Waqf Board: UPA सरकार ने वक्फ को गिफ्ट की थी 123 सम्पत्तियां, किरेन रिजिजू बोले - बिल ले आए नहीं तो पार्लियामेंट भी क्लेम कर लेते...

Update: 2025-04-02 11:20 GMT
UPA सरकार ने वक्फ को गिफ्ट की थी 123 सम्पत्तियां, किरेन रिजिजू बोले - बिल ले आए नहीं तो पार्लियामेंट भी क्लेम कर लेते...
  • whatsapp icon

Waqf Board : नई दिल्ली। वक्फ बोर्ड के संशोधन पर सदन में खूब बहस हुई। जब वक्फ बिल लाने की आवश्यकता पर बात की गई तो केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि, अगर यह बिल नहीं लाते तो पार्लियामेंट की जमीन पर भी वक्फ वाले क्लेम कर लेते। यह बात कहने से पहले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने UPA सरकार द्वारा 123 संपत्ति को वक्फ बोर्ड को देने का मामला भी उठाया

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि, दिल्ली में 1970 से चल रहा एक मामला CGO कॉम्प्लेक्स और संसद भवन समेत कई संपत्तियों से जुड़ा है। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इन संपत्तियों को वक्फ संपत्ति बताया था। मामला कोर्ट में था लेकिन उस समय UPA सरकार ने 123 संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करके वक्फ बोर्ड को सौंप दिया था। अगर हमने आज यह संशोधन पेश नहीं किया होता, तो हम जिस संसद भवन में बैठे हैं, उस पर भी वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा सकता था। अगर पीएम मोदी सरकार सत्ता में नहीं आती, तो कई संपत्तियां गैर-अधिसूचित हो चुकी होतीं।

आखिर हुआ क्या था :

जनवरी 2014 में शहरी विकास मंत्रालय ने 123 संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने और दिल्ली वक्फ बोर्ड को स्वामित्व अधिकार हस्तांतरित करने के लिए एक मसौदा कैबिनेट नोट तैयार किया था। साल 2014 में आम चुनाव होने थे। मार्च में आदर्श आचार संहिता लगनी थी। आदर्श आचार संहिता लगने से एक रात पहले 123 संपत्तियों को गैर-अधिसूचित कर दिया गया।

साल 1911-1915 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इस जमीन का अधिग्रहण किया गया था। 123 संपत्तियों को गैर-अधिसूचित कर अधिग्रहण को रद्द कर दिया गया था। इस तरह इस संपत्ति के वक्फ के खाते में जाने के रास्ते खोल दिए गए थे।

इनमें से कुल 61 संपत्तियां भूमि और विकास विभाग के स्वामित्व में थीं जबकि शेष दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के स्वामित्व में थीं।

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत हुई। इसके आलावा दिल्ली उच्च न्यायालय में वीएचपी द्वारा याचिका भी दायर की गई थी। मामला सामने आने पर एनडीए सरकार ने 123 संपत्तियों के हस्तांतरण की जांच शुरू की, जिसमें दावा किया गया कि संपत्ति का हस्तांतरण "राजनीतिक कारणों" से किया गया था।

अपनी याचिका में, वीएचपी ने कहा था कि, "जिन संपत्तियों का अधिग्रहण किया गया है और उन पर कब्ज़ा करने के बाद उन्हें सरकार में निहित किया गया है। उन्हें भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 48 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए अधिग्रहण से मुक्त नहीं किया जा सकता है।"

इनमें से ज़्यादातर संपत्तियां दिल्ली के कॉनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी रोड, मानसिंह रोड, पंडारा रोड, अशोका रोड, जनपथ, संसद भवन, करोल बाग, सदर बाज़ार, दरियागंज और जंगपुरा में और उसके आसपास स्थित हैं। जबकि प्रत्येक संपत्ति में एक मस्जिद है, कुछ में दुकानें और आवास भी हैं।

बता दें कि, जनवरी 2013 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने सरकार को सलाह दी थी कि संपत्तियों के हस्तांतरण का प्रस्ताव कानूनी रूप से संभव नहीं है, जिसके बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने केंद्रीय वक्फ परिषद के तहत विशेषज्ञों की एक समिति गठित की। विशेषज्ञ समिति ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसके बाद वाहनवती सहमत हो गए।

जब नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई तो इस निर्णय को पलटने का फैसला लिया। जब कभी कांग्रेस पर तुष्टिकरण करने का आरोप लगता है यह मामला जमकर उठाया जाता है।

Tags:    

Similar News