सफेदपोश... लाल षड्यंत्र

मोनिका अरोरा

Update: 2018-09-16 10:34 GMT

अनुवादक - नवीन सविता

मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील या अध्यापन कार्य से जुड़े होने के बावजूद कोई भी नक्सल हो सकता है। नक्सल समर्थक हाशिए वाले होते हैं अब यह मिथक टूट गया है! हिंसा को न्यायसंगत बनाने के लिए उनका दोहरा चरित्र उजागर हुआ है।

"भारत तेरे टुकड़े होंगे...इंशाअल्लाह... इंशाअल्लाह!" यह एक सामान्य नारा नहीं है। शहरी नक्सलियों की इसके पीछे एक पूर्णत: स्पष्ट योजना है। वे कौन हैं जो हमें सिखाते हैं कि आर्य लोग आक्रमणकारी थे जो पश्चिम एशिया से भारत में आए थे? कौन हैं जो हमें बताते हैं कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय आदि उग्रवादी, आक्रमणकारी, आतंकवादी थे? वे कौन हैं जो हमें बताते हैं कि भारत कभी राष्ट्र नहीं था और इसको अंग्रेजों ने 200 साल पहले एक राष्ट्र के रूप में एकीकृत किया था?

प्रति प्रश्न और पहचान 

वे कौन हैं जो हमें बताते हैं कि भारत ने नागालैंड, मणिपुर, कश्मीर और गोवा जैसे विभिन्न राज्यों पर कब्जा कर लिया है और इसलिए इन सभी राज्यों को भारत से अलग करने का अधिकार है। जैसे यूएसएसआर से 15 राज्य अलग हुए? अफजल गुरू और याकूब मेनन की मौत की सालगिरह का जश्न मनाने वाले लोग कौन हैं और उनकी फांसी की सजा को न्यायिक हत्या के रूप में मानते हैं? वे कौन हैं जो खूंखार आतंकवादी के लिए मध्यरात्रि में सर्वोच्च न्यायालय और कानून का दरवाजा खटखटाते हैं? वे कौन हैं जो घोषित आतंकवादी बुरहान वानी को स्वतंत्रता संग्राम का संदेशवाहक के रूप में पुकारते हैं?

वो कौन है जो इशरत जहां से याकूब मेनन, अफजल गुरू और हदिया (लव जिहाद केस) से रोहिंग्या मुसलमानों (अवैध प्रवासियों) के मामले में उनका पक्ष लेते हैं, लेकिन अपने ही देश में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर सतत चुप्पी बनाए रखते हैं? वे कौन हैं जो वकीलों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, एनजीओ इत्यादि परितंत्र के भी हिस्सा हैं? समाज में कई लोगों ने मानवाधिकार संगठन खोले हैं और कहते हैं कि वे दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, गरीबों और जरूरतमंदों के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन सहायता करने के नाम पर पीडि़त की जाति, धर्म और विचारधारा को देखते हैं।

वे शहरी नक्सल हैं। वे गांवों और जंगलों में नक्सलियों को नेतृत्व संसाधन, विचारधारा, सूचना, वित्तीय और बौद्धिक समर्थन प्रदान करते हैं। गाँवों में बंदूक धारी नक्सली और विश्वविद्यालयों में बौद्धिक नक्सली के बीच संबंध क्या है।

दोहरा संबंध

अपने मुद्दों को उठाओ और उन्हें राज्य के खिलाफ उकसाओ। राज्य अपनी सेना, सुरक्षा बलों, नौकरशाही आदि के माध्यम से दमन करेगा। उनकी विश्वसनीयता को खत्म कर उन्हें खत्म कर दें। इसलिए हम देखते हैं कि कश्मीर में पत्थरबाजों को निर्दोष पत्थरबाजों के रूप में चित्रित करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, अदालतों, मीडिया में इस पूरे परितंत्र में शहरी नक्सली सेना के जवानों को यौन हमलावर के रूप में चित्रित करते हैं।

जंगल और शहरी नक्सल के बीच जबरदस्ती धन वसूलने का भी संबंध है। नक्सलियों द्वारा केवल बस्तर एवं छत्तीसगढ़ की खदानों, खनिज निगमों, पीडब्ल्यूडी ठेकेदारों, बिजली कंपनियों, तेंदू पत्ता व्यापारियों, सड़क निर्माण ठेकेदारों आदि से एक अनुमान के अनुसार 1000 करोड़ रुपये 'संरक्षण धन' के रूप में एकत्र किए जाते हैं। अर्थात, अगर वे संरक्षण धन का भुगतान करते हैं तो नक्सली उन पर हमला नहीं करेंगे और ना ही उन्हें मारेंगे। यह पैसा शहरी नक्सलियों के पोषण हेतु उपयोग किया जाता है।

इसके अलावा नक्सलियों के आईएसआई, चीन, पश्चिम के विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, ईसाई मिशनरी और अन्य भारत विरोधी ताकतों के साथ मजबूत संबंध हैं और वो सब शामिल है जो मजबूत भारत नहीं देखना चाहते हैं बल्कि इसे अंदर और बाहर से अस्थिर करने का भरसक प्रयास करते हैं। इन शहरी नक्सलियों को कांग्रेस से भी संरक्षण मिलता है और भारतीय विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थान जैसे आईसीएचआर, आईसीएसएसआर, आईसीएआर, आईआईएमसी इत्यादि पर बौद्धिक दृष्टि से कब्जा कर लिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने शहरी नक्सलियों के परितंत्र को ध्वस्त करने का प्रयास किया। इसलिए विशेष रूप से संदिग्ध गैर सरकारी संगठनों की फंडिंग पर रोक लगवा दी है। और अब गिरफ्तार हुए पांच नक्सल सहानुभूतिकारियों ने शहरी नक्सलियों के प्रारूप को बतलाया है, वे जाने-माने नागरिक, शिक्षित, सिविल सोसायटी के सम्मानित सदस्य हो सकते हैं, लेकिन उनके नक्सलियों से सम्बन्ध हो सकते हैं और माओवादियों के पक्ष में खड़े दिखाई दे सकते हैं।

जैसा कि हमने 9 फरवरी, 2016 को जेएनयू में "भारत तेरे टुकड़े होंगे... इंशाअल्लाह...इंशाअल्लाह" नारे लगते हुए देखा यह सिर्फ खोखले शब्द नहीं थे, इसके पीछे शहरी नक्सलियों के पास एक विशेष योजना है। क्या देश से प्रेम करने वाला विशिष्ट वर्ग नक्सल को समर्थन करेगा और भारत के विनाश की मांग करने के अधिकार के साथ असंतोष के अधिकार को भ्रमित करेगा? इसका जवाब हमारे देश का वर्तमान और भविष्य का भाग्य निर्धारित करेगा।

अनुवादक - नवीन सविता

(साभार : आर्गनाइजर, लेख - स्पोटिंग एन अर्बन नक्सल : मोनिका अरोरा )

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