भारत कुमार की कहानी: फरिश्ता बनने की चाहत में हरिकृष्ण गोस्वामी बने थे मनोज कुमार...

मनोज कुमार
Manoj Kumar : मुझे दिल्ली की याद नहीं आती, मुझे याद आती है एटाबाद और लाहौर की...यह बात पकिस्तान में जन्में हरिकृष्ण गोस्वामी ने कही है। उनके मन में देश प्रेम इतना था कि, पहले हरिकृष्ण गोस्वामी मनोज कुमार बनें और फिर बन गए "भारत कुमार"
विभाजन के बाद बहुत से लोग लाहौर से दिल्ली आए गए। जिसे वे कल तक अपना मुल्क कहा करते थे रातों रात उस जमीन पर वे बेगाने हो गए थे। अचानक उन्हें अपना घर छोड़ अपने ही देश में बने रेफ्यूजी कैंप में आकर रहना पड़ा। इन्हीं में से एक थे हरिकृष्ण गोस्वामी।
'जब शून्य दिया मेरे भारत ने', 'मेरे देश की धरती सोना उगले', 'भारत का रहने वाला हूं', 'ऐ वतन ऐ वतन'.... इन गानों के बाद भी बॉलीवुड में देश प्रेम के कई गाने बने लेकिन आज भी आजादी का उत्सव हो या गणतंत्र दिवस हर मौके पर यह गाने सड़क और गलियों में सुने जा सकते हैं। इन सभी गानों का संबंध मनोज कुमार से है। उन्होंने देशभक्ति पर इतनी फिल्में बना डाली कि, उन्हें "भारत कुमार" के नाम से जाना जाने लगा। उनके जैसा शायद ही कोई अदाकार रहा हो जिसने देशभक्ति पर इतनी फिल्में बनाई हो।
हरिकृष्ण गोस्वामी का मनोज कुमार बनने का सफर :
फिल्मों की दुनिया कोई नाम कमाने आता है तो कोई पैसा कमाने। हरिकृष्ण गोस्वामी इन दोनों में से एक भी वजह के चलते फिल्मों में नहीं आए। उन्हें फरिश्ता बनना था। यही कारण था कि, फिल्मों ने उन्हें आकर्षित किया।
पकिस्तान के ऐटबाद में 1937 में जन्में हरिकृष्ण गोस्वामी 1947 में भारत - पाकिस्तान विभाजन के बाद दिल्ली के रेफ्यूजी कैम्प में अपने परिवार के साथ आ बसे। उनके जहन में ऐटबाद की यादें हमेशा जीवित रहीं। दिल्ली के रेफ्यूजी कैम्प में वे ऐटबाद को सबसे अधिक याद किया करते थे जो स्वाभाविक है। एक 10 साल के बच्चे के लिए यह समझ पाना बड़ा मुश्किल था कि, आखिर क्यों देश का बंटवारा हुआ।
बहरहाल, सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए लोगों ने विभाजन को स्वीकार कर ही लिया था। बीबीसी से की गई बातचीत में मनोज कुमार ने बताया था कि, उन्होंने अपने मामा के साथ जाकर एक फिल्म देखी थी। इस फिल्म में दिलीप कुमार लीड रोल में थे। फिल्म में दिलीप कुमार की मौत हो जाती है। कुछ दिन बाद उन्होंने दोबारा एक फिल्म देखी जिसका नाम था 'शहीद', इस फिल्म में भी दिलीप कुमार की मौत हो जाती है।
एक ही व्यक्ति को दो बार मरता देख मनोज कुमार को बड़ा अचंभा हुआ। उन्होंने अपनी मां से पूछा कि, आखिर इंसान कितनी बार मरता है। उनकी मां ने कहा एक बार। इसके बाद उन्होंने जब पूछा कि, कोई दो से तीन बार मरे तो...उनकी मां ने जवाब दिया तो वो फरिश्ता होता है।
उसी दिन हरिकृष्ण गोस्वामी ने फरिश्ता बनने का सपना देखा। इस सपने उनके प्रेरणादायक थे दिलीप कुमार। जब फिल्म देखने का शौक बढ़ा तो उन्होंने एक और फिल्म देखी जिसका नाम था 'शहीद' इस फिल्म में भी दिलीप कुमार ही लीड रोल में थे और उनके कैरेक्टर का नाम था मनोज कुमार। शहीद देखने के बाद हरिकृष्ण गोस्वामी ने तय किया कि, जब वे फिल्मों में काम करेंगे तो अपना नाम मनोज कुमार रखेंगे।
भगत सिंह नहीं बन सके इसलिए फिल्म बनाई :
हरिकृष्ण गोस्वामी की कद काठी अच्छी थी। उनके मोहल्ले में एक दिन नाटक प्रस्तुति दी जा रही थी। हरिकृष्ण गोस्वामी को रोल मिला भगत सिंह का। जब मंच पर जाने की बारी आई तो इतने से सारे लोगों के देख वे छिप गए। जब उनके पिताजी ने उन्हें छिपते हुए देखा तो कहा - 'तू तो नकली भगत सिंह भी नहीं बन पाया।'
पिता की कही यह बात और मंच पर भगत सिंह बनकर अभिनय न कर पाने के कारण उनके मन में मलाल रह गया। भगत सिंह के बारे में जानने के लिए उनकी रुचि बढ़ती गई। क्योंकि कोई किताब तब तक भगत सिंह पर लिखी नहीं गई थी इसलिए उन्होंने कुछ मैगजीन और पेपर कटिंग से भगत सिंह के बारे में पढ़ना शुरू किया।
भगत सिंह के बारे में पढ़कर उन्होंने तीन - चार साल में एक स्क्रिप्ट बनाई। मुंबई में अपने दोस्त कश्यप को यह स्क्रिप्ट दिखाकर उन्होंने कहा कि, इस पर फिल्म बनानी है और लीड रोल भी मुझे ही निभाना है। जैसे - तैसे सभी को राजी कर उन्होंने भगत सिंह पर फिल्म बनाई। इस फिल्म को बाद में नेशनल अवार्ड भी मिला।
वे कहा करते थे कि, वे बस हरिकृष्ण गोस्वामी से मनोज कुमार बने थे उन्हें भारत कुमार बनाने में सबसे बड़ा हाथ भारत की जनता का है। आज जब उनके निधन का समाचार मिला तो देश भर में शोक की लहर दौड़ गई। यह कहना नाजमी है कि, वास्तव में यह उनका देश प्रेम था जिसने उन्हें मनोज कुमार से भारत कुमार बना दिया।