नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। भारतीय जनता पार्टी राफेल मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के कथित झूठ का पर्दाफाश करने के लिए देशभर में जिला मु यालयों पर प्रदर्शन करेगी। विगत एक वर्ष से भाजपा नेतृत्व ने संभवत: मन बना लिया है कि वह श्री गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर परिपक्व राजनेता के रूप में स्थापित करके ही दम लेगी। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद जिस राफेल पर गैर कांग्रेसी विपक्षी दल भी बात नहीं कर रहे, भाजपा कांग्रेस के इस अग भीर मुद्दे पर पूरी ईमानदारी से बचाव कर खुद उलझती जा रही है। जबकि होना यह चाहिए कि लोकसभा चुनाव को देख भाजपा नेतृत्व अपने घर के राफेल संभाले जो गाहे बगाहे उसे ही न केवल घायल कर रहे हैं, अपितु चुनावी मोर्चो पर हार भी दिला रहे हैं। राफेल मुद्दा नि:संदेह देश की सुरक्षा से जुड़ा है। पर इसकी खरीद आदि की प्रक्रिया सच कहें तो इतनी जटिल होती ही है कि एक आम आदमी उसे समझ नहीं पाता। राहुल गांधी जो स्वयं अपनी समझ पर ज्यादा जोर नहीं देते अपने सलाहकारों के कहने से इसे मुद्दा बनाए हुए हैं। ताजा विधानसभा चुनावों को भी उन्होंने राफेल और प्रधानमंत्री मोदी पर केन्द्रित रखा। परिणाम बताते हैं कि वे सफल रहे।
भाजपा पूरे चुनाव में उनके आरोपों का बचाव कर उन्हें नायक बनाती रही। हाल ही में सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस को स्वयं ही नैतिकता के आधार पर देश से माफी मांगनी थी। पर जो कांग्रेस आपातकाल के दमन, सिखों के नर संहार पर माफी मांग न सकी, वह इस झूठ पर मांगे अपेक्षा बेमानी है। श्री गांधी ने अपने स्वर और तेज कर दिए। इस बीच समाजवादी पार्टी ने अपनी दिशा बदली। शेष विपक्षी दल भी शांत हुए। पर भाजपा नेतृत्व राफेल मुद्दे को जीवित रखना चाहती है, यही कारण है कि अब वह जिला मुख्यालयों पर श्री राहुल गांधी के खिलाफ प्रदर्शन करेगा।
उत्तर भारत के उन क्षेत्रों में जहां भाजपा की सरकार है या अभी-अभी गई है, कार्यकर्ताओं का जमीनी स्तर पर क्या हाल है, इसकी बानगी तीन विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय नेतृत्व ने देखी है। हर कार्यकर्ता के पास अपना-अपना राफेल है। इस राफेल में गोला बारुद उनके आका दे रहे हैं। सब एक दूसरे को निपटा कर भी अभी पराजित नहीं हुऐ हैं। हार के बाद भड़ास का दौर जारी है। नतीजे के तुरंत 24 घंटे के बाद से जो बयान आ रहे हैं वह वातावरण को और दूषित ही कर रहे हैं। ऐसा नहीं है उनकी सार्वजनिक मंचों पर मीडिया में कही बाते गलत हैं। पर क्या ये बाते घर में नहीं हो सकती या घर के अंदर सुनने वाले कान ही अब खो गए हैं या बंद हैं। आवश्यकता इस पर विचार करने की है। कारण भाजपा नेतृत्व इस मामले में हमेशा सौभाग्यशाली रहा है कि कार्यकर्ताओं की पीड़ा सुनने के लिए, उनके सिर पर हाथ रखने वाले उसके पास हमेशा से रहे हैं। आज भी हैं। नेतृत्व इन्हें तलाशे। उनकी भी सुधबुध लें तो भटकाव कम होगा। वह अपने आंतरिक नेटवर्क पर भरोसा करना सीखें तो वह जमीनी हकीकत से और वाकिफ होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम ने नि:संदेह इन साढ़े चार साल में ऐतिहासिक काम किए हैं। पर भाजपा नेतृत्व या तो असहिष्णुता पर बचाव कर रहा है या आरक्षण पर कभी वह चर्च पर झूठे हमलों को लेकर बचाव की मुद्रा में है तो कभी कश्मीर में मानवाधिकार के मुद्दे पर। कार्यकर्ताओं के पास जीएसटी एवं नोटबंदी को लेकर ठोस तर्क नहीं है। रही सही कसर पार्टी के कार्यकर्ता अपने नेताओं के मंचीय उद्गार एवं जमीनी आचरण से दुखी है। संवाद एवं समन्वय की हर स्तर पर कमी महसूस की जा रही है। ऐसे में अच्छा यह है कि राष्ट्रीय नेतृत्व घर के अंदर असंतोष, निराशा बेचैनी के राफेल संभाले और उनमें असीम ऊर्जा, संकल्प एवं उत्साह के गोला बारूद भर कर उनका मुंह विपक्षी दलों की ओर करें अन्यथा........