मुस्लिम ध्रुवीकरण और बेलगाम गुंडागर्दी है ममता बनर्जी की जीत की असल वजह, ये हैं आकंड़े

Update: 2021-05-03 17:27 GMT

कार्टून साभार : मनोज कुरील 

कोलकाता/वेब डेस्क। विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत की तृणमूल कांग्रेस बड़े जोर - शोर से खुशी मना रही है। पश्चिम बंगाल में मिली जीत के पीछे की मुख्य वजह दीदी की बंगाल में लोकप्रियता नहीं बल्कि मुस्लिम प्रेम, ध्रुवीकरण और सबसे ज्यादा उनके बेलगाम कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी है। चुनाव परिणाम आते ही उनके समर्थकों ने भाजपा को वोट देने वाले लोगों को टारगेट करना शुरू कर दिया है। पूरे राज्य में हिंसा को दौर फिर शुरू होकर भाजपा कार्यालयों में तोड़ - फोड़ जारी है। इस बीच गृह मंत्रालय ने आज 03 मई को जारी हिंसा को लेकर राज्य सरकार से जवाब माँगा है। वहीं भाजपा द्वारा भी इसके विरोध में देश व्यापी विरोध करने का ऐलान किया है।

कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी के साथ ही उनका एक धर्म विशेष के लोगों के प्रति कथित प्रेम और झुकाव भी उनकी जीत का मुख्य कारण है। यदि जीत का विश्लेषण किया जाए तो उन्हें मुस्लिम बहुल सीटों में ही सबसे ज्यादा जीत मिली है। आइए कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं के द्वारा समझने की कोशिश करते है की आखिर कैसे मुस्लिम फैक्टर का लाभ इस बार के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी को मिला, आईये जानते हैं।  

प. बंगाल देश में दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार बंगाल की आबादी 27 प्रतिशत थी, अनुमान है की अब तक बढ़कर लगभग 35 फीसदी के करीब पहुंच गई होगी। ऐसे में उन्होंने कट्टर रणनीति और मुस्लिम कार्ड खेलकर सोची समझी रणनीति के आधार पर चुनाव में उतरी थीं। 

मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण - 

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को मिली सीटों में से 40 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम, वहीँ 16 सीटों पर 45 से 50 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक और 33 सीटें ऐसी है, जिन पर 20-30% मुस्लिम मतदाताओं का कब्जा है। इन्हीं सीटों पर तृणमूल को जीत मिली है।  

देश में आजादी के बाद से देखा गया है की मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक का ध्रवीकरण होता आया है। ये समुदाय किसी एक दल को एकतरफा वोट देता है, जिससे उस दल की स्थिति मजबूत और जीत निश्चित हो जाती है। टीएमसी ने ध्रुवीकरण की इस रणनीति का ही लाभ उठाया और अपनी जीत निश्चित की।  यदि इसे वामपंथ के नजरिए से देखेंगे तो ये सांप्रदायिक नहीं बल्कि सेक्युलर है। यदि आंकड़ों और तथ्यों पर ध्यान दें तो वास्तविकता समझ आएगी की जिस किसी राज्य, क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की आबादी 30 फीसदी या उससे अधिक होती है। वहां हिन्दू हित चाहने वाली पार्टियों को लाभ जीत नहीं मिलती।  यहीं कारण है की ये आबादी एकमुश्त होकर किसी ऐसे पार्टी को वोट करती है जो भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहा हो।

दिल्ली में भी मिला फायदा - 

मुस्लिम ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा उदाहरण बीते वर्ष दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव है। यहां विधानसभा चुनावों के समय शाहीन बाग़ में मुस्लिम समुदाय की महिलाएं एक आंदोलन कर रहीं थी।  आप पार्टी ने इसी आंदोलन का लाभ उठाया और ध्रुवीकरण की नींव पर सत्ता की चाबी हासिल की है। दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मुख्य मुकाबला था, लेकिन मुस्लिम ध्रुवीकरण के कारण आप पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की।  यही इस बार पश्चिम बंगाल में हुआ, मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के कारण भाजपा जहां सत्ता से दूर हुई वहीँ कांग्रेस, लेफ्ट और एआईएमआईएम एक भी सीट हासिल नहीं कर सकीं।  बंगाल चुनाव के समय मुस्लिम समुदाय के बीच साफ संदेश दिया गया था की उनका वोट बंटना नहीं चाहिए। ममता बनर्जी ने खुद इसकी अपील की थी, जिसके लिए चुनाव आयोग द्वारा उन पर कार्यवाही भी की गई।  

बोलते आंकड़े : पहले लेफ्ट पार्टी को मिला लाभ, अब TMC को 

 बंगाल में पिछले चुनावों का ट्रेंड देखें तो पता चलता है की साल 2006 से पहले तक ये ध्रुवीकरण वामपंथी दलों की और था।  जिसके कारण 34 साल तक लेफ्ट पार्टीज का यहां शासन रहा। 2006 के चुनाव में भी 45% वोट लेफ्ट पार्टी को गए थे।  इसी चुनाव से ममता ने इस वोट बैंक में सेंध लगाना शुरू किया और पहली बार 22 फीसदी मुस्लिम वोट टीएमसी को मिला।  इसके बाद 2014 और 2016 में भी टीएमसी ने 40% एवं 51% मुस्लिम मत हासिल किए थे।  इस बार के चुनाव में टीएमसी ने मुस्लिम वोटों के दम पर 54 प्रतिशत सीटें हासिल की हैं।  

ममता दीदी का मुस्लिम प्रेम - 

मुस्लिम वोटों के इस ध्रुवीकरण का यहां मुख्य कारण है ममता दीदी का इस समुदाय के प्रति विशेष लगाव है।  वह सरकारी खजाने से इमामों और खादिमों को वेतन देती है।  वह मुसलमानों को  लुभाने के लिए आरक्षण देने की बात भी करती है। दीदी के इसी प्रेम का कारण है ये समुदाय चुनावों के समय ऐसे दलों को चुनते है जो हिंदू हित की बात ना करते हुए उनके हितों का ध्यान रखता हों।   समाज को बांट कर और मुस्लिम मतदाताओं को एक कर इस राजनीति को इस तरह से अंजाम दिया जाता है कि जब चुनाव का मौका है तो पूरी तरह से एकमुश्त होकर मुस्लिम समाज ऐसी पार्टी को वोट करें जो हिंदू हित की बात ना करता हो।

असम और अन्य राज्य में भी दिखा असर - 

मुस्लिम ध्रुवीकरण का असर सिर्फ बंगाल में नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी नजर आया है। असम में कई मुस्लिम बहुल सीटों पर भी यहीं हुआ। जिसका फायदा कांग्रेस और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को मिला। कांग्रेस गठबंधन को मिली सीटों में आधे से अधिक सीटें मुस्लिम ध्रुवीकरण का परिणाम है। इसके अलावा तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी इसका असर मुस्लिम क्षेत्रों में नजर आया।  

बंगाल में जीत हासिल करने वाले मुस्लिम उम्मीदवार - 

  • (1) हामिद-उर-रहमान (TMC),
  • (2) अब्दुल करीम चौधरी (TMC),
  • (3) मुहम्मद गुलाम रब्बानी (TMC),
  • (4) आज़ाद मिंज-उल-अरफ़ीन (TMC)
  • (5) मुशर्रफ हुसैन (TMC),
  • (6) तारिफ हुसैन मंडल (TMC),
  • (7) ताजमल हुसैन (TMC),
  • (8) अब्दुल रहीम बख्शी (TMC),
  • (9) यासमीन शबीना (TMC) C),
  • (10) मोहम्मद अब्दुल गनी (TMC),
  • (11) मुनीरुल इस्लाम (TMC), (
  • 12) अकर अल-ज़मान (TMC),
  • (13) अली मोहम्मद (TMC),
  • (14) इदरीस अली (TMC),
  • (15) सोमक हुसैन ( TMC),
  • (16) हुमायूँ कबीर (TMC),
  • (17) रबी-उल-आलम चौधरी (TMC),
  • (18) हसन अल-ज़मान शेख (TMC) MC)
  • (19) नेमत शेख (TMC),
  • (20) शाहिना मुमताज़ खान (TMC),
  • (21) रफीकुल इस्लाम  मंडल (TMC),
  • (22) अब्दुल रज्जाक (TMC),
  • (23) नसीरुद्दीन अहमद (लाल) (TMC),
  • (24) कलोल खान (TMC),
  • (25) रक्बन -उर-रहमान (टीएमसी),
  • (26) अब्दुल रहीम काजी (टीएमसी),
  • (27) रहीमा मोंडल (टीएमसी),
  • (28) इस्लाम एसके नूरुल हाजी (टीएमसी),
  • (29) रफीकुल इस्लाम मंडल (टीएमसी),
  • (30) ) मुहम्मद नसूद सिद्दीकी (RSMP),
  • (31) अहमद जावेद खान (TMC),
  • (32) फेरोडी बेगम (TMC), 
  • 33) अब्दुल खालिक मुल्ला (TMC),
  • (34) फरहाद हकीम (TMC),
  • (35) गुलशन मलिक (TMC),
  • (36) सिद्दीकुल्लाह चौधरी (TMC)
  • (37) शेख शाहनवाज़ (TMC)
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