वेबडेस्क। प्राचीन भारत में महिलाएं सशक्त थीं। उन्हें शिक्षा का अधिकार था। सावित्री, अपाला, घोषा, यामी आदि की वेदों में ऋचाएं हैं। वे सभा और समितियों में पुरुषों के साथ भाग लेती थीं। वे अपने संबंध में निर्णय लेने के लिए भी स्वतंत्र थीं। लेकिन, विदेशी आक्रांताओं के बढ़ते आक्रमण और बाद में विदेशियों के शासन के कारण महिलाएं धीरे-धीरे घरों में सिमटती चली गईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की स्थिति सुधारने के प्रयास किए गए। उनकी स्थिति में सुधार भी हुआ, लेकिन वास्तव में यह उच्च या उच्च मध्यम वर्गों तक ही सीमित रह गया। महिलाओं की स्थिति में सुधार की बात 'गरीबी हटाओ' नारे की तरह ही साबित हुआ। लेकिन, श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बेटियों के लिए एक नए युग की शुरुआत हुई। उनकी शिक्षा के लिए विशेष प्रबंध किए गए और इसका अच्छा परिणाम सामने आया।
शिक्षित महिलाओं से होता है सशक्त राष्ट्र का निर्माण -
बालकों की तरह ही बालिकाओं की शिक्षा भी महत्वपूर्ण है। जिस समाज की बेटियां शिक्षित होती हैं, वह समाज न केवल विकसित होता है, बल्कि स्वयं की रक्षा करने में भी ज्यादा समर्थ होता है। शिक्षित महिलाओं से सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है। स्वामी विवेकानंद ने महिला शिक्षा पर कहा था कि 'अगर आप चाहते हैं कि आपके बेटे भी महान बनें, तो आपके घर में महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है।' स्वतंत्र भारत में बेटियों को शिक्षित करने के प्रयास हुए, लेकिन इसे सही अर्थों में अभियान के रूप में नहीं लिया गया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने बेटियों की शिक्षा को 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' बनाने की दिशा में एक अभियान की तरह लिया।
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान वर्ष 2015 में शुरू हुआ -
वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा के पानीपत में महत्वाकांक्षी 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की। 2015 में ही सुकन्या समृद्धि योजना शुरू की गई। इससे लड़कियों को लाभ मिलना शुरू हुआ। सुकन्या समृद्धि योजना, राष्ट्रीय बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना आदि से लड़कियों की शिक्षा की स्थिति बेहतर हुई। मोदी सरकार ने बेटियों की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति पर भी विशेष ध्यान दिया। माध्यमिक स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए 'नेशनल स्कीम ऑफ इंसेंटिव टू गर्ल्स' के तहत छात्रवृत्ति दी जाती है, तो उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के लिए भी स्कॉलरशिप है। इंजीनियंरिंग और फॉर्मेसी की पढ़ाई के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) चालीस हजार छात्राओं को स्कॉलरशिप देता है। वर्ष 2014-15 में तकनीकी शिक्षा के लिए 'प्रगति' स्कॉलरशिप की भी व्यवस्था की गई। एकल बेटी को सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान के लिए स्वामी विवेकानंद छात्रवृत्ति शुरू की गई। बेटियों के लिए अक्टूबर, 2016 में शुरू की गई 'सीबीएसई उड़ान' योजना से उन्हें इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी में मदद मिलने लगी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय वर्ष 2001 में शुरू हुए सर्व शिक्षा अभियान को और सघन करते हुए सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी बच्चियों को प्राथमिक शिक्षा के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
बालिका शिक्षा में आया बदलाव, तो बदली स्थिति
बेटियां मेडिकल में तो काफी संख्या में थीं, लेकिन इंजीनियरिंग संस्थानों में उनकी संख्या काफी कम थी। लेकिन, अब न केवल इंजीनियंरिंग, बल्कि कृषि की पढ़ाई में भी उनकी संख्या बढ़ी है। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट में टॉप-10 में बेटियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रहीं है। सशक्त भारत के निर्माण की दिशा में यह महत्वपूर्ण है। महिलाओं एवं बालिकाओं के सर्वांगीण विकास के लिए चलाये जा रहे विभिन्न योजनाओं से एक व्यापक बदलाव आया और देश में लिंगानुपात में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है। इसका एक महत्वपूर्ण कारक बेटियों की शिक्षा भी है। एनएफएचएस (नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे) – 5 के अनुसार देश में महिलाओं की संख्या 1000 पुरुषों के मुकाबले 1020 हो गई है। भारत के स्वतंत्र होने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। 21वीं सदी के महानायक बनकर उभरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आधी आबादी को अपने सपने साकार करने करने में अहम् भूमिका निभाया है और वैश्विक पटल पर भारत को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से एक नई मजबूत दी है।