लखनऊ: 25 लाख खर्च और परिजनों के तीन माह के संघर्ष के बाद मौत की जंग जीता नवजात बच्चा…
लखनऊ। एक साधारण परिवार के लिए बीते कुछ महीनों का संघर्ष और तपस्या किसी चमत्कार से कम नहीं है। गोमतीनगर के विकल्पखंड निवासी सुजीत सिंह और उनकी पत्नी रेनू सिंह के जीवन में हाल ही में एक ऐसा अनुभव हुआ जिसने पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल दी।
एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में रेनू सिंह की गर्भावस्था के दौरान जटिलताएँ आ गईं। यह परिवार अचानक कठिन परिस्थितियों में घिर गया। गर्भावस्था के केवल दो महीने ही बीते थे जब रेनू की तबीयत बिगड़ने लगी। डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि गर्भस्थ शिशु की जान को खतरा है।
रेनू को तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया। सुजीत सिंह और उनके परिवार के लिए यह पल अत्यधिक चिंता का था, पर उन्होंने डॉक्टरों की सलाह मानी। रेनू को चार महीने तक हॉस्पिटल के बिस्तर पर रहना पड़ा। इस दौरान उनकी स्थिति नाज़ुक बनी रही। गर्भावस्था का छठा महीना आया, तो डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके शिशु को सुरक्षित जन्म दिलाया।
शिशु का वजन 600 ग्राम था, और उसकी जीवित रहने की संभावना नगण्य थी।
डॉक्टरों ने परिवार को बताया कि शिशु की हालत गंभीर है और उसके बचने की संभावना कम है। यह सुनते ही परिवार का दिल बैठ गया, पर उन्होंने हार नहीं मानी। शिशु को तत्काल वेंटिलेटर पर रखा गया। 10 दिन संघर्ष से भरे रहे।
परिवार ने देवी-देवताओं से मन्नतें मांगी और बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया। डॉक्टर, नर्स भी ईश्वर की तरह कार्य कर रहे थे की बच्चे को हर प्रस्थित में बचाया जा सके। धीरे-धीरे शिशु की हालत में सुधार होने लगा, उसे आईसीयू में रखा गया।
शिशु का इलाज तीन महीने तक जारी रहा। आर्थिकी सामान्य होने के बावजूद सुजीत सिंह का परिवार शिशु की जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहे। खर्च 25 लाख रुपये के ऊपर पहुंच गया, पर संघर्ष और विश्वास कायम रहा। अंततः नव महीने बाद वह दिन आया जब परिवार ने शिशु को स्वस्थ रूप में अपने हाथों में लिया। यह क्षण उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।
परिवार की आँखों में खुशी के आँसू थे। उन्हें विश्वास हो गया कि यह ईश्वर की कृपा और रेनू सिंह की तपस्या का परिणाम है। आज यह बच्चा परिवार के लिए प्रतीक बन गया है।