देवर्षि नारद : लोकहितकारी लोकसंचार के प्रणेता
प्रो. मनीषा शर्मा, शिक्षाविद व लेखक
प्राचीन काल से ही संपूर्ण भारतीय समाज में संवाद स्थापित करने और सूचनाओं के आदान-प्रदान की सक्रिय परंपरा रही है । यदि हम भारतीय समाज को देखें तो पाते हैं की संपूर्ण भारत में हजारों साल पूर्व भी हमारे सभी देवी देवताओ जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनके कार्य, उनसे जुड़ी हुई संपूर्ण कथायें, जानकारी भारतीय लोक मानस में व्याप्त है । यह सब हमारे यहां की श्रुति परंपरा के कारण ही संभव हो पाया। इस संदर्भ में यदि हम देवर्षि नारद की भूमिका को देखें तो वह एक लोक संचारक के रूप में प्रतीत होते हैं। खड़ी हुई शिखा, हाथ में वीणा और मुख में नारायण नारायण शब्द का उच्चारण यह शब्द चित्र देवर्षि नारद का नाम आते ही हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। भगवान की हर एक लीला में नारद जी का हाथ, उनका संवाद होता था। श्री कृष्ण स्वयं नारद जी के महत्व को बताते हुए श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में कहते हैं कि 'देवर्षीणां श्चनारद' ! अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं।
मैत्रायणी संहिता, अथर्ववेद में भी नारद जी का उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण 1/6 में नारदजी को 'त्रिलोकज्ञ'अर्थात तीनो लोको का ज्ञाता कहा गया है। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय भली- भांति दिया गया है। नारदजी ब्रह्मा जी के पुत्र, बृहस्पतिजी के शिष्य और भगवान विष्णु के भक्त थे। सनत कुमार नारद जी के गुरु थे। वे 'वीणा' नामक वाद्य यंत्र के आविष्कारक व संगीत शास्त्र के ज्ञाता थे।
आदि पत्रकार नारद जी की पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सज्जनों की रक्षा व दर्जनों का विनाश रहा है। नारद जी ने नारद पंचरात्र, नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राज, कोपनिषद के अतिरिक्त 18 महापुराणों में से एक नारद महापुराण जिसमें 25000 श्लोक है, की रचना की है। 'नारद महापुराण' में भगवान विष्णु की भक्ति की महिमा, धर्म- संगीत, मोक्ष, ब्रह्म ज्ञान आदि विषयों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।
नारद जी के बहुआयामी चरित्र की कई विशेषताएं हैं जो उन्हें एक कुशल लोक संचारक और पत्रकार सिद्ध करती है। नारद जी सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व है लेकिन फिर भी उन्हें अपने चरित्र का तनिक भी अभिमान नहीं है। उन्हें पता है कब क्या बोलना है, कितना बोलना है और बोलने से सृष्टि को क्या लाभ होगा। इस कारण इसका सम्यक विचार करना ही नारदीय गुण सदृश है। वे एक सक्रिय व सार्थक संवाददाता के रूप में इस लोक से उस लोक में परिक्रमा कर निरंतर सूचनाओं का, संवादों का आदान-प्रदान करते रहे। वे विश्व के प्रथम संवाददाता है जो सक्रिय होकर इधर से उधर संवाद का सेतु बनाते हैं । उनकी पत्रकारिता, उनकी संवाद कला सतत सक्रिय है अतः वे स्पॉट रिपोर्टर के रूप में जीवंतता के साथ अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।उनकी पत्रकारिता लोकमंगल की पत्रकारिता है। आदि पत्रकारिता में नारद जी का महत्वपूर्ण योगदान विपत्ति में सृष्टि और मानवता की रक्षा करने का रहा है । उन्होंने रामावतार में, कृष्णावतार में लोकमंगल की पत्रकारिता की और लोकहित का संवाद संकलन किया। उन्होंने माता सती के दक्ष के यज्ञ कुंड में शरीर त्यागने की सूचना भगवान शंकर को दी। उनके कारण ही असुर हिरण कश्यप के बेटे प्रह्लाद जैसे भक्त से समाज परिचित हुआ। उन्होंने ही कंस को बताया कि देवकी की कोई भी संतान आठवीं हो सकती है इसलिए कंस को हर संतान का वध करना उचित है। उनका ऐसा कहने का कारण कंस के अत्याचार और पापों को बढ़ाना था ताकि उसके बध को समाज के लिए जरूरी बताया जा सके। नारद जी की विश्वनीयता देवता ,दानवो व गंधर्व सभी के बीच में थी। सभी लोग उनका आदर सत्कार करते थे, उनकी बात पर विश्वास करते थे। उनकी बात पर किसी को भी तनिक भी शंका या संदेह नहीं हुआ। कभी भी कभी किसी ने कोई प्रश्न नही उठाया। यह विश्वास और यह सर्वत्र स्वीकार्यता उनके व्यक्तित्व का अद्भुत गुण है।
पत्रकार का धर्म होता है कि जहां भी कुछ गलत हो वह उसकी खबर लेकर समाज के जागरूक, चिंतनशील और सकारात्मक सोच वाले लोगों तक पहुंचाएं। अपनी इस भूमिका के कारण नारद अत्यंत अहम हो जाते हैं और इसी कारण पत्रकारिता भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती हैंऔर उसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी जाती है। उनके द्वारा रचित नारदीय भक्ति सूत्रों में अनेक तरह के सूत्र मिलते हैं जिसे वर्तमान मीडिया के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ये सूत्र मीडिया की आचार संहिता का भी कार्य कर सकते हैं। वर्तमान समय में समाज के साथ मीडिया जगत भी मूल्यों के संक्रमण से गुजर रहा है। ऐसे में मीडिया के दायित्व और उनकी भूमिका क्या हो यह सब नारद सूत्र से प्राप्त हो सकते हैं । ये सूत्र समाज की संचार नीति और मीडिया की आचार संहिता के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जिससे हम लोकमंगलकारी मीडिया के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सकारात्मक और मूल्यनिष्ठ परिवेश का निर्माण कर देश व समाज के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
प्रो. मनीषा शर्मा, शिक्षाविद व लेखक, संकायाध्यक्ष- व्यावसायिक शिक्षा संकाय, पत्रकारिता व जनसंचार विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विवि. अमरकंटक