मोर मुकुट कानन कुंडल, सुंदर बनवारी...

- पं. रघुनाथ तलेगांवकर जन्म जयंती के उपलघ्य में आयोजित संगीत समारोह

Update: 2018-09-23 19:52 GMT
ध्रुपद में राग जयजयवंती की प्रस्तुति देते पं. विनोद कुमार द्विवेदी व आयुष द्विवेदी। पंखावज पर संगत करते पं. गिरधारीलाल शर्मा व हारमोनिय पर पं. रवींद्र तलेगांवकर।

- पं. विनोद द्विवेदी की ध्रुपद गंगा में प्रवाहित हुए श्रोता

- पं. रघुनाथ तलेगांवकर जन्म जयंती के उपलघ्य में आयोजित संगीत समारोह

आगरा/स्वदेश वेब डेस्क। भारतीय शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद गायन एक ऐसी शैली है, जो केवल अपने आलाप द्वारा जन साधारण को एकात्म की ओर आकर्षित करते श्रोतृवर्ग को स्वरसागर में डूबने को विवश कर देती है और जिससे आत्मानन्द की अनुभूति होती है। रविवार को कुछ ऐसी ही अनुभूति उस समय हुई जब कानपुरी निवासी विख्यात धु्रपद गायक पं. विनोद कुमार द्विवेदी ने राग जयजयवंती की अवतारणा की। तानपूरे के स्वरों के साथ दरभंगा व शोभन घराने की आलापचारी ने सभागृह गंुजायमान हो उठा। अवसर था विश्व प्रसिद्ध संगीत के प्रचारक व कलासाधक स्व. पं. रघुनाथ जी तलेगांवकर के 94वें जन्म जयंती समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित संगीत समारोह का।

वैभव पैलेस में आयोजित कार्यक्रम में पं. विनोद द्विवेदी ने अपने पुत्र व शिष्य आयुष द्विवेदी के साथ सर्वप्रथम राग जयजयवंती में 'मोर मुकुट कानन कुंडल, सुंदर बनवारी' ताल चैताल में एक पद सुनाया। क्रमशः राग चारूकेशी-दस मात्रा की सूलताल में 'जग जननी भवानी', बसंत ताल में निबद्व 'शिव जटा में गंगा' और राग चारूकेशी में 'राजा रामचंद्र' पद सुनाया। अंत में उन्होंने राग कलावती में धमार सुनायी। जिसके बोल थे 'ढप सुनी कान सखी'। उनके साथ पखावज पर पं. केशव तलेगांवकर, पं. गिरधारीलाल शर्मा व हारमोनिय पर पं. रवींद्र तलेगांवकर ने संगत की। इससे पूर्व संगीत कला केंद्र के छात्र गोपाल मिश्रा, शुभम शर्मा, हर्षित आर्य व आदित्य श्रीवास्तव ने शुभ्रा तलेगांवकर के निर्देशन में पं. रघुनाथ जी द्वारा निर्मित रागमाला का गायन किया। कार्यक्रम में पं. विनोद द्विवेदी को धु्रपद रत्न व आयुष द्विवेदी को संगीत सहोदर के सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में संघ के आगरा विभाग के सह विभाग प्रचारक गोविंद जी, उद्यमी अरविंद कपूर, संस्था संरक्षक सरोज गौरिहार, गजेंद्र चैहान, एसडी श्रीवास्तव, ई. सुरेंद्र बसंल, ई. दिवाकर तिवारी आदि उपस्थित रहे। संचालन श्रीकृष्ण ने किया। आभार संस्था के निदेशक पं. केशव जी तलेगांवकर ने किया। 

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