लखनऊ में डिजिटल बाबा की कथा: स्वामी बोले- 'आत्मज्ञान से सम्पन्न नहीं होंगे तब तक जीवन का तनाव कम नहीं होगा' चिंतामुक्ति के उपाय जानने के लिए क्लिक करें
लखनऊ। असत् पदार्थों संग अहंकार-युक्त होकर हम अपनी चित्तवृत्ति में शांति खो चुके हैं। बहिर्मुखता इतनी अधिक हो गई कि हम स्वयं को अनुभव ही नहीं कर पा रहे हैं। ध्यान रहे जब तक हम आत्मानुभूति नहीं करेंगे स्वयं को ठीक अनुभव नहीं कर सकते हैं। जब तक आत्मज्ञान से सम्पन्न नहीं होंगे तब तक जीवन का तनाव कम नहीं होगा।
हमें चाहिए कि अपनी इच्छा ईश्वर प्राप्ति की भावना से युक्त कर लें। उक्त उद्गार बैजनाथ धाम से पधारे कथा कथा व्यास स्वामी राम शंकर महाराज उपाख्य डिजिटल बाबा ने मंगलवार को व्यक्त किए। वह अर्जुनगंज के सरसवां स्थित राम विलास सिंह के निवास पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान सत्र (6 से 12 नवंबर) में भागवत रस की वर्षा कर रहे थे। इस दौरान पूर्व मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह ने भी पीठ का आशीर्वाद लिया।
श्रीमद् भागवत कथा के मुख्य आयोजक चौहान परिवार के राम विलास सिंह, विपुल सिंह चौहान, अमन सिंह चौहान, अंकित सिंह चौहान, अतर सिंह, सुरेंद्र प्रताप सिंह ने स्वामी राम शंकर महाराज एवं उपस्थित श्रोतागण का धन्यवाद ज्ञापित किया।
आयोजकों ने 13 नवंबर की शाम 6 बजे से प्रभु की इच्छा तक विशाल भण्डारे का आयोजन किया है। इसमें समस्त कथा रसिक श्रोता एवं स्थानीय जन सादर आमंत्रित किए गए हैं। डिजिटल बाबा ने अपने मुखारविंद से कथा की विश्राम बेला में नौ योगीश्वर का संवाद सुनाया।
उन्होंने बखाना कि परमात्मा हम सबसे तनिक भी दूर नहीं है, वह तो अंतर्यामी बनकर हम सबके हृदय में विराजमान है। भक्त को चाहिए कि संतजन से नैकट्य बनाकर रहें। खूब सत्संग हरि नाम सुमिरन करें, क्योकि हरिनाम सुमिरन ही एकमात्र साधन है जिसके प्रभाव से चित्त की उद्विग्नता समाप्त हो पाती है। संसार सागर पार होने के लिए संत जहाज के सदस्य होते हैं। अतः संत संग में जीवन को लगाए रखना जीवन को सार्थक करता है।
अवधूत उपाख्यान की कथा सुनाते हुए डिजिटल बाबा ने बखान किया कि ब्रह्मवेत्ता दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए। जिससे जो सिख मिला धारण करते रहे। वह संसार के प्रपंच से मुक्त हो गए। हर शिक्षक गुरु का सम्प्रेषण सामर्थ्य है।
सबसे सीखेंगे तो किसी न किसी की बात अवश्य समझ में आएगी। स्वामी राम शंकर ने कहा कि आत्मा नित्य है आत्मा का कभी नाश नहीं होता है। अजर-अमर है निर्विकार है। सुखस्वरूप है। आत्मा चेतन है, देह जड़ है।
अपने चैतन्य स्वरूप को जाने-पहचाने। अपने विवेक को परमात्मा के चिन्तन से परिपूर्ण करें। अपने भीतर ब्रह्म को जानने का अनुभव करो। तुम मृत्यु से परे हो। अजर-अमर हो नाश केवल देह का होना है। शुकदेव से प्राप्त आत्मज्ञान से परीक्षित आत्मा का साक्षात्कार करते हैं। जीवन रहते ही वह संसार के समस्त बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।