पटना। विश्व मान्य भारतीय अर्थव्यवस्था की रीड, और भारतीय संस्कृति की मूल जड़,उल्लास,उमंग,उत्साह के उत्सव,पर्व/लोक पर्व राखी, दीपावली,छट,होली,जन्माष्टमी,तीज जैसे अधिमान्य पर्वो के अवकाशों में भारी कटोत्री ओर गैर सनातनी पर्वो के पर्वो के अवकाश में भारी बढोतरी करके बिहार की नीतीश सरकार बनाम सुशासन बाबू ने 85%बिहारियों के अस्तित्व को चुनोती दे दी। नतीजन बिहार सुशासन बाबू की तुष्टिकरण, दुरंगी नीति के खिलाफ उबल सा पड़ा।समाज के हर वर्ग ने सुशासन बाबू सरकार के इस एक तरफा फैसले को कोसा।तीखी प्रतिक्रिया प्रकट की। सुशासन बाबू ने एक वर्ग को खुश करने के फेर में बंगाल,केरल, कर्नाटक को भी पीछे छोड़ दिया।
महिलाएं, छात्राएं भी काफी आक्रोशित है।सुशासन बाबू ने सीधे महिलाओं की आस्था,विश्वास,भक्ति ,शक्ति को बुरी तरह आहत किया। मजा ये। सुशासन बाबू अपने इस समाज को तोड़ने,बांटने वाले फैसले पर अडिग है।जैसे जातिय जनगरना जैसे विवादास्पद,विस्फोटक फैसले पर अडिग-अटल,अविचलित।बीजेपी को छोड़ कांग्रेस,सपा, टीएमसी,बीएसपी सहित तमाम राजनीतिक दलों ने सुशासन साहब के इस नफरत बढ़ाने वाले फैसले पर कुंडली मारना उचित माना। वजह। वोटो के शिकारी इन रीड विहीन दलो में साहस का अभाव है।जिनमे इतनी ताकत नही बची कि वे किसी समाज तोड़क फैसले का विरोध तो दूर मामूली टीका टिप्पड़ी कर सके।वोटो ने इन्हें अंधा कर दिया।
गांधी की अहिंसा की लाठी के बगार के बिना एक कदम भी न चलने वाले इन इंडी घटक दलों ने अहिंसा को तार तार करने वाले कुछ पर्वो पर बढ़ाए गए अवकाश ओर अहिंसा को मजबूती देने वाले सनातनी लोक पर्वो में प्रचलित अवकाश में भारी कटोत्री करने के नीतीश फैसले का समर्तन करके सनातन शक्ति को चुनोती सी दी है।
मौर्यो, बुद्ध,महावीर,बाबू जेपी,कर्पूरी ठाकुर जैसे वीरों,तपस्वियों,योद्धाओं की भूमि बिहार तुष्टिकरण से लबरेज फैसले को पचा जाएगी? शायद नही। इस फैसले के खिलाफ सर्जन होने वाले असन्तोष का अंदाजा सुशासन की नाव खेले वालो को नही लगता।सनद रहे। सनातनी पर्वो के अवकाशों में कटोत्री करना तो दूर उनसे छेड़छाड़ तक की हिम्मत अंग्रेज,मुगल तक नही जुटा पाए।उसकी एक वजह ये भी रही।तमाम अवकाश प्रतिकूल मौसम, फसल चक्र, खेत खलियान से जुड़े होकर लोकतंत्र की बड़ी ताकत रहे है।दूर दराज के सुबो में पसीना बहाने वाले बिहारियों को ये पर्व जोडते है। परिवार,समाज की ताक़त है। रिस्तो को रिचार्ज करते है। ये पर्व ही इन्हें अपनो के बीच खेच लाते है। वरना ये मशीनी दुनिया मे मशीन ही बन कर रह जाए। ये लोक पर्व ही उनमें सवेधनाओ,मानवीयता,रचनात्मकता का संचार करते है।रिस्तो को मर्यादा में संजोते है।
75% बिहार,बिहार की नही बल्कि दूर दराज के देश विदेश की धड़कन है। इस धड़कन में रक्त संचार पर्व ही करते है। यदि पर्व न आए तो ये कर्मवीर बिहार का रास्ता ही भूल जाए। पर्वो पर उमड़ने वाली भारी भीड़ को बिहार पहुचाने के लिए रेलवे को असाधारण अतिरिक्त व्यवस्थाए करनी पड़ती है।इसके बाबजूद काफी लोग समय पर आरक्षण न मिलने या सीट न मिलने की वजह से मन मसोस कर रह जाते है।
दीपावली की तरह बिहार के लोग मजबूरी में अब छट पर्व मुंबई,सूरत,असम, तमिलनाडु,केरल तक मे मनाने लगे।पर्वो पर करोड़ो लोग अपनी जन्म भूमि बिहार पहुच अपनो के बीच मस्त ही जाते है। सुशासन बाबू उन करोड़ो लोगो के उल्लास,उमंग,उत्साह पर तलवार चला कर कही रेलवे की मदद तो नही कर रहे है। जब बांस ही नही होगा तो बासुरी ही नही बजेगी।यानी जब लोक पर्वो का दमन सत्ता करने लगेगी तो जाहिर मन खट्टा होगा। लोग अपनी जड़ों से कटेंगे। रिश्ते मोबाइल में कैद हो जाएंगे। आवागमन सीमित हो जाएगा। इससे बिहार का अर्थ तंत्र का बंटाधार होना तय है। क्रय शक्ति,रोजगार घटेंगे।गरीबी का तांडव बढ़ेगा।सामाजिक,परिवाटिक अपराध बढ़ेंगे। बुजुर्गो की लाठी टूटेगी। बुजुर्ग असहाय,लाचार हो सरकार पर वजन हो सकते है। सुशासन बाबू के इस फैसले को शिक्षा के इस्लामीकरण से भी बीजेपी जोड़ कर देख,तोल, परख रही है। फैसला बिहार,करोड़ो बिहारियों की आस्था,विश्वास की तरफदारी न करके विराट संस्कृति के लिए आत्मघाती लगता है।