लेकिन अब जहां सुरंगे उस रडार की नज़रों से सुरक्षा डेंगिन वहीं रेल मध्याम से रसद और असलाह बारूद पहुंचना आसान भी रहेगा और सुरक्षित भी । हमारी फौज के जवानों के लिए भी आवाजाही अब सुगम , सरल , सुरक्षित और त्वरित होगी ।

सुरक्षा के इंतजाम

वह दिन अब दूर नहीं जब रेल मार्ग के जरिए कश्मीर घाटी का संपर्क पूरे देश के साथ 12 महीने रहेगा। वहीं, उधमपुर-बारामूला रेल परियोजना के तहत कई टनल और ब्रिज भी इसी चिनाब ब्रिज का हिस्सा है । और सुरक्षा के लिहाज से इन सब पर निगरानी रखने के लिए कई सेंसर और हाईटेक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जो कंट्रोल रूम से मॉनिटर किए जाते हैं । विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज चिनाब रेलवे ब्रिज तेज भूकंप को भी झेल सकता है, यह माइन फ्री और ब्लास्ट फ्री भी है. वहीं, रेलवे पुलिस भी लगातार इस ब्रिज पर अपनी निगरानी चौबीस घंटे और हर पहर रखेगी ।

अगर लागत की बात करें तो चिनाब पुल, चिनाब दरिया के ऊपर सलाल डेम के पास स्थित है, 1,315 मीटर लंबा है और इसका मुख्य आर्क स्पैन 467 मीटर है। इसकी मजबूत संरचना और तकनीकी उत्कृष्टता को दर्शाता है. इस ब्रिज के निर्माण पर 14,000 करोड़ रुपये की लागत आई है। चिनाब नदी पर बना यह पुल न केवल अपनी भव्यता और ऊंचाई के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके डिजाइन और तकनीकी विशेषताओं के कारण भी यह दुनियाभर में चर्चित है। यह पुल भारत की रेलवे इंजीनियरिंग की कुशलता का प्रतीक है. इसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग भी आकर्षित होंगे।

आइए जानते हैं कि चिनाब ब्रिज के साथ-साथ भारत सरकार कि और कौन कौन पुल और परियोजनाएं जुड़ी हुई हैं ।

अंजी खाद पुल - एक समृद्ध कश्मीर के लिए ऊंचाइयों को पाटना

भारत का पहला केबल-स्टेड रेलवे पुल, अंजी खाद पुल, प्रतिष्ठित चिनाब पुल के दक्षिण में अंजी नदी की गहरी गोद में फैला हुआ है। यह स्मारकीय पुल केवल एक संरचना नहीं है - यह एक सपना है, जो हुए मानवीय सरलता के लिए प्रकृति की सबसे भयंकर चुनौतियों को भी चुनौती देता हुआ नजर आता है । उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लाइन के कटरा-बनिहाल खंड को जोड़ने वाला यह केबल-स्टेड जम्मू शहर से लगभग 80 किमी दूर, हिमालय की गोद में बना हुआ है । बर्फ से ढकी चोटियों की पृष्ठभूमि में बना यह पुल हर मौसम में मजबूती से खड़ा रहेगा और जिससे कनेक्टिविटी इस पूरे क्षेत्र में बनी रहेगी,यात्रा आसान होगी। नई और कच्ची पहाड़ों के बीच बना अंजी खाद पुल अप्रत्याशित भूविज्ञान, भूकंपीय झटकों, तूफानी हवाओं और समय की कसौटी पर खरा उतरता है। नदी तल से 331 मीटर ऊपर यह पुल 725 मीटर की गहराई में फैला है, जिसे 96 उच्च-तन्य केबलों द्वारा सहारा दिया गया है, जो इसे स्थिरता प्रदान करते हैं। इसमें एक उल्टा Y तोरण है जो नींव के शीर्ष से 193 मीटर की ऊँचाई तक उठता है। 8,215 मीट्रिक टन से अधिक संरचनात्मक स्टील से बना है। कश्मीर में अंजी खाद पुल जीवन को बदलने, दूरियों को पाटने और रिश्तों को मज़बूत करने के लिए एक अनूठी पहल है । यह आर्थिक तौर से भी बेहद महत्वपूर्ण है जहाँ व्यापार और पर्यटन दोनों फलेगा-फूलेगा ।

पहाड़ों के बीच ही नहीं पहाड़ों के नीचे भी प्रगति की फुसफुसाहट

हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच, जहां बादल धरती को चूमते हैं और घाटियां विरासतों की बातें करती हैं वहीं भारतीय रेलवे ने विकास को एक नई दिशा डी है जहां पहाड़ों के बीच रेल मरग सुगम किया है वहीं पहाड़ों के नीचे का टनल बना कर दूरियों को कम किया है । उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (USBRL) परियोजना की भव्यता इसकी सुरंगों में झलकती है । इन सुरंगों के छिपे हुए गलियारे जो न केवल भूगोल को जीतते हैं बल्कि भविष्य की गति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। 272 किलोमीटर लंबे USBRL रेलवे मार्ग में से 36 प्रमुख सुरंगें लगभग 119 किलोमीटर को कवर करती हैं। इनमें से कुछ सुरंगें इतनी लंबी और जटिल हैं कि वे इंजीनियरिंग उत्कृष्टता में विश्व के लिए भी मील का पत्थर बन गई हैं।

1. टी-50 - भारत की सबसे लंबी परिवहन सुरंग

लंबाई- 12.77 किमी , स्थान: सुंबर-खारी

भारत की सबसे लंबी परिवहन सुरंग, टी-50, एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में खड़ी है, जो कश्मीर घाटी को देश के बाकी हिस्सों से निर्बाध रूप से जोड़ती है। नई सुरंग विधि का उपयोग करके निर्मित, यह क्वार्टजाइट, गनीस और फ़िलाइट जैसी दुर्जेय चट्टान संरचनाओं से होकर गुज़रती है। सुरंग में एक मुख्य मार्ग के साथ-साथ एक समानांतर एस्केप सुरंग है, जो हर 375 मीटर के अंतराल पर क्रॉस-पैसेज द्वारा आपस में जुड़ी हुई है। इसका निर्माण चुनौतियों से भरा था, जिसमें भूस्खलन, उच्च जल प्रवेश, कतरनी क्षेत्र और संयुक्त ज्वालामुखीय चट्टान संरचनाएँ शामिल थीं।

2. टी-80 - पीर पंजाल रेंज में कश्मीर की रीढ़

लंबाई- 11.2 किमी .स्थान: बनिहाल-काजीगुंड

पीर पंजाल रेंज के नीचे बनी, टी-80 सुरंग जम्मू और कश्मीर के बीच साल भर संपर्क सुनिश्चित करती है। बर्फबारी और ऊंचाई की बाधाओं को पार करते हुए, यह परिवहन और व्यापार को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है और इसे 'USBRL की रीढ़' भी कहा जा सकता है।

3. टी-34 - दोहरे मार्ग की सरलता

लंबाई-5.099 किमी, स्थान: पाई-खड्ड से अंजी खड्ड

USBRL परियोजना में एक महत्वपूर्ण कड़ी, सुरंग टी-34, इंजीनियरिंग की सरलता का प्रमाण है, जो पाई-खड्ड को अंजी खड्ड से निर्बाध रूप से जोड़ती है। 5.099 किमी तक फैली इस सुरंग में ट्विन-ट्यूब डिज़ाइन है - ट्रेन संचालन के लिए एक मुख्य सुरंग और सुरक्षा के लिए एक समानांतर एस्केप सुरंग, जो 375 मीटर के अंतराल पर क्रॉस-पैसेज द्वारा आपस में जुड़ी हुई है।सिरबन डोलोमाइट रॉक संरचनाओं के माध्यम से बनाई गई यह जुड़वां सुरंग प्रणाली, भारत के पहले केबल-स्टेड रेलवे पुल, अंजी खड्ड ब्रिज से जुड़ी हुई है, जिसमें हर 375 मीटर पर क्रॉस-पैसेज हैं, जो सुरक्षा और परिचालन दक्षता दोनों सुनिश्चित करते हैं।

4. टी-33 - त्रिकुटा की छाया में एक चुनौतीपूर्ण मार्ग

लंबाई- 3.2 किमी, स्थान: कटरा-बनिहाल खंड

सुरंग टी-33, कटरा-बनिहाल खंड का सबसे चुनौतीपूर्ण खंड है, जो त्रिकुटा पहाड़ियों के तल पर 3.209 किमी तक फैला है, जो कश्मीर घाटी के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी है। अत्यधिक खंडित डोलोमाइट और मुख्य सीमा थ्रस्ट ज़ोन को नेविगेट करते हुए, इसे गंभीर भूवैज्ञानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें अक्टूबर 2017 में एक बड़ा पतन भी शामिल है जिसने महीनों तक प्रगति को रोक दिया।

5. टी-23

लंबाई- 3.15 किमी, स्थान: उधमपुर-चक रखवाल

सुरंग टी-23 इस खंड की सबसे लंबी सुरंग है, जिसमें उधमपुर और चक रखवाल रेलवे स्टेशनों के बीच गिट्टी रहित ट्रैक है। 2008 में, गंभीर निचोड़, सूजन और तल के उभार के कारण बड़ी बाधाएँ आईं, जिसके लिए विशेषज्ञ हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। इन चुनौतियों पर काबू पाकर, सुरंग को सफलतापूर्वक पूरा किया गया, जो परियोजना में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

6. टी-1 - अत्याधुनिक तकनीकों से बनाई गई सुरंग

लंबाई- 3.209 किमी

दुर्भाग्य से, टी-1 को मुख्य सीमा थ्रस्ट द्वारा उत्पन्न निरंतर चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, जिसमें गंभीर कीचड़ और पानी का प्रवेश शामिल है। इन मुद्दों का मुकाबला करने के लिए, संरचनात्मक स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गहरे जल निकासी पाइप, छतरी पाइप छत और रासायनिक ग्राउटिंग को एकीकृत करते हुए उन्नत "सुरंग निर्माण की आई-प्रणाली" को सफलतापूर्वक तैनात किया गया था।

7. टी-25 - भूमिगत जलधारा के विरुद्ध लड़ाई

लंबाई- 3 किमी

सुरंग टी-25 का निर्माण छह वर्षों तक चला, जिसमें 2006 में खुदाई के दौरान मिली एक अप्रत्याशित भूमिगत जलधारा की चुनौती भी शामिल थी। इस धारा से प्रति सेकंड 500 से 2000 लीटर पानी निकलता था, जिससे कई तरह की बाधाएँ उत्पन्न होती थीं। इस प्राकृतिक बाधा को पार करने के लिए परियोजना टीम से दृढ़ निश्चय, अभिनव इंजीनियरिंग और अथक प्रयास की आवश्यकता थी।

यूएसबीआरएल की सुरंगें हिमालय में समाहित जीवनरेखाएँ हैं, जो कश्मीर को भारत के हृदय से जोड़ती हैं। प्रत्येक सुरंग संघर्ष, नवाचार और विजय की कहानी कहती है। चट्टान तोड़ने वाली मशीनों की गूँज के साथ, वे एक नए युग की शुरुआत का संकेत देती हैं। हिमालय से होकर गुजरने वाली ये सुरंगें न केवल कनेक्टिविटी का प्रतीक हैं, बल्कि भारत के दृढ़ संकल्प का भी प्रतीक हैं।

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