नारी अर्थात शक्ति ही सृष्टि का आधार है, इस आधार को मजबूत करें

गुरमीत सिंह

Update: 2024-03-07 14:56 GMT

वेबडेस्क।  पाश्चात्य से प्रेरित विश्व महिला दिवस 8 मार्च, भारतीय संदर्भ में ज्यादाप्रासंगिक है।सनातन काल से मार्च अथवा अप्रैल माह में ग्रहों तथा राशियों के विशेष स्थिति में आने पर हम शक्ति की उपासना पूरी आस्था तथा समर्पण के साथ आदि काल से कर रहे है।वर्ष भर में चार बार नवरात्रि तथा गुप्त नवरात्रि के अवसर पर मां शक्ति के रूप में विशेषकर पुरुषों के द्वारा उपासना की जाती है। भारतीय मनीषियों के द्वारा जीवन की शक्ति ऊर्जा की पहचान स्त्री के रूप किया जाना प्रतिपादित किया जाना, यह स्पष्ट करता है कि,भारत में नारी शक्ति को सनातन से पूज्य तथा सम्मानित स्थान प्राप्त है। यह भी दिलचस्प स्थिति है कि,हम पश्चिम से प्रेरणा जल्दी ग्रहण कर लेते हैं,जबकि हमारे अपने मूल्य भी उन्ही संदर्भों में पूर्व से स्थापित होते हैं।जगत स्थापना तथा परिचालन में,नारी न केवल बराबर की भागीदार है, अपितु उसकी भूमिका पुरुष से अधिक महत्त्वपूर्ण है।प्रति वर्ष एक बार दिवस के रूप में मना लेने अथवा याद कर लेने की अपेक्षा,नारी गरिमा तथा सम्मान को बनाए रखने का संकल्प लिया जाना इस अवसर को महता को स्थापित करने में अधिक सहायक सिद्ध होगा।

आस्तित्व की द्वैत प्रकृति


गुरमीत सिंह

आस्तित्व में हर तत्व अथवा पदार्थद्वैत के रूप में है,ऐसा सजीव अथवा निर्जीव कोई भी मैटर नहीं है,जो एकल रूप में विद्यमान हो। विज्ञान की दृष्टि से भी जब किसी भी उपस्थित मैटर चाहे वह किसी भी रूप में हो,का सूक्ष्मतर स्तर तक अध्ययन किया जाता है तो प्रोटॉन तथा इलेक्ट्रॉन के युग्म के में दृष्टिगोचर होता है।कहने का आशय यही है कि,जीवन तथा अस्तित्व की धारणा में,युग्म जो परस्पर एक दूसरे पर निर्भर हैं,सर्वाइवल कर सकते हैं।इस सिद्धांत के अनुक्रम में,पुरुष तथा स्त्री एक दूसरे के पूरक तथा अवलंबित हैं।सृष्टि के परिचालन में दोनो की भूमिका तथा महत्व है,तथा दोनो ही सम्मान,गरिमा तथा उत्तरदायित्वों के समान रूप से सहभागी तथा अधिकारी हैं।अगर इनका संतुलन बिगड़ेगा तो निश्चित रूप से पूरे अस्तित्व का संतुलन तथा परिचालन भी प्रभावित होगा। प्राचीन भारतीय विचारकों,संतो तथा मनीषियों ने इन तथ्यों को भली भांति समझ लिया था, इसीलिए उन्होंने स्त्री को शक्ति के रूप में प्रतिपादित करते हुए सम्मान के साथ साथ, देवी शक्ति के रूप में आराध्य करने के लिए विस्तृत विधान तथा उपासना पद्धति को स्थापित किया।

भारतीय अध्यात्म में स्त्री शक्ति

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार करें तो परिलक्षित होता है कि,संपूर्ण अस्तित्व के रचियताशिव हीहैं,जो न केवल समूची सृष्टि के आर्किटेक्ट हैं,अपितु जीवन तथा जीवन ऊर्जा के रूप में कण कण में विद्यमान हैं।इस दिव्य ऊर्जा को गतितथा ऊर्जा के पदार्थ रूप में, रूपांतरण हेतु पार्वती की संकल्पना की गई है।अर्थात शिव की असीम अनंत दिव्य ऊर्जा का रूपांतरण बिना पार्वती के संभव नहीं हैं।शिव जिनको कि भारतीय सांख्य दर्शन में पुरुष रूप में प्रतिपादित किया गया है,उनकीअनंत ऊर्जा को प्रकृति अर्थात पार्वती ने ही आस्तित्व को मूर्त रूप दिया है।अत:प्रकृति जो किस्त्रैण तत्व अर्थात पार्वती का प्रतीक है, को शिव ने अपने पूरक सहयोगी के रूप में आत्मसात किया है।इस अवधारणा के प्रकाश में कहा जा सकता है कि,शक्ति बिना तो शिव भी अपूर्ण हैं।

स्त्री तत्व बिना रचना असंभव वैज्ञानिक दृष्टिकोण

इन्हींधारणाओं को भी विज्ञान भी अलग रूप से व्याख्या करता है।विज्ञान ने जगत में व्याप्त इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के अध्ययन में भी यही पाया है कि,तरंगों की फ्रीक्वेंसी तथा अन्य गुण,इलेक्ट्रॉन तथा मैग्नेटिज्म का संयुक्त उपक्रम है।इलेक्ट्रॉनभी तरंग के रूप में अनंत तक गति करने में समर्थ तभी है जब चुंबकीय प्रभाव भी साथ हो।इन उदाहरणों को प्रस्तुत करने का आशय मात्र यही है कि,स्त्री तथा पुरुष परस्पर एक दूसरे के पूरक तथा सहयोगी हैं।जब प्रकृति की इस अभूतपूर्व व्यवस्था को अनदेखा कर नारी के साथ भेदभाव तथा असम्मान की परिस्थितियां उत्पन्न की जाती हैं,तो यह समाज के विकृत होते जाते तथा डिवाइन व्यवस्था व निदेशों को अमान्य किए जाने का पागलपन ही परिलक्षित होता है।

विगत सदियों में नारी की स्थिति

पिछले कई दशकों तथा शताब्दियों से निरंतर,स्त्री के गरिमामय स्थान का क्षरण होता चला आ रहा है, विशेषकर अतीत के एक हजार वर्षों में इन अशोभनीय तथा अप्रिय सोच में इजाफा होता चला आया है।विदेशी आक्रमणकारियों ने अपने विस्तारवाद, मोह तथा स्वार्थ के चलते,निरंतर देश में जाति,वर्ण तथा जेंडर आधारित भेदभाव को प्रश्रय दिया था,नारियों के प्रति निरंतर अवमानना तथा अमर्यादा इन दशकों में चरम सीमा तक पहुंच चुकी थी,जिसके फलस्वरूप, लाखों परिवारों में, अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए बेटियों को जन्म न देने की विचारधारा को बल मिला, तथा कालांतर में यह अनजाने में ही मानस पटल पर इतनी गहराई से विकृत स्वरूप लेते हुए अंकित हो गया कि,समाज ने बिना सोचे समझे स्त्रियों के प्रति अपने मूढ़ नजरिए को स्थापित होने दिया।यहां तक कि,स्त्री ही बेटी को जन्म देने व भेदभाव करने की विचारधारा का पोषक हो गई है।इसविकृत सोच के समर्थन में,लोगों तथा समाज के कई उपदेशकों ने जो तर्क विगत दशकों मेंदिए हैं,आज नारी शक्ति ने उसे जड़ से उखाड़ फैंका है।

आज नारी शक्ति का परचम तथा गरिमा

अगर हम पिछले पचास वर्षों की और नजर डालें तो पाएंगे कि,महिलाओं ने हर उन क्षेत्रों,जो उनके लिए प्रतिबंधित कर रखे थे,में अभूतपूर्व सफलता पाते हुए स्थापित कर दिया है कि,नारी किसी से कम नहीं।पुरुषों की यह दोगली सोच उनके मानसिक दिवालियापन को उजागर करती है कि,एक और तो वो, देवी शक्ति का आर्शीवाद पाने के लिए शक्ति स्थलों की उपासना,पूजा अर्चना,उपवास करते हैं,लेकिन उसी समाज में,वो नारियों के प्रति भेदभाव नजरिए का प्रतिरोध नहीं करते। अब एक चेतना को निरंतर विस्तार मिल रहा है कि,बेटियां अपने परिवारों के प्रति ज्यादा संवेदनशील तथा जिम्मेदार हैं।बेटियों को निरंतर प्रोत्साहन, उनकी शिक्षा,तथा आधारभूत सुविधाओं की और राज्य सरकारें भी सक्रिय होकर कार्य कर रही हैं,जिससे सोच में परिवर्तन की शुरुआत परिलक्षित हो रही है,लेकिन यह जवाबदारी समाज की तथा परिवार की ज्यादा है कि,सरकारों के इन प्रेरणापूर्वक कार्यों को गति तथा सहयोग देवें।

समाज के दायित्व बोध तथा संकल्प की आवश्यकता

अब समाज को पूर्ण समर्पण तथा दायित्वबोध के साथ आगे आना ही होगा,तथा प्रत्येक शक्ति पर्व पर देवी की अस्थापूर्ण उपासना के साथ इस संकल्प को जनमानस में स्थापित कराना होगा कि, स्त्रियों के सम्मान उनकी गरिमा की रक्षा के लिए वे सदैव तत्पर तथा प्रोएक्टिव रहेंगे।आपके शक्ति पर्व तभी सार्थक होंगे जब समाज में नारियों को उनका गरिमा पूर्ण स्थान दिला सकेंगे।वास्तव में विश्व महिला दिवस को सभी पुरुषों के द्वारा रक्षा बंधन के त्योहार के रूप में मनाने की आवश्यकता है,ताकि ऐसे अवसरों की सार्थकता प्रमाणित हो सके।जब सकारत्मक विचारधाराएं तीव्र गति से पोषित होंगी,तो नकारत्मक विचार तथा दुष्ट व्यक्तित्वों का स्वयं ही लोप होने लगेगा।यह सत्य भली भांति मानस में स्थापित करना है कि,जब शिव भी बिना पार्वती के अपूर्ण हैं,तो आप कैसे स्त्रियों के सम्मान के बिना अस्तित्व में बने रहने की असंभव कल्पना कर लेते हैं।तो आइए और अपने सृष्टि के निर्माता से प्रेरणा लेकर संकल्प धारण करें कि,समाज और परिवार में आप स्त्री शक्ति को और अधिक मजबूत करते हुए उनकी गरिमा व सम्मान को बनाए रखेंगे।

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