श्रीराम हमारी प्रेरणा हैं, हमारा मार्गदर्शन, हमारे आदर्श
सौम्या पाण्डेय 'पूर्ति
धरती पर जब भी पाप बढ़ता है तब अखण्ड ब्रह्मांड के रचयिता, कर्ता-धर्ता, पालनहार श्री नारायण अवतार लेते हैं । अपने प्रत्येक अवतार में नारायण न केवल धरणी को पाप के बोझ से मुक्त करते हैं अपितु उनका प्रत्येक रूप अपने आचरण के कारण भी सर्वमान्य एवं पूजनीय हैं । इसी कड़ी में श्री हरि ने जब त्रेता युग में श्रीराम के रूप में अवतार धारण किया तो वे एक आदर्श के रूप में स्थापित हुए। श्री राम का धरती पर व्यतीत किया गया प्रत्येक क्षण न केवल मर्यादित एवं आदर्श युक्त जीवन का प्रतिरूप है, अपितु उन्होंने प्रत्येक जीवन धर्म का आदर्श रूप में पालन करते हुए एक प्रतिमान स्थापित किया जो आज भी वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।
सर्वविदित है कि उनके समान पुत्र, शिष्य, भाई, पति, सखा, मित्र, एवं राजा आज तक न कोई हुआ है एवं न ही हो सकता है क्योंकि आदर्श के जो कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किये हैं उन तक लेशमात्र भी पहुँचना किसी मनुष्य के जीवन को धन्य कर सकता है । श्री राम जी की अवतार यात्रा का सर्वप्रथम भाग उनका शिष्योचित व्यवहार है, जिसे उन्होंने पूर्ण श्रद्धा से निभाया, पहले गुरु वशिष्ठ के आश्रम में तत्पश्चात गुरु विश्वामित्र के साथ उनके यज्ञ के आयोजन को सफल बनाने के अतिरिक्त उन्हीं की आज्ञा से श्रीराम ने जनक जी की प्रतिज्ञा का मान रखते हुए धनुष भंग किया व सीताजी के साथ स्वयंवर भी किया। इसके पश्चात एक पुत्र के रूप में पिता के वचन की मर्यादा रखने के लिए सहर्ष वन को प्रस्थान कर गए। यहाँ सीता माता का त्याग भी उल्लेखनीय है जो इस यात्रा में उनकी सहचारिणी बनीं एवं लक्ष्मण जी का भी जो उनके सेवक रूप में उनके साथ रहे यह दोनों उनके अवतार कालीन यात्रा को आदर्श रूप में परिपूर्ण करने में सहायक रहे।
इसके बाद आता है श्री राम का सखा रूप, जिसमें वो निषाद राज के साथ अपनी मित्रता निभाते हैं व मित्र भाव में जात-पात, ऊंच-नीच के सभी भेद को मिटा देते हैं। इसी कड़ी में आगे सुग्रीव जी से प्रभु राम की मित्रता। यहाँ उल्लेखनीय है कि उस काल में इस प्रकार की पहल श्री राम ने ही करी व सभी मनुष्यों के एक समान महत्व को दर्शाया । श्री राम एक सर्वश्रेष्ठ भ्राता के रूप में भी सदैव पूजे जाते हैं। यहाँ भरत जी व चारों भाइयों का एक दूसरे के प्रति प्रेम भी आदर्शानुकूल है जो कि एक प्रकार से भ्रातृ प्रेम का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण भी है ।
इन सभी रूपों में आदर्श आचरण करते हुए श्री राम ने एक पति के रूप में भी सीता जी के प्रति समर्पण में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी । सीता जी के अपहरण के पश्चात किस तरह से उन्होंने उन तक पहुँचने का उद्यम किया व रावण के साम्राज्य का अंत करके उन्हें वापस लाए। यहाँ यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि उन्होंने सामाजिक मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए सीता जी की अग्नि परीक्षा भी ली परन्तु उनके हृदय में सीता जी के अतिरिक्त अन्य किसी स्त्री के प्रति आसक्ति न जगी एवं श्री राम देवताओं व राजाओं का एकमात्र ऐसा उदाहरण हैं जिन्होंने पूर्ण मर्यादा के साथ एक पत्नी व्रत का नियमपूर्वक पालन किया । उस काल का ये भी एक सर्वोच्च उदाहरण है।
श्री राम एक राजा के रूप में इतने अधिक आदर्शवादी थे कि उनके राजकीय काल को रामराज्य के नाम से जाना जाता है । इससे सुंदर शाशनकाल का कोई उदाहरण न उसके पूर्व का मिलता है न पश्चात का, रामराज्य ही सर्वोत्तम राज काज का एक मात्र उदाहरण है। राम हमारी आस्था से जुड़े हुए हैं आज भी प्रत्येक माता श्री राम जैसा पुत्र चाहती है तो भाई उनके जैसे भाई की कामना करता है, स्त्री पति रूप में राम का ही अंश चाहती हैं तो गुरु भी श्री राम जैसा शिष्य । कोई मित्र व किसी भी प्रकार से हीन मनुष्य जब कोई सहारा ढूढ़ता है तो उसे भी श्री राम ही चाहिये क्योंकि उन्होंने ही अस्पृश्यता का भेद भी मिटाया था माता शबरी के आश्रम जाना व उनका उद्धार करना इसका सर्वोच्च उदाहरण है । एक संतान अपने जीवन को निर्देशित करने के लिए पिता के रूप में जिस आदर्श की परिकल्पना करती है वो श्री राम ही हैं । श्री राम एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जो शत्रुता का भी सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं क्योंकि युद्ध भी उन्होंने मर्यादा के साथ ही लड़ा था एवं विजय भी प्राप्त की थी । श्री राम हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं, वो हमें बताते हैं कि यदि हम चाहें तो बिना किसी अवरोध के हम अपना जीवन मर्यादित रूप से जी सकते हैं, श्री राम हमारी प्रेरणा हैं, हमारा मार्गदर्शन हैं, हमारे आराध्य हैं व सबसे बड़ी बात हमारे आदर्श हैं ।